आमतौर पर एक्टर की कहानी में यह सुनने को जरूर मिलता है कि उन्होंने पहला ख्वाब ही एक्टर बनने का देखा था, लेकिन यामी गौतम ऐसी एक्ट्रेस हैं जो हीरोइन नहीं बनना चाहती थीं, IAS की तैयारी कर रही थीं, मगर फिर एक्टिंग के लिए दिलचस्पी जागी और हिमाचल में पली-बढ़ी लड़की सपनों के शहर मुंबई आ गई।
मुंबई में स्ट्रगल किया। टीवी से शुरुआत हुई, एक समय ऐसा भी आया जब इंडस्ट्री छोड़ने का मन बना लिया था। यामी गौतम आज इंडस्ट्री की स्टैब्लिश्ड एक्ट्रेस हैं। विक्की डोनर से चोर निकल के भागा तक उनकी एक्टिंग को सभी ने सराहा है।
आज की स्ट्रगल स्टोरी में कहानी यामी गौतम की। यामी से मैंने जूम कॉल पर बात की। बिना वक्त गवाएं मैंने यामी से यही सवाल किया- क्या आपने भी बचपन से ही एक्टर बनने के सपने संजोए थे
वो मुस्कुराते हुए कहती हैं- ‘मेरी कुछ टीचर्स जिनके साथ अभी भी टच में हूं, उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा जुड़ाव एक्टिंग से होगा। मैं स्कूल के दिनों में ठीक से एक कविता भी नहीं सुना पाती थी। आज की भाषा में उसे स्टेज फोबिया कह सकते हैं। सामने बहुत ज्यादा लोगों को देख कर घबरा जाती थी। लोगों के बीच खुलकर अपनी बात भी नहीं रख पाती थी।
हां, मैं पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। जहां तक पब्लिक स्पीकिंग और को-करिकुलर एक्टिविटीज की बात है, उनसे कोसों दूर रहती थी। वजह ये थी कि मुझमें आत्मविश्वास की कमी थी।
वक्त के साथ मेरा रुझान फिल्मों की तरफ होता गया। कहीं ना कहीं मन में मैं फिल्मों से जुड़ी हुई थी। कोई फिल्म देखने के बाद मैं उसके सीन की प्रैक्टिस कमरे में छिप कर करती थी। स्कूल के प्लेज में पार्टिसिपेट भी करने लगी थी, मगर बस इतना ही। इसके बाद फिर पूरा ध्यान पढ़ाई पर लग जाता था।
पता था कि बस इतना ही करना है। स्पॉटलाइट में शुरुआत से ही रहने की आदत नहीं थी। सपना भी IAS बनने का था। ये किस्मत का खेल है कि मैं आज यहां हूं।’
यामी बहुत ही सौम्यता के साथ यह सारी बातें बता रही थीं। उनकी बातों से मालूम पड़ रहा था कि जैसे यह कल की ही बात हो।
‘वो कहते हैं ना आप कुछ भी कर लें, लेकिन तकदीर में जो लिखा होता है, वही मिलता है। मुझे भी सच में नहीं पता कि यह कैसे हुआ। सिर्फ बेस्ट फ्रेंड्स को पता था कि मैं लोगों की मिमिक्री बहुत अच्छी तरह कर लेती हूं।
कभी भी सोचा नहीं था कि चंडीगढ़ से मुंबई तक का सफर तय करूंगी, लेकिन कुछ मौके मिले जिनके सहारे यहां आना हुआ। बहुत सारे ऑडिशन्स दिए। फिर पहला ब्रेक एक टीवी शो में मिला। हालांकि वो शो ज्यादा नहीं चला, लेकिन मैं शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे ये मौका दिया। जब इस शो का ऑफर आया था, तब मैं पढ़ाई ही कर रही थी। फिर पेरेंट्स के सपोर्ट से इस फील्ड में आगे बढ़ी।’
हां, शुरुआती तीनों शोज जल्दी ऑफ एयर कर दिए गए थे। ये भी एक तरह से अच्छा ही रहा। इसी कारण मुझमें शोज और फिल्मों के ऑडिशन देने की ललक जागी। टीवी शोज में हर दिन मेरा किरदार एक जैसा ही था। हर दिन मैं उसी किरदार में रो रही थी। मैं इन सब चीजों से कुछ अलग करना चाहती थी। फिल्मों की तरफ रुख करना चाहती थी।
मुझे याद है, शो का सेट फिल्म सिटी के पास ही था। लंच टाइम से पहले ही मैं लंच कर लेती थी। फिर लंच टाइम में शो के एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर से रिक्वेस्ट करती थी कि थोड़ा समय एक ऑडिशन में जाने के लिए मिल जाए। इस तरह शो के बीच में मिन्नतें कर ऑडिशन देने जाती थी।
हर दिन मैं नया करना चाहती थी। कुछ समय बाद लंच ब्रेक में मैंने कथक क्लास भी जॉइन कर ली थी। मैं खुद को एक सीमा में बांधे नहीं रखना चाहती थी।
शो के ऑफ एयर होने के बाद मैंने पेरेंट्स से बात की। बात करनी भी जरूरी थी क्योंकि उस वक्त तक मैं उस पोजिशन पर नहीं थी, जहां पेरेंट्स के साथ मैं खुद को देखना चाहती थी। मैंने पेरेंट्स को बताया कि बस ये 6 महीने मैं एक्टिंग करियर को दूंगी। फिर भी अगर बात नहीं बन पाती है, तो मैं वो जाॅब कर लूंगी जहां स्टेबिलिटी होगी।
इसके बाद असली संघर्ष शुरू हुआ। दिन भर ऑडिशन में ही गुजर जाते थे। आराम नगर की गलियों में गुजरा हुआ संघर्ष आज भी याद है। इस दौरान बहुत सारे रिजेक्शन भी मिले, पर मैंने हार नहीं मानी।’
इतना कहकर वो शांत हो गई। मैं उनके लाइफ के हर एक पहलू को जानने के लिए बहुत उत्सुक था। मैंने पूछा- एक बार आपको एक सवाल पूछना इतना भारी पड़ गया था कि सिलेक्ट होने के बाद भी शो से निकाल दिया गया था।
मेरे इस सवाल पर वो हंसने लगती हैं, फिर कहती हैं- ‘ हां, यह बात सही है। शूटिंग का पहला दिन था। मैंने एक सीन को लेकर सवाल कर दिया था, तभी वहां मौजूद सभी 5 लोगों की निगाहें मेरी तरफ आ गईं। सबको यह आश्चर्य था कि मैंने यह सवाल कैसे कर दिया।
मैंने इस बात को बहुत गंभीरता से नहीं लिया। अगले दिन सेट पर पहुंच गई, स्क्रिप्ट पढ़ रही थी। बहुत ज्यादा टाइम बीत गया पर कोई मुझे शॉट के लिए बुला ही नहीं रहा था। तभी एक शख्स आया और कहा- आप घर जा सकती हैं।
ये सुन मैं दंग रह गई, पर समझ में आ गया कि ऐसा क्यों हुआ। बहुत बुरा लगा, पर मैं कुछ नहीं कर पाई। हालांकि ये सारी चीजें भी जरूरी हैं, इसी के आधार पर आगे बढ़ने का जज्बा मिलता है। करियर के टाॅप पर पहुंचने के बाद यह एहसास होता है कि यहां तक पहुंचने के लिए आपने कितनी मेहनत की है।’
ये सारी बताते हुए यामी हंस तो जरूर रही थीं, लेकिन उनकी आंखों में फिल्म से निकाले जाने का दर्द साफ दिखाई दे रहा था।
वो कहती हैं- ‘दूर रहकर भी मेरे दुख सुख के साथी घरवाले ही थे। इस रिजेक्शन के बाद मैंने पापा को कॉल किया, सारी बातें बताईं। उस वक्त बहुत इमोशनल थी। पापा से कहा- घर तभी आऊंगी, जब कुछ बेहतर कर लूंगी। तब पापा ने कहा था कि मैं इन चीजों को बहुत पर्सनली ना लूं। बस अपने करियर पर फोकस बनाए रखूं।
हालांकि इस सफर में रहना कभी आसान नहीं होता। 2018 की बात है। मैंने अपना पूरा मन इंडस्ट्री छोड़ने के लिए बना लिया था। यहां से निकलकर फार्मिंग फील्ड में कुछ करने को सोच रही थी। सोच लिया था कि जो जमीन अपने पास है, उन्हीं पर फाॅर्मिंग से जुड़ा कुछ कर लूंगी।
तभी फिल्म उरी और बाला रिलीज हो गई, जिसे लोगों का बहुत प्यार मिला। बॉक्स ऑफिस पर भी फिल्म ने अच्छा परफॉर्म किया।’
आप इंडस्ट्री के लोगों के साथ अधिक सोशल नहीं हैं। क्या कभी इसकी वजह से काम मिलने में दिक्कत हुई?
‘शायद हुआ होगा। मैं शुरुआत से ही लाइमलाइट में नहीं रहना चाहती हूं। इंडस्ट्री के लोग कहते थे- अगर तुम इस पार्टी में नहीं गई तो नेटवर्क नहीं बनेगा। फिर काम मिलने में भी दिक्कत होगी। इन चुनिंदा लोगों की पार्टी में जाना तो जरूरी ही है। पहले तो मैं भी चली गई, फिर बाद में लगा कि अगर लोगों को काम देना होगा तो वो काम के आधार पर काम देंगे। अब उन्हीं खास पार्टी में जाती हूं, जहां वो पर्सनली इनवाइट करते हैं।
इंडस्ट्री में कभी किसी ऐसे शख्स से सामना नहीं हुआ, जिसके व्यवहार से मैंने ये फील्ड छोड़ना चाहा। हालांकि ऐसा हुआ है कि जब मैं किसी फिल्म के सिलसिले में मीटिंग में जाती थी, तो फिल्म के बारे में कम बात होती थी और मेरे पहनावे को लेकर ज्यादा ध्यान दिया जाता था। उनका कहना होता था कि मुझे ऐसे दिखना चाहिए, इस तरह की फिल्में करनी चाहिए और थोड़ा ग्लैमरस दिखना चाहिए।
ऑडिशन के दौरान लास्ट मोमेंट पर मेरे पास ड्रेस ट्रायल के लिए कॉल आया। उन्होंने तुरंत आने को कहा। बालों में तेल लगा हुआ था, मैं जल्दबाजी में बिना बाल धोए ही चली गई। वहां जब पहुंची तो शो से जुड़े एक शख्स ने मुझसे कहा- आप बाल में तेल लगाकर कैसे आ सकती हैं। मैंने जवाब में कहा- आपने ही तुरंत आने को कहा था। बाकी सब तो ठीक है, तेल ही तो लगा है बालों में। फिर उन्होंने लंबा-चौड़ा लेक्चर दिया, पर मैं ऐसी ही रही हूं।
‘वहां भी काम करके बहुत मजा आया। हां, लैंग्वेज में परेशानी आई। रात-रात भर मैं डायलॉग की प्रैक्टिस करती थी। मलयाली भाषा में भी मैंने काम किया, जिसे बोलना सबसे टफ होता है। फिर भी काफी मजा आया। वहां के कल्चर से भी बहुत कुछ सीखने को मिला।’
यामी को फिल्म विक्की डोनर से असल पहचान मिली थी। यह उनके करियर की पहली हिंदी फिल्म थी। मैंने इसी फिल्म के ऑफर के बारे में उनसे जानना चाहा।
वे कहती हैं- ‘3-4 फिल्मों का ऑडिशन एक साथ हो रहा था, इसमें से विक्की डोनर भी एक फिल्म थी। कास्टिंग डायरेक्टर जोगी जी ऑडिशन ले रहे थे। किसी कारणवश मैं सिर्फ विक्की डोनर का ही ऑडिशन दे पाई। जोगी जी को मेरा काम बहुत पसंद आया। उन्होंने कॉल कर बताया कि फिल्म के डायरेक्टर शुजित सरकार एक-दूसरे सीन का ऑडिशन देखना चाहते हैं। मैंने वो भी ऑडिशन दिया और सिलेक्ट हो गई।
सिलेक्शन के बाद मैंने जोगी जी से फिल्म की कहानी के बारे में जानना चाहा। उन्होंने बताने से मना कर दिया और कहा- स्क्रिप्ट पढ़ लो। मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी, कहानी बहुत पसंद आई और सोचा कि ऐसे मुद्दे पर कोई इतनी सुंदर कहानी कैसे बुन सकता है। परिवार को फिल्म की कहानी बहुत पसंद आई थी।’
जाते-जाते मैंने उन्हें आने वाले प्रोजेक्ट्स के लिए बधाई दी। शुक्रिया अदा करते उन्होंने कहा- इसके लिए धन्यवाद। पूरी कोशिश है कि अगली बार मिल कर हम नए प्रोजेक्ट्स पर बात करेंगे…