सेकेंड वर्ल्ड वॉर में नाजियों के टॉर्चर से मारी गई 16 साल की एन फ्रैंक की डायरी पर फिर विवाद शुरू हो गया है। एम्सटर्डम में उसके घर की दीवार पर किसी ने आपत्तिजनक बातें लिखी हैं और उसकी डायरी को झूठा बताया है।
दीवार पर लिखा गया- ऐनी फ्रैंक, बॉल पॉइंट पेन खोजने वाली। दरअसल, यूरोप में एक धड़े का मानना है ऐनी फ्रैंक की डायरी फेक है। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि ऐनी की डायरी का बड़ा हिस्सा बॉल पॉइंट पेन से लिखा गया, जबकि उस समय बॉल पॉइंट पेन ईजाद ही नहीं हुए थे।
ऐनी फ्रेंक को दुनिया शायद बहुत बड़ा राइटर न माने, लेकिन सच्चाई यह है कि इस 15 साल की लड़की की डायरी की ही 3 करोड़ से ज्यादा कॉपी बिक चुकी हैं। इतना ही नहीं, उसकी इस डायरी से इन्सपिरेशन लेकर कई फिल्में और ड्रामा बने। और तो और, कभी डायरी और ऐनी की कहानी को झुठलाने वाली डच सरकार ने इसे सही माना।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, डच सरकार इस थ्योरी को गलत साबित कर चुकी है। वहां की सरकार ने इसे झूठ साबित करने के लिए कई साल काम किया था। इसके बाद 1989 में पहली बार ऐनी फ्रैंक की डायरी को सरकार ने आधिकारिक तौर पर ऑथेंटिक कहा था। 719 पन्नों की साइंटिफिक रिपोर्ट भी दी थी। इसमें ऐनी की हैंड राइटिंग की एक्सपर्ट्स ने जांच की थी।
नीदरलैंड की पुलिस ने बताया है कि वो मामले की जांच कर रहे हैं। इसे लेकर म्यूजियम और प्रशासन से बात की गई है। नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रुट ने इसकी निंदा की उन्होंने कहा देश में एंटी सेमिटिज्म यानी यहूदियों के खिलाफ नफरत के लिए कोई जगह नहीं है।
यूरोप में कई ऐसे लोग हैं जिनका मानना है कि सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान नाजियों ने यहूदियों को किसी तरह की कोई यातना नहीं दी । यहूदी केवल सहानूभूति के लिए अपने टॉर्चर की झूठी कहानियां बनाते हैं। इस तरह का प्रोपोगैंडा फैलाने वाले लोगों को होलोकॉस्ट डिनायर यानी यहूदियों के जनसंहार को नहीं मानने वाला कहा जाता है। यही वो लोग भी हैं जो ऐनी की डायरी को फेक बताते हैं। इन लोगों का मानना है कि डायरी को किसी 16 साल की यहूदी लड़की ने नहीं लिखा है। इस तरह की अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ ऐनी फ्रैंक के पिता ऑटो फ्रैंक ने लीगल एक्शन लिए थे।
तस्वीर मशहूर होलोकॉस्ट डिनायर रॉबर्ट फॉरिसन की है। इनका मानना था कि नाजियों ने कभी यहूदियों को यातना देने के लिए कोई डेथ चेंबर नहीं बनाया था।साल 1993 में एक पत्रकार ने एनी फ्रैंक के पिता ऑटो फ्रैंक की दूसरी पत्नी का इंटरव्यू किया था। इस इंटरव्यू में फ्रिट्जी फ्रैंक ने बताया कि एक बार ऑटो फ्रैंक से काफी जाने माने होलोकॉस्ट डिनायर रॉबर्ट फॉरिसन ने मुलााकात की थी। रॉबर्ट एक फ्रेंच एकेडमिक भी थे। उन्होंने कई ऐसे आर्टिकल पब्लिश किए थे जिसमें कहा गया था कि नाजी डेथ कैंप और चेंबर कभी बने ही नहीं थे। ऑटो फ्रैंक ने जब रॉबर्ट से मुलाकात की तो ऐनी की डायरी को दिखाया। फ्रिट्जी फ्रैंक ने दावा किया कि डायरी देखने के बाद उन्होंने कहा कि इसे फेक साबित करना काफी मुश्किल है।
ऐनी मैरी फ्रैंक यहूदी थी।12 जून 1929 को उसका जन्म जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर में हुआ। जब वो चार साल की थी, तब हिटलर सत्ता में आया। यहूदियों के खिलाफ नफरत फैलाकर ही वो सत्ता तक पहुंचा था। 1934 में ऐनी का परिवार नीदरलैंड चला गया।
एनी ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा नीदरलैंड के एम्सटर्डम में बिताया। हालांकि फ्रैंक फैमिली के लिए देश बदलने से हालात नहीं बदले। यहूदी होने की वजह से 1941 में ऐनी की जर्मन नागरिकता छीन ली गई।
दो साल तक छिपने के बाद 4 अगस्त 1944 में नाजी सेना ने ऐनी के परिवार को ढूंढा और ऑशविट्ज़ के कॉन्संट्रेशन कैम्प में डाल दिया। डायरी में आखिरी बार एनी ने इस दिन लिखा था।ऐनी अपनी डायरी डच भाषा में लिखती थी। ऐनी 15 साल की थी, जब कॉन्संट्रेशन कैम्प में टाइफस से उसकी और उसकी बहन मार्गो की मौत हो गई। मां भूख से मरीं। युद्ध खत्म होने तक सिर्फ पिता ओटो फ्रैंक ही बचे और एम्स्टर्डम लौट सके। ओटो ने 25 जून 1947 को बेटी की डायरी छपवा दी। ये डायरी 1952 में ‘द डायरी ऑफ यंग गर्ल’ के नाम से इंग्लिश में छपी। ऐनी की ये डायरी इतनी मशहूर हुई कि अब तक 70 भाषा में प्रकाशित हो चुकी है। 3 करोड़ से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। इस डायरी के आधार कई फिल्में और ड्रामा बने।