भारत के पास स्वर कोकिला लता मंगेशकर थीं और पाकिस्तान के पास मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहां। भारत में ही जन्मीं, पली-बढ़ी और गायिका बनने वाली नूरजहां बंटवारे के बाद पाकिस्तान चली गईं। पाकिस्तान की सबसे बड़ी शख्सियतों में गिनी जाने वाली नूरजहां की गायिकी और खूबसूरती दोनों के दीवाने दुनियाभर में थे। आज इन्हीं मल्लिका-ए-तरन्नुम की 22वीं पुण्यतिथि है।
कहते हैं इनकी आवाज में बड़ी कशिश थी। 6 साल की उम्र से गाना शुरू कर दिया था। गाने में इनका शौक देखा तो फिर माता-पिता ने संगीत की तालीम दिलवाई। नूरजहां भारतीय सिनेमा की शुरुआती स्टार रहीं, पंजाबी सिनेमा को स्थापित करने में इनका बड़ा हाथ रहा। फिर देश के दो टुकड़े हुए और नूरजहां पाकिस्तान के हिस्से गईं।
नूरजहां की जिंदगी प्यार भरे गाने और गजलों से भरी थी। खुद वो भी कम आशिकाना नहीं थीं। कहा जाता है कि उन्हें बदसूरत आदमियों को अपने सामने बैठाना भी नागवार था। अच्छे दिखने वाले लोगों से घिरे रहना पसंद था। दो शादियां कीं, छह बच्चों की मां थीं। दोनों पतियों से तलाक के बाद अपने 6 बच्चों को इन्होंने अपने दम पर पाला। दो अफेयर भी रहे। एक पाकिस्तानी टेस्ट क्रिकेटर का करियर इनके कारण ही वक्त से पहले खत्म हो गया। उस जमाने में पाकिस्तानी तानाशाह से भी इनका नाम जुड़ता रहा। नूरजहां की पाकिस्तान में वो दीवानगी थी कि उनके जनाजे में चार लाख लोग शामिल हुए थे।
नूरजहां का जन्म पंजाब में एक पंजाबी-मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनका बचपन में नाम अल्लाह राखी वसई था। नूरजहां इमदाद अली और फतेह बीबी के 11 बच्चों में से एक थीं। जब वो पैदा हुईं तो उनके रोने की आवाज सुन बुआ ने कहा था, इस बच्ची के रोने में भी धुन है।
नूरजहां के माता-पिता थिएटर से जुड़े थे। यही वजह थी कि बचपन से ही उनका झुकाव संगीत की तरफ था। उन्होंने 6 साल की उम्र से गाना शुरू कर दिया। इतनी कम उम्र में भी वह पारंपरिक लोक गीत गा लेती थीं। संगीत में उनकी रुचि देखकर पिता ने उन्हें उस्ताद गुलाम मोहम्मद के पास संगीत की शिक्षा लेने के लिए भेज दिया।
संगीत सीखने के बाद नूरजहां ने अपनी बहन के साथ लाहौर में गाना शुरू कर दिया। वो अधिकतर लाइव परफॉर्मेंस और फिल्मों की स्क्रीनिंग के मौके पर गाती थीं।
नूरजहां के पिता जिस थिएटर में काम करते थे, वहां के थिएटर मालिक ने परिवार सहित उनको कलकत्ता भेज दिया। परिवार भी इस उम्मीद में कलकत्ता आया कि नूरजहां और उनकी बहनों का भविष्य संवर जाएगा।
1935 में पंजाबी फिल्म पिंड दी कुड़ी रिलीज हुई थी, जिसका निर्देशन केडी मेहरा ने किया था। इस फिल्म में नूरजहां ने अपनी बहनों के साथ गाना गाया और फिल्म में एक्टिंग भी की थी। उनके करियर की ये पहली फिल्म हिट रही। इसके बाद उनका ये सफर नहीं रुका।
1947 तक नूरजहां ने कई हिंदी फिल्मों में काम किया। देश के बंटवारे के बाद उन्होंने पाकिस्तान जाकर बसने का फैसला किया। मुंबई छोड़कर वो परिवार समेत कराची जाकर बस गईं। वहां जाने के 3 साल बाद उन्होंने 1951 में रिलीज हुई फिल्म चन वे में काम किया। ये उनके करियर की पहली पाकिस्तानी फिल्म थी जिसमें उन्होंने बतौर एक्टर और प्लेबैक सिंगर काम किया था। 1951 की ये हाईएस्ट ग्रॉसिंग फिल्म रही। खास बात ये भी है कि इस फिल्म को उन्होंने शौकत हुसैन रिजवी के साथ मिलकर डायरेक्ट किया, जिस वजह से नूरजहां को पहली पाकिस्तानी डायरेक्टर का भी खिताब मिला।
भारत में ही 1942 में नूरजहां ने शौकत हुसैन रिजवी के साथ शादी की थी। शादी के 11 साल बाद ही दोनों के रिश्ते में कड़वाहट शुरू हो गई थी। हालात ये हो गए कि 1953 में दोनों ने तलाक ले लिया। तलाक के बाद उन्होंने अपने तीनों बच्चों की कस्टडी अपने पास रखी।
इसके पांच साल बाद ही उन्होंने नौ साल छोटे फिल्म अभिनेता एजाज दुर्रानी से दूसरी शादी कर ली। शादी के कुछ समय बाद ही दुर्रानी उन पर फिल्मों में एक्टिंग ना करने का दबाव बनाने लगे। उन्होंने अपने पति की इस बात को नकारा नहीं और 1961 में रिलीज हुई फिल्म गालिब उनके करियर की आखिरी फिल्म रही जिसमें उन्होंने बतौर एक्टर और सिंगर काम किया। हालांकि वो 1963 की फिल्म बाजी में भी नजर आईं थीं, लेकिन उसमें उनका रोल बहुत छोटा था
इस शादी से नूरजहां को 3 बच्चे हुए थे। 6 बच्चों की मां और एक सफल एक्टर की पत्नी होने की वजह से उनको पूरी तरह से अपने एक्टिंग करियर को छोड़ना पड़ा। इस शादी के लिए उन्होंने अपना करियर भी दांव पर लगा दिया, फिर भी ये शादी सफल नहीं रही और 1971 में उन्होंने दुर्रानी से तलाक ले लिया। तलाक के बाद लंदन में दुर्रानी को पुलिस ने ड्रग्स मामले में गिरफ्तार कर लिया था, जिसके बाद उनकी बेल नूरजहां ने ही कराई थी।
ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तानी क्रिकेटर नजर मोहम्मद का टेस्ट करियर समय से पहले ही खत्म हो गया था। किस्सा ये है कि एक बार नूर के पति (दूसरे पति दुर्रानी जिनसे बाद में नूरजहां ने तलाक ले लिया था) ने उन्हें और नजर को साथ में एक कमरे में देख लिया था। उनके पति के डर की वजह से नजर पहली मंजिल की खिड़की से कूद गए। इस वजह से उनका हाथ टूट गया था। बाद में उसे ठीक करने के लिए एक पहलवान को बुलाया गया था। इससे दिक्कत और बढ़ गई। हाथ ठीक ना होने की वजह से नजर का करियर खत्म हो गया।
नूरजहां की फैन लिस्ट में पाकिस्तानी सेना के जनरल याह्या खान का नाम भी शामिल है। जो आगे चलकर पाकिस्तान के तानाशाह और तीसरे राष्ट्रपति बने। किस्सा उस वक्त का है जब नूरजहां लंदन से लाहौर लौट रहीं थीं और उन्हें कराची रुकना पड़ा। जब ये बात कराची के रेडियो स्टेशन को पता चली तो उन्होंने झट से गाड़ी भेजकर नूरजहां को स्टूडियो बुलाकर उनसे तीन गीत गाने की गुजारिश की। इन गानों को गाने के बाद नूरजहां ने कहा- मेरी बात याह्या खान से करवाओ।
उनकी इस डिमांड के बाद वहां मौजूद सभी लोग चिंता में पड़ गए और सोचने लगे कि कैसे देश के सबसे बड़े जनरल की बात नूरजहां से करवाएं। जब किसी की भी फोन लगाने की हिम्मत नहीं हुई तो नूरजहां ने खुद से ही उस रेडियो स्टेशन से तानाशाह जनरल याह्या खान को फोन लगा दिया। उन्होंने फोन पर कहा, ‘हैल्लो.. हां चंदा, मैं हुने हुने तीन गीत रिकॉर्ड कराएने, आज रात आठ बजे सुन लवीं…’ मतलब कि, मैंने यहां तीन गाने रिकॉर्ड किए हैं। आप रात 8 बजे सुन लेना।
उन्होंने इतना कहकर फोन काट दिया, लेकिन उनके इस कदम से पूरे रेडियो स्टेशन में हड़कंप मच गया। वजह ये थी रात 8 बजे रेडियो पर पाकिस्तान की खबरें प्रसारित होती थीं। ये बात रेडियो के वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचाई गई जिसके बाद ये पूरा मामला सेना मुख्यालय तक भी पहुंचा। आखिर में यही फैसला लिया गया कि समाचार 8 बजे ही प्रसारित होंगे, लेकिन उसके ठीक बाद नूरजहां के गाने सुनाए जाएंगे। खबरें ये भी थीं जनरल और नूरजहां का अफेयर भी था, लेकिन दोनों ने ये बात कभी स्वीकार नहीं की।
स्वर कोकिला लता मंगेशकर का कम्पैरिजन नूरजहां से किया जाता था। कहा ये भी जाता था कि अगर पार्टिशन के दौरान नूरजहां पाकिस्तान नहीं जातीं तो लता का सिंगिंग करियर इतनी ऊंचाइयों पर नहीं होता।
हालांकि, नूरजहां ने 14 साल की लता को देखकर ये बात कही थी कि ये एक दिन बड़ी सिंगर बनेगी। लता भी नूरजहां की बहुत बड़ी फैन थीं और उनको अपना आइडल मानती थीं और खाली समय में नूरजहां भी उनके गाने सुना करती थीं।
देश के बंटवारे के बाद लता मंगेशकर और नूरजहां की मुलाकात भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर हुई थी। दोनों एक-दूसरे को देखकर बहुत भावुक हो गई थीं और लिपटकर रोने लगी थीं। नूरजहां की हिंदी सिनेमा में सिर्फ लता ही नहीं बल्कि धर्मेंद्र समेत कई एक्टर्स के साथ गहरी दोस्ती थी।
1951 में लता दीदी और नूरजहां के डुएट सॉन्ग के लिए फेमस कम्पोजर सी रामचंद्र लता को लेकर अटारी पहुंचे थे, पर उनके पास वीजा-पासपोर्ट नहीं थे। इस वजह से उन्हें बॉर्डर पर ही रोक लिया गया। तब सी. रामचंद्र के जरिए नूरजहां से लता की बात हुई, लेकिन दोनों मिलना चाहती थीं। इसके बाद दोनों की मुलाकात बॉर्डर (जीरो लाइन) पर हुई।
कामयाबी के शिखर पर पहुंचने के बाद भी नूरजहां हमेशा जमीन से जुड़ी रहीं। लेखक एजाज गुल ने लिखा था कि नूरजहां अक्सर अपने घर पर गानों का रियाज करती थीं। एक बार वो उनसे मिलने गए थे तो वहां पर निसार बज्मी पहले से मौजूद थे। दोनों के लिए नूरजहां ने चाय मंगवाई। जब वो चाय दे रही थीं तभी उसकी कुछ बूंदें कप से छलक कर निसार के जूतों पर गिर गईं। ये देख नूरजहां ने फौरन झुक कर अपनी साड़ी के पल्लू से निसार के जूतों पर गिरी चाय को साफ कर दिया। निसार ने उन्हें बहुत रोका, लेकिन वो नहीं मानीं और कहा-आप जैसे लोगों की बदौलत आज मैं इस मुकाम पर हूं, तो आप लोगों की सेवा करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।
बंटवारे के बाद नूरजहां 1983 में पहली और आखिरी बार अपनी बेटियों के साथ भारत आई थीं। भारत आने के बाद उन्होंने दिलीप कुमार के साथ दूरदर्शन मुंबई में एक इंटरव्यू दिया था। इस दौरान वो बंटवारे के दिनों को याद करते हुए भावुक हो गई थीं।
1992 में नूरजहां ने गाना बंद कर दिया था। इसके 8 साल बाद 2000 में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार जामिया मस्जिद सुल्तान, कराची में हुआ था जिसमें चार लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। 74 साल की उम्र में जब उनका निधन हुआ था, तब पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने कहा था कि उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ लाहौर में किया जाए, लेकिन उनकी बेटी नहीं मानी जिस वजह से उन्हें कराची में सुपुर्द-ए-खाक किया गया।