आज कहानी पी.यू. चिनप्पा की। ये तमिल सिनेमा के वो सुपरस्टार थे, जिनके साथ फिल्मी सितारों को भगवान की तरह पूजे जाने का रिवाज शुरू हुआ। चिनप्पा गायक थे, पहलवान थे, तलवारबाजी भी जानते थे और लठ चलाना भी। जब ये गाते थे तो स्टेज पर नोटों की बरसात होती थी। पहलवानी के कारण शरीर भारी हो गया और हीरो के रोल मिलने में दिक्कतें आईं तो चिनप्पा ने लगातार 40 दिनों तक भूखे रहकर अपना वजन कम किया और इसके बाद लगातार हिट फिल्में दीं।
चिनप्पा ही पहले एक्टर थे जिन्होंने अपनी कमाई को रियल स्टेट में इन्वेस्ट करना शुरू किया। अपने होमटाउन पुदुकोट्टाई (तमिलनाड़ु) में इन्होंने 30 घर खरीदे। ये बात वहां के राजा को पता चली तो इन पर घर खरीदने पर रोक लगा दी गई। चिनप्पा ने चेन्नई में भी 20 घर खरीदे। एक समय वो 50 बंगलों के मालिक थे। अपनी सारी जमा पूंजी प्रॉपर्टी में लगा दी। 34 साल की उम्र में एक दिन अचानक मुंह से खून निकला और रहस्यमयी तरीके से कुछ ही मिनटों में इनकी मौत हो गई। आज भी ये पता नहीं चल सका कि इनकी मौत का वास्तविक कारण क्या था।
चिनप्पा की मौत के बाद उनके परिवार का बुरा हाल हो गया। वे पाई-पाई को मोहताज हो गए। पी.यू. चिनप्पा 1940 के दशक के सुपरस्टार थे, लेकिन आज भी तमिलनाड़ु सहित साउथ इंडिया की सारी स्टेट्स में इनकी फिल्मों की DVD सबसे ज्यादा डिमांड में होती हैं और चैनल्स पर इनकी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में आज भी दिखाई जाती हैं। ये पहले एक्टर थे जिनकी एक फिल्म के 1 करोड़ टिकट बिके थे।
तो, आज की अनसुनी दास्तानें में पढ़िए एक चौथी तक पढ़े एक्टर-सिंगर की कहानी, जिसके पास अपने जमाने में सबसे ज्यादा घर खरीदने का रिकॉर्ड है और उसकी मौत आज भी एक मिस्ट्री…
पी.यू.चिनप्पा। पूरा नाम पुदुकोट्टाई उलागनाथ पिल्लई चिनप्पा। इनका जन्म 5 मई 1916 को पदुकोट्टाई, तमिलनाडु में हुआ था। पिता उलागनाथ पिल्लई एक स्टेज आर्टिस्ट थे, जिससे घर का गुजारा होना काफी मुश्किल था। 5 साल के चिनप्पा भी पिता के साथ नाटक देखने जाते थे। इसी समय उन्हें 5 रुपए महीने पर बैकस्टेज रस्सियों के मैनेजमेंट के लिए रख लिया गया।
पिता को देखते हुए बचपन से ही चिनप्पा भी पढ़ाई की जगह स्टेज और नाटकों में रुचि रखने लगे। नतीजतन चौथी क्लास के बाद ही इनकी पढ़ाई छूट गई। एक्टिंग का हुनर ऐसा था कि जिस भी नाटक का हिस्सा बनते थे, वहां खूब तारीफें मिलती थीं।
चिनप्पा का एक्टिंग की तरफ झुकाव देखकर उनके पिता ने उनके एक्टिंग करियर को सपोर्ट किया। 8 साल की उम्र में पिता ने उन्हें एक्टिंग सीखने के लिए एक्टिंग क्लास मीनालोक्षणि विद्वाबाला सभा भेजा। यहां पहले ही नामी लोग एक्टिंग सीख रहे थे, तो चिनप्पा को यहां कोई काम नहीं मिल सका और उन्होंने कुछ समय में ही सभा छोड़ दी। इसी समय मदुरई ओरिजिनल बॉयज कंपनी नाटक मंडली पुदुकोट्टाई पहुंची। यहां चिनप्पा को छोटे-मोटे रोल के लिए मंडली में 15 रुपए महीने में 3 साल के कॉन्ट्रैक्ट पर काम मिल गया।
एक दिन कंपनी हाउस में चिनप्पा स्टेज प्ले ‘साथी अनुसाया’ के लिए गाना गा रहे थे। इसी कंपनी हाउस के टॉप फ्लोर पर कंपनी के मालिक सच्चिदानंद पिल्लई ठहरे हुए थे, जो चिनप्पा की आवाज पर मोहित हो गए। सच्चिदानंद ने आवाज सुनते ही लोगों से पूछा कि गाने वाला शख्स कौन है और उसे मिलने बुलाया। सच्चिदानंद ने चिनप्पा से दोबारा गाना गाने को कहा। जब उन्होंने सबके सामने गाना शुरू किया तो सच्चिदानंद ने उनकी सैलरी 15 रुपए महीना से सीधे 75 रुपए महीना कर दी। अब चिनप्पा कोई साइड कलाकार नहीं बल्कि उस थिएटर कंपनी के लीड हीरो बन गए थे।
बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ हीरो का अभिनय आम हो चुका था। ऐसे में चिनप्पा इकलौते हीरो थे जो स्टेज पर अपने गाने खुद गाते थे। ये एक बार में आधे घंटे तक स्टेज पर परफॉर्म करते थे, जिसे देखकर लोग उन पर सिक्कों और नोटों की बारिश कर दिया करते थे। आधे घंटे की परफॉर्मेंस के बाद चंद ही ऐसे मौके रहे जब लोगों ने इनसे दोबारा गाने को ना कहा हो।
कंपनी वाले अक्सर मामूली कारणों से आर्टिस्ट को निकाल दिया करते थे, ऐसे में जब चिनप्पा की आवाज बदलने लगी तो उन्होंने गुपचुप तरीके से खुद ही कंपनी छोड़ दी और गांव जाकर छोटे-मोटे प्ले करने लगे, हालांकि इससे उनका गुजारा मुश्किल से होता था। गांव में चिनप्पा ने तलवारबाजी और लठबाजी जैसी कई चीजें सीखीं। कुश्ती में कदम रखा तो इन्हें कई बार इनाम मिले। पहलवानी करते हुए इन्होंने जिम और नाटक करते हुए अपनी ड्रामा कंपनी शुरू की।
एक दिन स्टेज प्ले चंद्रकांता में चिनप्पा के अभिनय से फिल्म कंपनी वाले इतना इम्प्रेस हुए कि उन्हें हीरो का रोल मिल गया। तमिलनाडु की ज्यूपिटर पिक्चर्स ने उन्हें लेकर फिल्म चंद्रकांता बनाई, जो 1936 में रिलीज हुई। इस तरह चिनप्पा का फिल्मों से रिश्ता जुड़ गया।
पहलवानी करने से चिनप्पा का वजन काफी बढ़ गया था, जिससे उनकी आवाज भी खराब हो रही थी। खुद में सुधार करने के लिए चिनप्पा ने फिल्मों से दूरी बना ली। इस बीच उन्हें चंद बड़ी फिल्में भी ऑफर हुईं, लेकिन उन्होंने सारी फिल्में करने से इनकार कर दिया।
जहां एक तरफ चिनप्पा ने वजन बढ़ने पर खुद फिल्में छोड़ दी थीं, वहीं कुछ फिल्म क्रिटिक्स ऐसे भी थे जिन्होंने उनका खूब मजाक उड़ाया। आलोचना करने वाले लोग कहते थे कि पी.यू. चिनप्पा, पी.यू. पेरियप्पा (दादा) बन गए हैं। इस समय भी चिनप्पा ने धैर्य बनाए रखा और पलटकर कोई जवाब नहीं दिया
चिनप्पा अपना वजन पहले जितना करना चाहते थे, जिससे उनकी आवाज पहले जैसी मधुर हो जाए। उन्होंने वजन कम करने के लिए खाना छोड़ दिया और वो लगातार 40 दिनों तक भूखे रहे। उन्होंने खुद को इतना फिट बना लिया कि उन्हें हीरो के रोल आसानी से मिल सकें।
वजन घटने के बाद चिनप्पा को फिल्म उथामा पुथिरन मिली, जिसमें उन्होंने डबल रोल निभाया। ये तमिल सिनेमा की डबल रोल वाली पहली फिल्म थी, जो एक ब्लॉकबस्टर साबित हुई। आगे चिनप्पा के खाते में धयालन, धरमवीरम, प्रुथिविराजन और मनोनमणि जैसी कई हिट फिल्में आईं और वो 40 के दशक के सुपर स्टार बन गए।
1941 में चिनप्पा आर्यमाला फिल्म में नजर आए। ये एक जबरदस्त हिट फिल्म रही, जिसके बाद चिनप्पा को बॉक्स ऑफिस हीरो का दर्जा मिला। इस फिल्म के 6 गानों को पी.यू. चिनप्पा ने ही गाया था। एक गाने में चिनप्पा 7 अलग-अलग अवतारों में नजर आए थे। ये ऐसा करने वाले पहले एक्टर थे। 3 घंटे 38 मिनट की ये फिल्म भारत की सबसे लंबी फिल्मों की लिस्ट में 9वें नंबर पर है। वहीं ये सबसे लंबी तीसरी तमिल फिल्म भी है।
चिनप्पा का मुकाबला उस समय के स्टार एम.के. त्यागराजा भगवतार (MKT) से था। दोनों को ही साउथ में फैंस भगवान की तरह पूजते थे। जैसे ही इनकी या MKT की फिल्म रिलीज होती तो फैन सड़कों पर उतर आते और अपने मनपसंद सितारे की फिल्म की वाहवाही करते थे। जब साउथ के सबसे बड़े सुपरस्टार MKT को मर्डर के आरोप में जेल हुई तो उनके हिस्से की सभी फिल्में चिनप्पा के पास आ गईं। MKT की जगह चिनप्पा ने ले ली, लेकिन फैन फॉलोइंग में दोनों हमेशा बराबरी पर रहे।
जब चिनप्पा की फिल्में लगती थीं तो फैंस इसे दीवाली और पोंगल की तरह सेलिब्रेट करते थे। चाहने वाले घंटों तक लंबी कतारों में लगकर टिकट मिलने का इंतजार करते थे। इनकी स्टाइल को बड़ी तादाद में लोग कॉपी करते और इनकी तस्वीरें घरों में लगाते। जहां से गुजरते थे वहां भीड़ लग जाया करती थी। वहीं जब इन्हें टक्कर देने वाले हीरो एम.के. त्यागराजा की फिल्में लगती थीं तो इनके फैन थिएटर के आस-पास भी नहीं फटकते थे।
पी.यू. चिनप्पा और पी. कनंबा स्टारर फिल्म कन्नागी साल 1942 में रिलीज हुई एक माइथोलॉजिकल फिल्म थी। इस फिल्म को भारत के 110 बड़े शहरों में रिलीज किया गया था। ये इतनी बड़ी हिट थी कि इसे एक साल तक सिनेमाघर में रखा गया था, इस फिल्म के1 करोड़ से ज्यादा टिकट बिके थे।
1943 की फिल्म पृथ्वीविराजन में काम करते हुए चिनप्पा को अपनी को-स्टार ए. शकुंतला से प्यार हो गया और दोनों ने 5 जुलाई 1944 को शादी कर ली। इनका एक बेटा पी.यू.सी. राजा बहादुर भी है।
अपने कामयाबी के दिनों में चिनप्पा को घर खरीदने का ऐसा शौक रहा कि वो हर फिल्म से मिलने वाली रकम से एक नया घर खरीद लिया करते थे। चिनप्पा ने अपने होमटाउन पुदुकोट्टाई में 30 घर खरीद लिए थे, जो उस समय अपने आप में एक रिकॉर्ड था।
जैसे ही चिनप्पा के घरों की जानकारी पुदुकोट्टाई के राजा राजगोपाला तोंडाइमन को मिली तो उन्होंने इस पर आपत्ति जताई। राजा ने पहले तो उन्हें नए घर खरीदने से रोक दिया और फिर रजिस्ट्री करने वालों दफ्तरों को आदेश दिए कि चिनप्पा को घर ना बेचे जाएं
राजा द्वारा बैन लगाए जाने के बावजूद चिनप्पा नहीं रुके। उन्होंने पुदुकोट्टाई की जगह मद्रास (अब चेन्नई) में घर खरीदने शुरू कर दिए। एक समय में चिनप्पा के पास करीब 50 घर थे।
1943 में सी.एन. लक्ष्मीकांत नाम के एक पत्रकार ने फिल्मी कलाकारों पर सिनेमा थूथु पत्रिका शुरू की, जिसमें वो सितारों की पर्सनल जिंदगी से जुड़ी खबरें छापते थे और खूब बदनामी करते थे। कई बड़ी हस्तियों ने लक्ष्मीकांत को उनसे जुड़ी खबरें ना छापने के लिए रिश्वत दी, लेकिन उसने निजी बातें छापनी जारी रखीं। तमिल के टॉप एक्टर MKT, डायरेक्टर एन.एस. कृष्णा और एस.एन. नायडु ने लक्ष्मीकांत के खिलाफ नकली दस्तावेजों की मदद से पत्रिका चलाने की शिकायत की तो पत्रिका पर रोक लग गई।
इसी समय लक्ष्मीकांत की हत्या कर दी गई। जख्मी हालत में लक्ष्मीकांत ने पुलिस स्टेशन जाकर MKT समेत कई नामी लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी, जिससे उन्हें हत्या के आरोप में जेल हुई थी। लक्ष्मीकांत पत्रिका में चिनप्पा के बारे में भी तमाम तरह की गॉसिप लिखा करता था, लेकिन उन्होंने कभी उसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया। यही कारण था कि इस केस में चिनप्पा को आसानी से छोड़ दिया गया, जबकि बाकी हस्तियों को जेल हुई थी।
23 सिंतबर 1951 के दिन चिनप्पा अपने करीबी दोस्त के साथ फिल्म मनामगल देखने गए। 10 बजे के करीब फिल्म खत्म हुई और चिनप्पा दोस्त के साथ ही टहलते हुए घर की तरफ आने लगे। रास्ते में उन्होंने दोस्त से शिकायत की कि उन्हें चक्कर आ रहे हैं। कुछ मिनट में ही चिनप्पा को खून की उल्टी हुई और वो बेहोश हो गए। चिनप्पा की ये हालत देख दोस्त हड़बड़ी में उन्हें अस्पताल ले गया, जहां डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। 34 साल की उम्र में चिनप्पा दुनिया से विदा हो गए।
नप्पा की बेहोशी और उनके मुंह से खून आने का कारण डॉक्टर्स की समझ से परे था। मौत से पहले कभी भी चिनप्पा को किसी भी बीमारी के लिए अस्पताल नहीं जाना पड़ा था। अचानक हुई उनकी संदिग्ध मौत की वजह तक डॉक्टर्स पकड़ नहीं पाए। हालांकि डॉक्टर्स ने इस बात पर मत बना लिया कि मौत का कारण उनकी बीड़ी और शराब की लत थी।
कई चाहने वालों ने इनकी मौत पर शक जाहिर किया, क्योंकि एक स्वस्थ व्यक्ति का यूं अचानक गुजर जाना बेहद शॉकिंग था। तमिल सिनेमा के नामी इतिहासकारों अरनथाई नारायण और रांदोर गाय ने भी इनकी रहस्यमयी मौत को नैचुरल मौत मानने का विरोध किया। वे हत्या की आशंका जताते रहे।
24 सितंबर 1951 को चिनप्पा का अंतिम संस्कार हुआ, जिसमें हजारों की भीड़ और चाहने वाले शामिल हुए। उनके शव को उन्हीं के एक बगीचे में दफनाया गया था।
चिनप्पा ने जीते जी अपनी सारी जमापूंजी घर खरीदने में लगा दी थी, जिसकी सही जानकारी और जरूरी डॉक्यूमेंट्स उनके परिवार के पास नहीं थे। जबकि प्रॉपर्टी के अलावा चिनप्पा के पास कोई सेविंग्स नहीं थीं। जिन लोगों को चिनप्पा के घरों की जानकारी थी, उन्होंने वो प्रॉपर्टी हड़प ली। वहीं कुछ प्रॉपर्टी ऐसी भी थीं जिनके मालिक का पता नहीं चला तो वो गुमनाम ही रहीं।
चिनप्पा के बेटे पी.यू.सी राजबहादुर ने तमिल फिल्म कोविल पुरा से फिल्मों में जगह बनानी चाही, हालांकि ये फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो गई। इसके बाद राजबहादुर चंद फिल्मों में साइड या नेगेटिव रोल करते नजर आए। जब एक्टिंग के मौके मिलने बंद हो गए तो उन्होंने राइटिंग और डबिंग कर घर चलाया।
मलयाली सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले जेसी डेनियल पर बनी फिल्म सेल्यूलॉइड के अनुसार वो पी.यू. चिनप्पा ही थे, जिन्होंने जेसी डेनियल को फिल्म बनाने में मदद की थी। जब जेसी डेनियल के पास पैसे नहीं थे तो चिनप्पा ने उन्हें पुदुकोट्टाई बुलाया और उन्हें आर्थिक मदद दी। हालांकि फिल्म के अनुसार चिनप्पा ने आखिरी समय में जेसी डेनियल का साथ छोड़ दिया था।
दुनिया का सबसे मनहूस गाना ग्लूमी संडे। एक अधूरी प्रेम कहानी के बाद लिखे गए इस गाने को सुनकर 200 लोगों ने आत्महत्या कर ली। मौत के बाद जो भी सुसाइड नोट मिले उसमें गाने के बोल लिखे होते थे वहीं कई के कमरों में गाना बजता मिलता था। जिसने गाना लिखा उसने भी आत्महत्या कर ली और जिसके लिए लिखा गया उस लड़की ने भी। मौतों के डर से इस गाने को करीब 63 सालों तक बैन रखा गया था।
मां ने ठुकराया और पिता ने वेश्यालय में छोड़ा:मालिक का मर्डर करने और देशद्रोह के आरोप लगे, फिर भी बनीं फ्रांस की सबसे बड़ी स्टार
ये आखिरी शब्द थे फ्रांस की सबसे बड़ी एंटरटेनर और लीजेंड्री सिंगर एडिथ पियाफ के। पेरिस की सड़क पर इनका जन्म हुआ, पैदाइश के तुरंत बाद मां ने उन्हें ठुकरा दिया और पिता वेश्यालय में छोड़कर चले गए, जहां सेक्स वर्कर्स ने इनकी परवरिश की। टैलेंट की बदौलत ये फ्रांस की सबसे बड़ी सिंगर बनीं। प्लेन क्रैश में जब प्रेमी की मौत हुई तो पियाफ शराबी बन गईं और नशा ही इनकी जिंदगी का दुश्मन बन गया। पियाफ की जब मौत हुई तो खबर सुनकर ही दोस्त की भी हार्ट अटैक से मौत हो गई। कई फैंस सदमे में चले गए। एक लाख लोगों की भीड़ ने इन्हें अंतिम विदाई दी। वर्ल्ड वॉर 2 के बाद ये पहली बार था जब पेरिस की सड़कों का ट्रैफिक थमा था।