अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का आर्टेमिस-1 मून मिशन आज पूरा हो गया। रविवार रात 11 बजकर 10 मिनट पर ओरियन स्पेसक्राफ्ट 14 लाख मील की यात्रा कर पृथ्वी पर वापस लौट आया। इसकी लैंडिंग मेक्सिको के ग्वाडालूप द्वीप के पास प्रशांत महासागर में हुई। नासा ने 25 दिन पहले 15 नवंबर को यह मिशन तीसरी कोशिश में लॉन्च किया था।ये तस्वीर ओरियन स्पेसक्राफ्ट की है। इसे नासा की तरफ से जारी किया गया है। स्पेसक्राफ्ट 14 लाख मील की यात्रा करने के बाद प्रशांत महासागर में लैंड।
नासा के मुताबिक पृथ्वी में ओरियन की एंट्री खास है। पहली बार ‘स्किप एंट्री’ तकनीक अपनाकर धरती पर लैंडिंग हुई। इस प्रोसेस में तीन स्टेप्स थे। सबसे पहले ओरियन ने पृथ्वी के वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में एंट्री की। इसके बाद यह अपने अंदर मौजूद कैप्सूल की मदद से वायुमंडल के बाहर आया। आखिर में पैराशूट के जरिए दोबारा वायुमंडल के अंदर आ गया।
स्किप एंट्री के दौरान स्पेसक्राफ्ट के क्रू मॉड्यूल और सर्विस मॉड्यूल एक दूसरे से अलग हो गए। सर्विस मॉड्यूल आग में झुलस गया, तो वहीं क्रू मॉड्यूल अपनी तय जगह पर पैराशूट के सहारे गिरा। वायुमंडल में दोबारा एंट्री से उसकी गति काफी धीमी हुई।
बता दें कि आर्टेमिस-1 मिशन एक टेस्ट फ्लाइट है। नासा आर्टेमिस-2 मिशन में एस्ट्रोनॉट्स को भेजने की तैयारी कर रहा है। ऐसे में धरती पर ओरियन की लैंडिंग पर वैज्ञानिकों की पैनी नजर रही। इसके अलावा स्किप एंट्री नासा की लेटेस्ट टेक्नोलॉजी है और ओरियन इसका पहला अटेम्प्ट था। अब टेस्ट फ्लाइट के रिजल्ट पर ही अगली फ्लाइट की तैयारी निर्भर करती है। इसे 2024 में लॉन्च करने की प्लानिंग है।
अमेरिका 53 साल बाद एक बार फिर आर्टेमिस मिशन के जरिए इंसानों को चांद पर भेजने की तैयारी कर रहा है। इसे तीन भागों में बांटा गया है। आर्टेमिस-1, 2 और 3। आर्टेमिस-1 ने चंद्रमा का चक्कर लगाया, कुछ छोटे सैटेलाइट्स छोड़े और चांद के कई जरूरी फोटोज-वीडियोज उपलब्ध कराए।
2024 के आसपास आर्टेमिस-2 को लॉन्च किया जाएगा। इसमें कुछ एस्ट्रोनॉट्स भी जाएंगे, लेकिन वे चांद पर कदम नहीं रखेंगे। वे सिर्फ चांद के ऑर्बिट में घूमकर वापस आ जाएंगे। इस मिशन की अवधि ज्यादा होगी।
इसके बाद फाइनल मिशन आर्टेमिस-3 को रवाना किया जाएगा। इसमें जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स चांद पर उतरेंगे। यह मिशन 2025 या 2026 में लॉन्च किया जा सकता है। पहली बार महिलाएं भी ह्यूमन मून मिशन का हिस्सा बनेंगी। इसमें पर्सन ऑफ कलर (श्वेत से अलग नस्ल का व्यक्ति) भी क्रू मेम्बर होगा। एस्ट्रोनॉट्स चांद के साउथ पोल में मौजूद पानी और बर्फ पर रिसर्च करेंगे।
अपोलो मिशन की आखिरी और 17वीं फ्लाइट ने 1972 में उड़ान भरी थी। इस मिशन की परिकल्पना अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जे एफ केनेडी ने सोवियत संघ को मात देने के लिए की थी। उनका लक्ष्य अमेरिका को साइंस एंड टेक्नोलॉजी की फील्ड में दुनिया में पहले स्थान पर स्थापित करना था। हालांकि करीब 50 साल बाद माहौल अलग है।
अब अमेरिका आर्टेमिस मिशन के जरिए रूस या चीन को मात नहीं देना चाहता। नासा का मकसद पृथ्वी के बाहर स्थित चीजों को अच्छी तरह एक्सप्लोर करना है। चांद पर जाकर वैज्ञानिक वहां की बर्फ और मिट्टी से ईंधन, खाना और इमारतें बनाने की कोशिश करना चाहते हैं।
नासा ऑफिस ऑफ द इंस्पेक्टर जनरल के एक ऑडिट के अनुसार, 2012 से 2025 तक इस प्रोजेक्ट पर 93 बिलियन डॉलर, यानी 7,434 अरब रुपए का खर्चा आएगा। वहीं, हर फ्लाइट 4.1 बिलियन डॉलर, यानी 327 अरब रुपए की पड़ेगी। इस प्रोजेक्ट पर अब तक 37 बिलियन डॉलर, यानी 2,949 अरब रुपए खर्च किए जा चुके हैं।