सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य का बयान : रामचरित मानस बकवास, बैन लगना चाहिए

बिहार के शिक्षामंत्री चंद्रशेखर के बाद अब यूपी में समाजवादी पार्टी के MLC स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी रामचरित मानस को लेकर विवादित बयान दिया है। मौर्य ने रविवार को कहा- कई करोड़ लोग रामचरित मानस को नहीं पढ़ते। यह तुलसीदास ने अपनी खुशी के लिए लिखा है। सरकार को रामचरित मानस के आपत्तिजनक अंश हटाना चाहिए या इस पूरी पुस्तक को ही बैन कर देना चाहिए।
दैनिक भास्कर से एक्सक्लूसिव बातचीत में मौर्य ने आगे कहा- ब्राह्मण भले ही दुराचारी, अनपढ़ या गंवार हो, लेकिन वह ब्राह्मण है। उसको पूजनीय कहा गया है, लेकिन शूद्र कितना भी पढ़ा-लिखा या ज्ञानी हो। उसका सम्मान मत करिए। क्या यही धर्म है? अगर, धर्म यही है, तो मैं ऐसे धर्म को नमस्कार करता हूं। जो धर्म हमारा सत्यानाश चाहता है, उसका सत्यानाश हो।मौर्य ने बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री पर भी तंज कसा। उन्होंने कहा कि इस देश का दुर्भाग्य है कि धर्म के ठेकेदार ही धर्म को बेच रहे हैं। तमाम समाज सुधारकों की कोशिश से देश आज तरक्की के रास्ते पर है, लेकिन ऐसी सोच वाले बाबा समाज में रूढ़िवादी परम्पराओं और अंधविश्वास पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। धीरेंद्र शास्त्री ढोंग फैला रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसे लोगों को जेल में डाल देना चाहिए जो भारत के संविधान की भावनाओं को आहत करते हों।
उन्होंने कहा कि जब सभी बीमारियों की दवा बाबा के पास है, तो सरकार बेकार में मेडिकल कॉलेज, अस्पताल चला रही है। सभी लोग जाकर बाबा के यहां दवा ले लें। तुलसीदास ने जब रामचरितमानस लिखी। तब महिला और दलितों को पढ़ने-लिखने का अधिकार नहीं था। इन्हें पढ़ने का अधिकार अंग्रेजों ने दिया था। मौर्य ने कहा- हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं, लेकिन कोई भी धर्म किसी भी जाति या वर्ग विशेष के लोगों को अपमानित नहीं करता है।

लेकिन रामचरितमानस में एक चौपाई का अंश है, जिसमें कहा गया है- जे बरनाधम तेलि कुम्हारा। स्वपच किरात कोल कलवारा। इसमें जिन जातियों का जिक्र है। ये सभी हिंदू धर्म को मानने वाली हैं। इसमें सभी जातियों को नीच और अधम कहा गया है। धर्म इंसान को जातियों में नहीं बांटता है।
मौर्य के बयान पर अयोध्या के संतों ने नाराजगी जताई है। श्रीरामवल्लभाकुंज के प्रमुख स्वामी राजकुमार दास ने कहा है कि स्वामी प्रसाद का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। वे पिछड़े लोगों का खिसक चुका जनाधार वापस पाने के लिए बेतुका बयान दे रहे हैं।

वहीं, उदासीन ऋषि आश्रम रानोपाली के महंत भरत दास ने कहा कि विरोधी राजनीति के लोग किसी भी स्तर पर चले जा रहे हैं। यह ठीक नहीं है। राम चरित मानस देव ग्रंथ है, जो हर मनुष्य के कल्याण के लिए है। इस पर अनुचित टिप्पणी करना मानवता के साथ अपराध है।
इससे पहले 11 जनवरी को बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने कहा था कि ‘रामायण’ पर आधारित एक महाकाव्य हिंदू धर्म पुस्तक ‘रामचरितमानस’ समाज में नफरत फैलाती है। उनके इस दावे के बाद विवाद खड़ा हो गया। नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के 15वें दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने ‘रामचरितमानस’ और मनु स्मृति को समाज को विभाजित करने वाली पुस्तकें बताया।

उन्होंने कहा कि मनु स्मृति को क्यों जलाया गया, क्योंकि इसमें एक बड़े तबके के खिलाफ कई गालियां दी गईं थीं। रामचरितमानस का विरोध क्यों किया गया। किस भाग का विरोध किया गया? निचली जाति के लोगों को शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी।
‘रामचरितमानस’ में कहा गया है कि निम्न जाति के लोग शिक्षा प्राप्त करने से वैसे ही जहरीले हो जाते हैं। जैसे दूध पीने के बाद सांप हो जाते हैं। उन्होंने आगे कहा था कि इसमें कहा गया है कि नीची जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करने के बाद सांप-बिच्छू की तरह जहरीले हो जाते हैं। पूरी खबर पढ़ें
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में जनसभा को संबोधित करते हुए मौर्य ने कहा था कि ये लोग नारा दे रहे हैं कि मोदी जी आए हैं, राम को लाए हैं। यह नारा सुनकर ऐसा लगता है कि मोदी ने राम को पैदा किया है। इनके आने के बाद ही राम जी का जन्म हुआ है। जो पार्टी राम का सौदा करती है, वह आपका भी सौदा कर सकती है। आपके साथ धोखा कर सकती है।”
रिटायर्ड प्रोफेसर और लेखक केएस भगवान ने भगवान श्रीराम को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया है। केएस ने कहा कि राम-सीता को वन में भेज देते थे, उनकी कोई फिक्र नहीं करते थे। एक शूद्र का सिर भी काटा था। फिर वो आदर्श कैसे हैं? वो 20 जनवरी को कर्नाटक के मांड्या में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे।