सैनिक स्कूल में पढ़ने वाला एक लड़का जिसके पिता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। एक दिन स्कूल के प्रिंसिपल ने सीएम को फोन कर स्कूल आने के लिए आवेदन किया। सीएम का हेलीकॉप्टर स्कूल पंहुचा। उनसे मिलने और स्वागत करने के लिए सीनियर क्लास के बच्चे एक लाइन में खड़े हो गए। उसी लाइन में सीएम का बेटा भी उनसे हाथ मिलाने के लिए खड़ा था।
वो लड़का कोई और नहीं बल्कि यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव हैं। अखिलेश आज 50 साल के हो गए। पूरा बचपन चंचलता भरा रहा। स्कूल गए तो खुद से खुद का नाम रखा। 22 साल की उम्र में शादी कर ली। 27 साल के थे तब नेताजी ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिया। अखिलेश सांसद बन गए। 37 साल के हुए तो जनता ने पूर्ण बहुमत देकर मुख्यमंत्री बना दिया। आज यूपी में विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे हैं।
जुलाई 1973 को उत्तर प्रदेश के सैफई में मुलायम सिंह यादव के घर एक बच्चे की किलकारी गूंजी। नाम रखा टीपू। ये नाम सैफई के ग्राम प्रधान और मुलायम सिंह के दोस्त दर्शन सिंह ने रखा था। गांव वालों को ये नाम अटपटा लगा तब दर्शन ने उन्हें टीपू सुल्तान की कहानी सुना दी। इसके बाद उस बच्चे को टीपू नाम से ही बुलाया जाने लगा
बचपन में टीपू को अपने पिता के साथ खेलना-कूदना सबसे ज्यादा पसंद था। लेकिन एक दिन ऐसा आया जिसके बाद 2 साल के टीपू 19 महीने तक अपने पिता को देख भी नहीं पाए। 26 जून 1975 की सुबह। ऑल इंडिया रेडियो पर जो सबसे पहली आवाज आई, वो देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की थी। उनके शब्द थे, ‘राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा कर दी है।’
इमरजेंसी लागू होते ही मेंनटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी मीसा कानून और डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के तहत एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल में डाल दिया गया। विपक्षी नेताओं को अरेस्ट करने के आदेश दिए गए। उसी दौरान एक रात मुलायम सिंह यादव बचते-बचाते अपनी साइकिल से एक गांव से दूसरे गांव जा रहे थे। लेकिन वो पहुंच पाते उससे पहले ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
करीब 19 महीने तक मुलायम सिंह जेल में रहे। एक इंटरव्यू में मुलायम ने बताया था कि जेल में रहने के दौरान की एक बात उन्हें हमेशा याद रहेगी। वो बात थी कि उनका बेटा 3 साल का हो गया और महीनों से अपने पिता को देख नहीं पाया था।
टीपू 4 साल के हुए। चाचा प्रो. रामगोपाल यादव उनका एडमिशन करवाने सेंट मेरीज स्कूल ले गए। स्कूल में शिक्षक ओम प्रकाश रघुवंशी फॉर्म भरवाने लगे तो पूछा नाम क्या है? रामगोपाल ने कहा, “टीपू लिखिए।” स्कूल का स्टॉफ हैरान होकर टीपू और रामगोपाल को देखने लगा। तब मुलायम सिंह से फोन पर पूछा गया तो उन्होंने कहा, “टीपू से ही पूछ लीजिए।”
इसके बाद स्कूल के मास्टर ने हंसते हुए टीपू को 4 नाम सुझाए। टीपू से पूछा गया क्या तुम्हें अखिलेश नाम पसंद है? टीपू ने हां में अपना सिर हिलाया। बस तभी से टीपू अखिलेश यादव हो गए।
अखिलेश ने कक्षा 3 तक सेंट मेरीज स्कूल में पढ़ाई की। उस वक्त अखिलेश के चाचा रामपाल उन्हें साइकिल से स्कूल छोड़ने जाते थे। अखिलेश पेड़ पर चढ़ने के बहुत शौकीन थे। एक दिन वो पेड़ पर चढ़े और किसी के कहने पर नीचे नहीं आ रहे थे। तभी गांव के एक आदमी ने उन्हें कंपट यानी संतरे वाली टॉफी का लालच दिया तब वो नीचे आए। तब से उन्हें जब तक कंपट नहीं मिलता वो नीचे नहीं आते।
पत्रकार सुनीता एरन ने अखिलेश की जिंदगी पर “अखिलेश यादव- बदलाव की लहर” नाम से किताब लिखी है। इसमें उन्होंने लिखा, “अखिलेश 10 साल के हुए तो सुरक्षा कारणों के चलते उनका एडमिशन राजस्थान मिलिट्री स्कूल, धौलपुर में करवा दिया गया। चाचा शिवपाल उनका दाखिला कराने साथ गए।
अखिलेश जब वहां पढ़ रहे थे तब मुलायम सिर्फ 2 बार उनसे मिलने गए। एक बार यूपी के सीएम की हैसियत से मुलायम को अखिलेश के स्कूल में बुलाया गया था। मुलायम का हेलीकॉप्टर स्कूल के मैदान में उतरा। सीनियर क्लास के बच्चे उनके स्वागत के लिए एक लाइन में खड़े हो गए। स्कूल के टीचर यह देखकर हैरान हो गए कि अखिलेश भी अपने पिता से मिलने के लिए उसी लाइन में लगे थे।
यहां पढ़ाने वाले अखिलेश के गुरु अवध किशोर वाजपेई कहते थे कि मुलायम सिंह के राजनीति में रहने की वजह से अखिलेश ने भी इसी में अपना भविष्य चुना। वो कहते हैं कि आज अगर अखिलेश एक नेता ना होते तो सेना में होते।
स्कूलिंग पूरी करने के बाद एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग के लिए मैसूर का जेएसएस कॉलेज चुना। यहां पहले सेमेस्टर में वह सिर्फ दो विषयों में पास हो पाए। अखिलेश ने बाद में कहा था, “जितनी बैक मेरी लगी शायद ही किसी बच्चे की लगी हो।” साल 1996 में अखिलेश जब इंजीनियर बन कर लौटे, तो मुलायम सिंह यादव देवेगौड़ा मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री थे।
इसी साल अखिलेश को पर्यावरण इंजीनियरिंग में मास्टर्स करने के लिए ऑस्ट्रेलिया भेज दिया गया। उन दिनों सिडनी में अखिलेश के साथ पढ़ने वाले गीतेश अग्रवाल ने एक इंटरव्यू में बताया कि अखिलेश को मेरी बनाई गई ‘कड़क चाय’ बहुत पसंद थी। वो उन दिनों भी बहुत तड़के उठ जाया करते थे। वो पढ़ने लिखने में बहुत अच्छे नहीं थे, लेकिन दूसरे नेताओं के लड़कों की तरह उनमें कोई ऐब नहीं था। वो न तो सिगरेट पीते और न ही शराब।”
गीतेश बताते हैं कि हमें वहां रहने के लिए बहुत कम पैसे मिला करते थे। मुझे हर हफ्ते 120 डॉलर मिला करते थे, जबकि अखिलेश तो सिर्फ 90 डॉलर में अपना काम चलाया करते थे। उनके पास तब कोई मोबाइल फोन नहीं था। साथ ही आस्ट्रेलिया में दो साल की पढ़ाई के दौरान अखिलेश एक बार भी अपने घर भारत नहीं आए।
डिंपल ने कभी पुणे में तो कभी बठिंडा के आर्मी स्कूल में पढ़ाई की। एक बार तो उन्होंने अंडमान निकोबार द्वीप में रहकर पढ़ाई की। ऐसा इसलिए, क्योंकि पिता कर्नल आरएस रावत का ट्रांसफर जहां भी होता बेटी उनके साथ वहीं चली जाती। साल 1995 में उन्होंने लखनऊ के आर्मी स्कूल से इंटर पास कर लिया। इसी दौरान एक दोस्त के घर अखिलेश और डिंपल पहली बार एक-दूसरे से मिले।
अखिलेश ने जब पहली बार डिंपल को देखा तभी उन्हें वह पसंद आ गईं। डिंपल की उम्र उस वक्त महज 17 साल थी। दोनों में थोड़ी देर बात भी हुई। यह बातचीत पढ़ाई और परिवार को लेकर थी। इस मुलाकात के बाद डिंपल लखनऊ यूनिवर्सिटी में कॉमर्स की पढ़ाई करने चली गईं। अखिलेश एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया के सिडनी यूनिवर्सिटी पहुंचे।
1996 में अखिलेश को अमर सिंह अपने साथ लेकर सिडनी यूनिवर्सिटी पहुंचे थे। सिडनी के बाजार में गए। अखिलेश के लिए जो भी जरूरी सामान था उसे उन्होंने खरीदा। इसका जिक्र उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक न्यूज चैनल पर किया था। अमर सिंह ने कहा था कि अखिलेश को किसी चीज की जरूरत होती तो मुलायम सिंह से पहले वह हमें बताते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि वह मुलायम सिंह से डरते थे।
अखिलेश जब सिडनी में थे तब डिंपल से फोन पर बात नहीं हो पाती थी। वह उन्हें खत लिखते थे। डिंपल भी उनके खत का जवाब खत लिखकर देती थीं। हालांकि, इसका जिक्र अखिलेश से जुड़ी किसी किताब में नहीं है। अखिलेश जब सिडनी से वापस आए तब दोनों ने शादी करने का मन बना लिया था। मुलायम सिंह इसके लिए राजी नहीं थे। उनके राजी न होने के तीन कारण थे।
पहला, डिंपल यादव जाति की न होकर राजपूत थीं।
दूसरा, डिंपल उत्तराखंड की थीं। उस वक्त उत्तराखंड अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा था।
तीसरा, मुलायम सिंह अखिलेश की शादी लालू यादव की बेटी मीसा भारती से करवाना चाहते थे।
मुलायम सिंह को मनाने के लिए अखिलेश ने अपनी दादी मूर्ति देवी का सहारा लिया। 1998 में सपा के डिसीजन मेकर्स माने जाने वाले अमर सिंह से भी पैरवी करवाई। करीब 3 महीने के बाद आखिरकार मुलायम सिंह, डिंपल को अपनी बहू बनाने के लिए तैयार हो गए। 24 नवंबर 1999 को अखिलेश और डिंपल की शादी हुई। उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई भी शादी में पहुंचे थे। उस वक्त यूपी में सपा विपक्षी पार्टी थी।
शादी के बाद अखिलेश और डिंपल दिसंबर 1999 में छुट्टियां मनाने देहरादून गए थे। देहरादून के ही एक मॉल में दोनों खरीदारी कर रहे थे, तभी अखिलेश के पास मुलायम सिंह का फोन गया। उन्होंने कहा, तुम्हें चुनाव लड़ना है। अखिलेश हां या ना में कोई जवाब दे पाते इसके पहले ही फोन कट गया। कन्नौज सीट पर हुए साल 1999 में उपचुनाव में अखिलेश ने जीत दर्ज करते हुए राजनीति में प्रवेश किया।
2004 में अखिलेश यादव दोबारा कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव में उतरे। उन्होंने बसपा के राजेश सिंह को 3 लाख 7 हजार वोटों से हराया। जीत का क्रम 2009 में भी बरकरार रहा और उन्होंने इस बार बसपा के ही महेश चंद्र वर्मा को 1 लाख 15 हजार वोटों के अंतर से हरा दिया। 2012 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर प्रचार किया। नतीजा ये रहा कि सपा पहली बार यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही। 403 में 224 सीटों पर जीत मिली
अखिलेश यादव 38 साल की उम्र में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उनका सीएम बनना मुलायम की राजनीति से एकदम अलग था। वो नए जमाने की पॉलिटिक्स लेकर आए। मुलायम हमेशा कंप्यूटर और अंग्रेजी के खिलाफ रहे। लेकिन अखिलेश सीएम बनने के बाद लैपटॉप स्कीम लाए। उनके ये बदलाव पुराने धुरंधरों को गंवारा नहीं थे। जिन्हें लेकर अखिलेश और शिवपाल के बीच खटपट होने लगी। ऐसी तकरार मुलायम के परिवार में पहली बार हुई थी।
देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार में शुरू हुआ घमासान रुकने का नाम नहीं ले रहा था। अखिलेश यादव ने भ्रष्टाचार के आरोप में गायत्री प्रजापति और राज किशोर को बर्खास्त कर दिया। एक दिन बाद ही मुख्य सचिव रहे दीपक सिंघल को भी पद से हटा दिया। ये तीनों शिवपाल गुट के माने जाते थे। फैसले से मुलायम और शिवपाल काफी नाराज हुए। मुलायम ने बेटे अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर भाई शिवपाल को कमान सौंप दी। इससे बौखलाए अखिलेश ने चाचा शिवपाल से सभी जरूरी मंत्रालय छीन लिए।अखिलेश के पलटवार से गुस्साए शिवपाल ने सरकार और संगठन के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। अपने भाई और बेटे के बीच ये विवाद देखकर मुलायम ने मोर्चा संभाला। उन्होंने बेटे अखिलेश के सभी फैसले रद्द कर भाई का इस्तीफा नामंजूर कर दिया।
मुलायम ने पार्टी दफ्तर में कहा गायत्री प्रजापति के खिलाफ की गई सभी कार्यवाई रद्द की जा रही है। उन्हें बहुत जल्द मंत्री पद पर बहाल किया जाएगा। साथ ही शिवपाल यादव यूपी सरकार में मंत्री और प्रदेशाध्यक्ष बने रहेंगे।
इसके बाद मुलायम ने पार्टी की मीटिंग बुलाई। उसमें अखिलेश और शिवपाल ने सपा की रार पर अपना-अपना पक्ष रखा। इसके बाद पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बैठक में मौजूद सांसद, मंत्री, विधायक और बाकी नेताओं के सामने उस वक्त के सीएम अखिलेश को फटकार लगाने के साथ ही शिवपाल यादव के योगदान को जमकर सराहा। बैठक के आखिर में मुलायम ने शिवपाल और अखिलेश को एक दूसरे से गले भी मिलवाया।
दिसंबर 2016. यूपी विधानसभा चुनाव आने वाले थे। अखिलेश ने किसी से बिना पूछे ही अपने चहेतों को टिकट दे दिया। इससे नाराज मुलायम ने अखिलेश को 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया। उनके इस फैसले से अखिलेश के समर्थक सड़कों पर उतर गए। जमकर नारेबाजी की।
नतीजा, कुछ दिन में ही अखिलेश की पार्टी में वापसी करा उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन नाराज शिवपाल ने पार्टी छोड़ दी। यहीं से पूरा परिवार दो फाड़ हो गया। पार्टी की पूरी कमान अखिलेश यादव के हाथ में आ गई। 2022 का विधानसभा चुनाव आया। एक बार फिर से अखिलेश के नेतृत्व में सपा पीछे रह गई। आज अखिलेश यूपी में विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के रूप में जाने जाते हैं।