शशि कपूर की 85वीं बर्थ एनिवर्सरी पर उनकी जिनदगी की कुछ कहानियां, जानिए

आज शशि कपूर की 85वीं बर्थ एनिवर्सरी है। शशि वो स्टार थे जिनकी स्माइल और स्टाइल पर लड़कियां फिदा हो जाती थीं। वो सामने हों तो एक्ट्रेसेस ठीक से अपने डायलॉग्स भी नहीं बोल पाती थीं। एक विदेशी एक्ट्रेस को तो उन्हें देखते ही प्यार हो गया था, लेकिन वो उनका नाम जानती नहीं थी, सो गलत जगह अपने प्यार के इजहार वाला खत भेज दिया।
शशि कपूर को लेकर लड़कियों में काफी दीवानगी थी, लेकिन खुद शशि सिर्फ एक ही लड़की के दीवाने थे। वो थीं जेनिफर कैंडल। जेनिफर ही शशि का पहला और आखिरी प्यार रहीं। विदेशी थीं तो परिवार को शादी के लिए मनाने में बहुत जोर लगाना पड़ा।
शशि और जेनिफर शादी के बाद 28 साल तक साथ रहे, जेनिफर की कैंसर से मौत हो गई तो उनके बाद शशि कपूर ने खुद को आइसोलेट कर लिया। पत्नी की याद में जिंदगी के आखिरी 31 साल गुजार दिए, लेकिन दूसरी शादी नहीं की। पत्नी की मौत हुई तो रोए नहीं, लेकिन एक दिन गोवा में समंदर के बीच जाकर बोट पर खूब रोए।
पिता पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थिएटर से इन्हें सबसे ज्यादा लगाव था। पृथ्वीराज के बाद पहले शशि और फिर उनकी बेटी संजना ने ही उसको जिंदा रखा। अपने करियर में शशि ने 116 फिल्मों में काम किया। इनमें से 61 इनकी सोलो हीरो फिल्में रहीं, ज्यादातर सफल थीं।
शशि कपूर का जन्म पृथ्वीराज कपूर के घर 18 मार्च 1938 को हुआ था जिन्हें उनकी मां रामसरणी जन्म ही नहीं देना चाहती थीं। 1995 में फिल्मीबीट मैगजीन को दिए इंटरव्यू में शशि ने बताया था कि जब उनकी मां को पता चला कि वो प्रेग्नेंट हैं तो इस बात से बहुत मायूस हो गईं क्योंकि पहले ही वो दो बेटों की मां थीं और तीसरा बच्चा नहीं चाहती थीं।

उन्होंने अबॉर्शन की भी कोशिश की। कभी साइकिल से गिर जातीं तो कभी सीढ़ियों से। कभी-कभी तो वो रस्सी कूदने लगती थीं। इन तमाम कोशिशों के नाकाम होने के बाद शशि कपूर का जन्म हो गया।
उनका बचपन में नाम बलबीर राज कपूर था। ये नाम उनकी दादी ने रखा था जो कि उनकी मां को बिल्कुल पसंद नहीं था। इसी वजह से बाद में मां ने उनका नाम शशि रख दिया। मां प्यार से उन्हें ‘फ्लूकी'( संयोगी) भी बुलाती थीं क्योंकि वो बिना प्लानिंग के पैदा हुए थे।
शशि कपूर और भारत के फेमस विकेटकीपर फारुख इंजीनियर मुंबई के डॉन बॉस्को स्कूल में एक ही क्लास में पढ़ते थे। एक दिन दोनों एक साथ बैठकर बातें कर रहे थे तभी क्लास टीचर ने डस्टर फेंककर शशि के चेहरे की तरफ मारा, लेकिन फारुख ने उसे कैच कर लिया।
फारुख ने इस घटना के बारे में कहा था- वो डस्टर शशि की आंख में लगता, इससे पहले ही मैंने उसके चेहरे से एक इंच पहले ही उसे कैच कर लिया। मैं शशि को इस बात के लिए हमेशा चिढ़ाता कि अगर उस दिन मैंने डस्टर नहीं रोका होता, तो उसे बस डाकू का रोल मिलता।
शशि कपूर के परिवार के सभी लोग थिएटर से जुड़े थे। यही वजह थी कि उनका रुझान भी एक्टिंग की तरफ ही था। वो एक्टर बनना चाहते थे, लेकिन उनके पिता पृथ्वीराज कपूर का मानना था कि पहले वो संघर्ष करें और अपनी मेहनत से बतौर एक्टर अपना करियर बनाएं।
बड़े होने के बाद वो पिता पृथ्वीराज कपूर के थिएटर से जुड़ गए और जगह-जगह जाकर प्ले करने लगे। 1953 से 1960 तक उन्होंने पृथ्वी थिएटर में काम किया।
ये बात 1955 की है। शशि कपूर अपने पिता के साथ पृथ्वी थिएटर में काम करते थे। उस समय उनके एक प्ले का शो कोलकाता के थिएटर में चल रहा था। पब्लिक डिमांड के चलते शो को कुछ दिनों के लिए और बढ़ा दिया गया था। उस समय शशि 18 साल के थे।

एक दिन प्ले शुरू होने से पहले उन्होंने पर्दे से झांक कर ये देखना चाहा कि कितने दर्शक हैं, तभी उनकी नजर चौथी लाइन में बैठी एक विदेशी लड़की पर पड़ी, जो लाल पोल्का डाॅट्स का टाॅप पहने हुई थी और अपनी दोस्त के साथ हंस रही थी। उस लड़की को देखते ही शशि उस पर फिदा हो गए। बाद में पता चला कि वो लड़की शेक्सपियराना थिएटर ग्रुप का हिस्सा है और गॉडफ्रे कैंडल की बेटी जेनिफर कैंडल है।
जेनिफर का भी प्ले उसी थिएटर में होना था, जहां शशि अपने ग्रुप के साथ प्ले कर रहे थे। ऐसा पहली बार था कि शशि किसी लड़की को पसंद करने लगे थे। उन्होंने उनसे मिलने के लिए अपने कजिन शुभिराज से गुजारिश कि वो दोनों की मुलाकात करवा दें।
शुभिराज ने दोनों की मुलाकात का एक प्लान बनाया और उनकी मुलाकात हुई। मुलाकात के समय शशि बहुत घबराए हुए थे जबकि जेनिफर नाॅर्मल थीं। दोनों के बीच कुछ भी काॅमन नहीं था। वो पढ़ी-लिखी थीं, जबकि शशि इस घटना को याद करते हुए खुद को लल्लूराम कहते थे। इसके बाद मुलाकात का सिलसिला जारी रहा।
शशि बहुत ही शर्मीले थे, जिस वजह से जेनिफर उन्हें गे समझने लगी थीं। बाद में जेनिफर का ग्रुप शशि को प्ले देखने के लिए बुलाने लगा। शशि, जेनिफर की मंडली में भी शामिल हो गए। इस दौरान उन्होंने जेनिफर के साथ कई नाटकों में काम किया।
1957 में ‘शेक्सपियराना’ ग्रुप का एक लड़का बीमार पड़ गया। जिसके बाद शशि ने उसकी जगह सिंगापुर में जाकर काम किया। सिंगापुर का रहन-सहन शशि को रास नहीं आ रहा था। खाने-पीने की परेशानियों की वजह से उन्हें घर की बहुत याद आती थी, लेकिन उस वक्त जेनिफर ने उनकी बहुत मदद की जिससे दोनों और करीब आ गए।
एक बार शशि कपूर ऊटी में शो कर रहे थे। वहां पर उन्होंने जेनिफर की मुलाकात अपनी मां और भाभी गीता से करवाई। शम्मी की वाइफ गीता को जेनिफर पहली ही नजर में पसंद आ गईं। मां ने भी जेनिफर को गले लगाया और अपने गले से सोने की चेन निकालकर जेनिफर को पहना दी। शशि, पिता पृथ्वीराज कपूर से अपनी और जेनिफर की शादी की बात करने से घबराते थे। उन्होंने ये जिम्मेदारी अपने बड़े भाई शम्मी को सौंप दी।

शम्मी ने पिता से बात की, लेकिन पृथ्वीराज को ये कतई मंजूर नहीं था कि उनके घर की बहू कोई विदेशी महिला बने। काफी मनाने के बाद पिता तो मान गए, लेकिन जेनिफर की फैमिली इस रिश्ते से खुश नहीं थी। पिता के मना करने के बाद जेनिफर ने शशि से कहा कि हम बालिग हैं और अपनी मर्जी से शादी कर सकते हैं। 1958 में दोनों ने शादी कर ली।
जेनिफर से शादी करने के बाद शशि पूरी तरह से अनुशासन में जीवन जीने लगे थे। जेनिफर उनकी डाइट का पूरा ख्याल रखती थीं। सुबह का नाश्ता और रात का खाना परिवार के साथ खाने लगे थे। रविवार को भी पूरा समय परिवार के साथ ही बिताते थे।
सिगरेट और शराब पर भी पूरी तरह से पाबंदी थी। यही वजह थी कि कपूर खानदान में सभी लोग मोटे थे, जबकि शशि एकदम फिट एंड फाइन दिखते थे।
शादी के एक साल बाद ही जेनिफर ने बेटे कुणाल को जन्म दिया। इस समय तक शशि ने फिल्मी पर्दे पर बतौर लीड एक्टर कदम नहीं रखा था। एक दिन पृथ्वी थिएटर में काम करने वाली अजरा मुमताज ने शशि से कहा- अब जब तुम शादीशुदा हो, क्या तुम्हें अपनी पत्नी की देखभाल करना नहीं सीखना चाहिए?
इस दिन को याद करते हुए शशि ने कहा था- उस दिन मुझे एहसास हुआ कि मैं 21 साल का था और अभी भी अपने माता-पिता के साथ रह रहा था। अभी भी कमाई नहीं कर रहा था, काम की तलाश नहीं कर रहा था। मुझे एहसास हुआ कि जेनिफर अभी भी अलमारी में रखे हुए पिछले साल के ही कपड़े पहने हुए हैं। हमें रेस्टोरेंट में खाने के लिए बाहर गए हुए काफी समय हो गया था। फिर अगले दिन मैं उठा और काम के सिलसिले में सोहराब मोदी के पास चला गया।
लंबे संघर्ष के बाद 1959 में फिल्म गेस्ट हाउस में शशि को बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम करने का मौका मिला। इसके बाद उन्होंने फिल्म दूल्हा-दुल्हन और श्रीमान सत्यवादी में असिस्टेंट डायरेक्टर का काम किया, जिसमें लीड एक्टर उनके भाई राज कपूर थे। 1961 में फिल्म धर्मपुत्र में पहली बार शशि लीड एक्टर के रूप में बड़े पर्दे पर दिखे।प्रेम पत्र, चार दीवारी, मेंहदी लगी मेरे हाथ जैसी फिल्में करने के बाद शशि कपूर के करियर में डाउनफॉल भी आया था। रोमांटिक हीरो वाले रोल करने की वजह से वो टाइपकास्ट हो गए थे जिस वजह से उन्हें फिल्मों में काम मिलना बंद हो गया। कोई भी हीरोइन उनके साथ काम नहीं करना चाहती थी।
ये दौर ऐसा था कि घर चलाने के लिए भी पैसे नहीं थे। शशि के बेटे कुणाल कपूर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि आर्थिक तंगी से परेशान होकर शशि ने अपनी स्पोर्ट्स कार बेच दी। मां जेनिफर ने भी अपना कीमती सामान बेचना शुरू कर दिया था।
इस बुरे वक्त में एक्ट्रेस नंदा ने अपने दोस्त शशि कपूर की मदद की थी। नंदा ने उनके साथ फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ में काम किया था। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही। इसकी सफलता के बाद ही शशि का करियर फिर से पटरी पर आ गया था
शशि कपूर की खूबसूरती के बारे में शर्मिला टैगोर ने कहा था कि ‘कश्मीर की कली’ की शूटिंग के दौरान वो शशि कपूर को देखकर अपना ध्यान एक्टिंग पर नहीं लगा पा रही थीं। उन्होंने डायरेक्टर से कहा था कि वो कुछ समय के लिए शशि को सेट से हटा दें ताकि वो अपना एक्ट पूरा कर सकें।
हैंडसम शशि कपूर पर मशहूर इटालियन एक्ट्रेस जीना लोलोब्रिजिडा भी मोहित हो गई थीं। फिल्ममेकर इस्माइल मर्चेंट ने इस घटना को अपनी बायोग्राफी ‘पैसेज टू इंडिया’ में लिखा था- शशि को पहली बार देखते ही जीना को उनसे इश्क हो गया था। पहली मुलाकात के अगले दिन जीना ने उन्हें फूलों का गुलदस्ता भेजा, लेकिन उन्हें इस बात की गलतफहमी थी कि शशि का नाम मधुर है, इसलिए वो गुलदस्ता एक्ट्रेस मधुर जाफरी के पास चल गया।

शशि की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो जीना ने खुद उनसे मिलकर पूछ लिया कि उन्होंने कोई जवाब क्यों नहीं दिया। शशि ने इस बात पर मजाक में कहा कि एक गलतफहमी की वजह से उनके हाथ से इतना अच्छा मौका निकल गया।
शशि कपूर और शत्रुघ्न सिन्हा बहुत अच्छे दोस्त थे और दोनों ने साथ में ‘आ गले जा’, ‘क्रांति’, ‘इल्जाम’, ‘शान’ जैसी फिल्में की थीं। एक बार दोनों एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। शत्रुघ्न सिन्हा एक बार सेट पर देर से पहुंचे, वहीं शशि उनका बहुत देर से इंतजार कर रहे थे। शत्रुघ्न को देखते ही शशि उन्हें बेल्ट से मारने के लिए दौड़ पड़े। दौड़ते हुए शत्रुघ्न उनसे मजाक में कहने लगे- मैं समय का पाबंद हूं तभी मेकर्स ने मुझे फिल्म में कास्ट किया है। इस पर शशि ने कहा- ये कहते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती।

शत्रुघ्न सिन्हा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वो जानबूझकर सेट पर लेट नहीं पहुंचते थे। उन्हें योग करने में समय लग जाता था, जिस वजह से वो लेट हो जाते थे। इसी वजह से वो कई बार 9 बजे की शिफ्ट में 12 बजे सेट पर पहुंचते थे।
एक फिल्म की शूटिंग के दौरान शशि को पूनम को थप्पड़ मारना था, लेकिन ये बात पूनम को नहीं पता थी। जैसे डायरेक्टर यश चोपड़ा ने एक्शन बोला, वैसे ही शशि ने उन्हें जोरदार थप्पड़ मार दिया। सीन को रियल दिखाने के लिए उन्होंने जोर से थप्पड़ मारा था। हालांकि बाद में यश चोपड़ा के कहने पर शशि ने उनसे माफी मांग ली थी।
1982 शशि के लिए बेहद मुश्किल था। इस साल उन्हें पता चला कि उनकी वाइफ को कोलन कैंसर है। इसके महज 2 साल बाद ही जेनिफर कैंसर से जंग हार गईं और उनका निधन हो गया। पत्नी की मौत के बाद शशि पूरी तरह टूट गए थे। खाने-पीने पर बिल्कुल ध्यान नहीं रखते थे, यही वजह थी कि उनका मोटापा बढ़ने लगा था। घंटों अपने अपार्टमेंट में अकेले बैठे रहते थे, किसी से बात नहीं करते थे। इस तरह से वे डिप्रेशन में चले गए, जिससे कभी नहीं उबर पाए।

एक इंटरव्यू में शशि के बेटे कुणाल ने कहा था- जेनिफर की मौत के बाद शशि कपूर पहली बार तब रोए जब एक बार गोवा के बीच से एक बोट लेकर गहरे समुद्र के बीच चले गए थे और चिल्लाते हुए घंटों रोए थे। वो अपने कमरे में भी घंटों चुपचाप बैठे रहते थे।
जेनिफर के साथ उन्होंने 28 साल काटे, लेकिन उनके निधन के बाद 31 साल वो उनकी यादों के सहारे जिंदा रहे। उन्होंने खुद कहा था कि 31 सालों में कभी उनके मन में दूसरी शादी का ख्याल नहीं आया।शशि भारत के पहले इंटरनेशनल स्टार थे। 1982 में आई फिल्म नमक हलाल के अगले साल उनकी हॉलीवुड फिल्म ‘हीट एंड डस्ट’ रिलीज हुई। ये फिल्म कान्स फिल्म फेस्टिवल में भी नॉमिनेट हुई थी। बता दें कि साल 1963 से 1998 के बीच उन्होंने 10 से भी ज्यादा इंग्लिश फिल्में की थीं।