क्या चीन पर भारत को करना चाहिए भरोसा?

पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर आठ माह के बाद भारत और चीन की सेनाएं पीछे हटने लगी हैं. मई 2020 में शुरू हुआ टकराव आखिरकार फरवरी में जाकर डिसइंगेजमेंट के निष्‍कर्ष पर पहुंच पाया. चीन की सेनाएं टकराव वाले बिंदुओं से पीछे हटने लगी हैं. चीन का हर कदम नॉर्थ ईस्‍ट पर भी असर डालने वाला है.

जहां कुछ विशेषज्ञ मान रहे हैं कि चीन फिलहाल भारत के उत्‍तर-पूर्वी मोर्चे पर शांत रहेगा तो कुछ इस बात से भी इनकार नहीं कर रहे हैं कि शायद चीनी सेना के दिमाग में कोई खिचड़ी पक रही होगी. सिक्किम में तैनात रहे कैप्‍टन (रिटायर्ड) जसदीप सिंह की मानें तो चीन को लद्दाख में पीछे हटना ही था और इसके लंबे परिणाम दिखेंगे.

कैप्‍टन जसदीप की मानें तो चीन पर यकीन करना मुश्किल है और जो दिख रहा है, उस पर यकीन करना ही होगा. उन्‍होंने कहा कि भारत को अप्रैल से सितंबर के माह तक हाई अलर्ट पर रहने की जरूरत है क्‍योंकि चीन गर्मी के मौसम में बर्फ पिघलने लगेगी तो फिर से चीनी सेना कुछ कर सकती है.

उन्‍होंने बताया कि अभी इंडियन आर्मी अभी संयम से काम ले रही है क्‍योंकि अगर उसने जरा भी आपा खोया तो फिर नॉर्थ ईस्‍ट की जगहों जैसे नाथूला, नाकू ला और अरुणाचल प्रदेश में चीन कुछ भी कर सकता है. उन्‍होंने एलएसी पर चीन की आक्रामकता के पीछे पाकिस्‍तान फैक्‍टर को भी जिम्‍मेदार ठहराया है.

उन्‍होंने कहा कि चीन के पास पीछे हटने के अलावा कोई और विकल्‍प नहीं था. वह समझ चुका था कि इस बार इंडियन आर्मी किसी भी सूरत में अपनी पोस्‍ट्स को छोड़ेगी नहीं. उनकी मानें तो चीन बस मनोवैज्ञानिक तौर पर भारत को दबाव में लाना चाहता था.

इस बार ऐसा होना नामुमकिन था और भारत, पीपुल्‍स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) को जवाब देने के लिए तैयार था.

उन्‍होंने बताया कि भारत ने कैलाश रेंज को खाली नहीं किया है. साथ ही उन्‍होंने यह भी कहा कि चीन के सैनिक, भारतीय सैनिकों जितने मजबूत नहीं हैं. वो पूर्वी लद्दाख में पहाड़‍ियों पर ज्‍यादा दिनों तक टिके नहीं रह सकते थे. उनकी मानसिक स्थिति, इंडियन आर्मी सोल्‍जर जितनी मजबूत नहीं है.

भारत और चीन के बीच एलएसी पर जो डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया शुरू हुई है उसके बारे में रक्षा मंत्री ने राज्‍यसभा में जानकारी दी. उन्‍होंने बताया कि दोनों पक्ष चरणबद्ध तरीके से फॉरवर्ड इलाकों से पीछे हटेंगे.

चीन, पैंगोंग झील के उत्‍तरी हिस्‍से में मौजूद फिंगर 8 के पूर्व तक अपनी सेनाओं को पीछे लेकर जाएगा. इसी तरह से भारत भी अपनी सेनाओं को फिंगर 3 पर स्थित धन सिंह थापा पोस्‍ट पर वापस लेकर आएगा. यह कार्रवाई दोनों देश दक्षिणी किनारे पर भी करेंगे.

दोनों पक्ष इस बात पर भी सहमत हुए हैं कि फिंगर 3 और फिंगर 8 पर अस्‍थायी तौर पर कोई पेट्रोलिंग नहीं की जाएगी. जब तक दोनों पक्ष सैन्‍य और राजनयिक तरीके से किसी समझौते पर नहीं पहुंच जाते हैं तब तक पेट्रोलिंग सस्‍पेंड रहेगी.

इसी तरह से अप्रैल 2020 के बाद से पैंगोंग झील के उत्‍तरी और दक्षिणी किनारों पर जो भी निर्माण कार्य हुआ है, उसे दोनों देशों की तरफ से हटाया जाएगा.

बुधवार से दोनों देशों के बीच डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया शुरू हो गई है. रक्षा मंत्री ने उम्‍मीद जताई है कि इस प्रक्रिया से पिछले वर्ष वाली स्थिति बहाल हो जाएगी. इंडियन आर्मी का फिंगर 3 के पश्चिम में धन सिंह थापा बेस पर पहले से ही एक पारंपरिक बेस है. जबकि चीन की सेनाएं फिंगर 8 पर अपने बेस में रहती हैं.

फिंगर 8 पर चीन की बॉर्डर पोस्‍ट्स हैं और उसका मानना है कि एलएसी, फिंगर 2 से गुजरती है. करीब छह साल पहले चीन की सेना ने फिंगर 4 पर स्‍थायी निर्माण की कोशिश की थी. इसे बाद में भारत की तरफ से हुए कड़े विरोध के बाद गिरा दिया गया था.

फिंगर 2 पर पेट्रोलिंग के लिए चीन की सेना हल्‍के वाहनों कार प्रयोग करती है और यहीं से वापस हो जाती है. गश्‍त के दौरान अगर भारत की पेट्रोलिंग टीम से उनका आमना-सामना होता है तो उन्‍हें वापस जाने को कह दिया जाता है. यहीं पर कनफ्यूजन हो जाता है क्‍योंकि वाहन ऐसी स्थिति में होते हैं कि वो टर्न नहीं ले सकते हैं.