हिंदी सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्री शर्मिला टैगोर 12 साल बाद बाद ‘गुल मोहर’ से फिल्मी दुनिया में वापसी कर रही हैं। फिल्म में अभिनेत्री मनोज वाजपेयी की मां के किरदार में एक अहम भूमिका निभाती नजर आएंगी। फिल्म की कहानी एक परिवार में प्यार और तकरार के इर्द-गिर्द घूमती हैं। शर्मीला टैगोर की माने तो उनके परिवार के सदस्यों के सोच में भी कई बार असहमति होती है लेकिन वह किसी की फीलिंग को ठेस नहीं पहुंचाते। दैनिक भास्कर से खास बातचीत के दौरान, शर्मीला ने अपनी फिल्म और पर्सनल लाइफ से जुड़ी बातें शेयर की।
स्क्रीन पर अपने कमबैक को लेकर काफी उत्साहित हूं, एनर्जेटिक भी महसूस करती हूं लेकिन हां थोड़ी थकान भी महसूस होती है। हमारे दौर में फिल्में प्रमोट करने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। उस वक्त फिल्में ही लोगों के लिए एंटरटेनमेंट का जरिया था। उस वक्त ना टीवी था, ना ओटीटी। फिल्में कुछ 25 हफ्तों तक चल जाती और फिर दूसरी फिल्म थिएटर में लगती, ऑडियंस को नई फिल्मों का इंतजार करना पड़ता था। जब टिकट बुकिंग शुरू होता तो लाइन लग जाती थी और हम एक्टर्स को वे सिर्फ प्रीमियर में देखा करते थे। उस वक्त हमारी फिल्मों को प्रमोशन की जरूरत नहीं होती थी।
शूटिंग के दौरान, कई मोमेंट स्पेशल थे। वैसे तो पूरी फिल्म की शूटिंग का अनुभव स्पेशल रहा हालांकि एक मोमेंट जो हमेशा यादगार रहेगा वो था जब उत्सवी (फिल्म की कलकार) मेरे पास आई और कहने लगी की मैं आपसे कुछ पढ़कर सुना रही हूं आप मुझे बताइए की इसमें क्या बदलाव किया जाए। ऐसा लग रहा था जैसे की मैं एक एक्टिंग कोच हूँ। मैं नर्वस हो गई, मैं मना भी नहीं करना चाहती थी। जिस तरह से वो मेरे क्लोज होने की कोशिश कर रही थी वो वाकई में बहुत प्यारा तरीके से था, ये मोमेंट हमेशा याद रहता है।
मैं नहीं मानती की मैं अपनी फैमिली को बांधकर रखती हूं। मैं खुद को बहुत खुशनसीब मानती हूं की मेरे फैमिली मेंबर्स मुझे मानते हैं। हम कई बार एक दूसरे के विचारों से असहमत भी होते हैं लेकिन जब हमने उन्हें पढ़ाया हैं, उनके पास विचारों का ऑप्शन हैं तो यदि वे उस ऑप्शन को चुनते हैं तो हमें उसमे सहमति देनी चाहिए। जैसे की मैं नहीं चाहती थी की सोहा फिल्मों में काम करें क्योंकि वो बहुत ब्राइट स्टूडेंट हैं, अच्छी यूनिवर्सिटी से पढ़ी हैं लेकिन उन्हें एक्ट्रेस बनना था। तो ठीक हैं, वो खुश हैं और मेरे लिए यही बात मायने रखती हैं। इसी तरह हम एक दूसरे को समझकर आगे बढ़ते हैं। बच्चे भी मुझे बहुत मदद करते हैं। हम एक दूसरे की फीलिंग को ठेस नहीं पहुंचाने की कोशिश में रहते हैं।
फैमिली मेंबर्स से फिल्म साइन करते वक्त ज्यादा डिस्कस नहीं किया था, वो ज्यादा पूछते भी नहीं हैं। उन्हें यकीन हैं की जो मैं करूंगी वो सोच-समझकर ही करुंगी। हां, मेरी सेहत को लेकर पूछते रहते हैं। हालांकि वे बहुत खुश हैं। सैफ ने अभी तक ये फिल्म नहीं देखी क्योंकि अमृतसर में शूटिंग में व्यस्त हैं। सबा और सोहा ने फिल्म देखी और उन्हें बहुत पसंद आई। सबा से इस तरह का अप्रूवल मिलना मेरे लिए बहुत स्पेशल है।
अब आप एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं क्योंकि 90 के दशक के बाद जब ऑडियंस को ज्यादा कंटेंट का एक्सपोजर मिला तब से डिमांड भी बढ़ गया है। अब फिल्में आपके पास आ रही हैं, आप फिल्में देखने नहीं जाते। कंटेंट के मामले में, आपके पास कई सारे विकल्प हैं। पहले ऑडियंस से हम एक्टर्स को बोलना पड़ता था की ये फिल्म आपको देखनी ही होंगी लेकिन अब हम थोड़े पीछे हट गए हैं और स्क्रिप्ट ने उसकी जगह ले ली हैं। अब कंटेंट अच्छा होना बहुत जरूरी हो गया है और उसके बाद आप उसे किस तरह से प्रेजेंट करते हो वो मायने रखता हैं। हालांकि मुझे लगता हैं की ये हिंदी सिनेमा के लिए एक बहुत ही सुंदर फेज हैं जहां हर तरह का ऐक्सपैरिमैंट किया जा रहा है। साथ ही मुझे विश्वास है की हमारे देश के लोगों का सिनेमा और क्रिकेट के प्रति प्रेम कभी खत्म नहीं होगा। उनका कनेक्शन हमेशा के लिए रहेगा।