किसानों के प्रदर्शन का समर्थन करने वाले शरद पवार ने कृषि मंत्री रहते हुए की थी मुक्त बाजार की वकालत जानें विस्तार से

कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों का समर्थन करने वाले राकांपा नेता शरद पवार इसी मसले पर नौ दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने वाले हैं। हैरानी की बात यह है कि संप्रग सरकार में कृषि मंत्री रहते हुए पवार ने मुक्त बाजार की वकालत की थी। इसके लिए कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) कानून में संशोधन के लिए उन्होंने कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र भी लिखा था, ताकि कृषि के क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी बढ़े।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि कृषि मंत्री रहते हुए पवार ने एपीएमसी कानून में जिन सुधारों की बात कही थी, मोदी सरकार ने नए कृषि कानूनों में वही बदलाव किए हैं। 2010 में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को लिखे पत्र में पवार ने कहा था कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकास, रोजगार और आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए कृषि क्षेत्र को अच्छी तरह से काम करने वाले बाजारों की आवश्यकता है।
एपीएमसी कानून में संशोधन का आह्वान करते हुए मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में पवार ने कहा था कि कोल्ड चेन समेत बुनियादी बाजार ढांचे में सुधार के लिए भारी निवेश की जरूरत है। इसके लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है, जिसके लिए उचित नियामक और नीतिगत माहौल बनाना जरूरी है।
इसी तरह का पत्र पवार ने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी लिखा था। उन्होंने कहा था कि मौजूदा एपीएमसी कानून में संशोधन की जरूरत है, ताकि मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश और विकल्प उपलब्ध कराने में निजी क्षेत्र को बढ़ावा मिले। इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जो किसानों, उपभोक्ताओं और कृषि व्यापार के लिए फायदेमंद होगा।
इसी तरह का पत्र पवार ने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी लिखा था। उन्होंने कहा था कि मौजूदा एपीएमसी कानून में संशोधन की जरूरत है, ताकि मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश और विकल्प उपलब्ध कराने में निजी क्षेत्र को बढ़ावा मिले। इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जो किसानों, उपभोक्ताओं और कृषि व्यापार के लिए फायदेमंद होगा।
भाजपा महासचिव बीएल संतोष ने कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों पर भी सवाल उठाए हैं। 2008 में एक अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित खबर को ट्वीट करते हुए संतोष ने कहा कि उस समय किसान संगठनों ने गेहूं की खरीद में बड़ी कंपनियों को भाग लेने की छूट देने की मांग की थी। उन्होंने ट्वीट किया कि 2008 में पंजाब और हरियाणा के किसान कृषि मार्केटिंग के क्षेत्र में बड़ी कंपनियों को शामिल होने की अनुमति देने की वकालत कर रहे थे। आज यही किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। ऐसे में इन किसान संगठनों के दोहरे मापदंड को समझा जा सकता है।

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आदर्श कुमार

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