बॉक्स ऑफिस पर प्रेम कहानियों का हमेशा स्वागत होता है, खासकर ऐसे समय में जब राजनीतिक थ्रिलर, देशभक्ति से भरपूर ड्रामा और एक्शन फिल्में हावी होती दिख रही हैं. और अगर ये प्रेम कहानियां पचास साल की उम्र के लोगों के जीवन को दर्शाती हैं, तो इससे बढ़िया कुछ नहीं हो सकता. जब आपके पास उम्र के हिसाब से कास्टिंग हो तो केक पर चेरी की तरह कुछ और हो जाता है. जैसे ताजी हवा का झोंका, है न? नीरज पांडे ने ‘औरों में कहां दम था’ के साथ सबसे मीठी और रसीली चेरी के साथ सबसे शानदार केक बनाने की कोशिश की, लेकिन हम जो खाते हैं वह जैम से भरी ब्रेड के स्लाइस होते हैं जिन्हें एक केक की तरह बनाया जाता है.
फिल्म की शुरुआत सीपिया रंग के फ्रेम से होती है, जिसमें यंग कृष्णा और वसुधा चट्टानों पर बैठे हुए अरब सागर और बांद्रा-वर्ली सी लिंक का सामना करते हैं. यह मत भूलिए कि यह 2001 की बात है, जब यह फेमस पुल अभी भी निर्माणाधीन था और इसलिए, यह बीच में थोड़ा टूटा हुआ है. सी लिंक में यह अंतर उनकी प्रेम कहानी का प्रतीक है जो अभी भी अधूरी है. वास्तविक दुनिया के लिए बहुत भोली वसुधा, कृष्णा से कहती है, ‘पक्का ना? कोई हमको अलग तो नहीं करेगा ना?’ इस पर, वह उसी मासूमियत के साथ कृष्णा जवाब देता है, ‘हम चेक किए थे, अभी तक कोई पैदा नहीं हुआ है. और यही विडंबना है जो कथा का सार बन जाती है.
कहानी में जाने के लिए आपको थोड़ा इसके फ्लैशबैक में जाना होगा. एक जवान लड़का और लड़की मुंबई की एक चाल में रहते हैं और एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं. उनका रोमांस जन्माष्टमी, दिवाली और होली जैसे कई त्योहारों के जरिए से पता लगाया जाता है. हालांकि, उनकी जिंदगी उस रात उलट जाती है जब कृष्णा वसुधा से कबूल करता है कि उसे ट्रेनिंग के लिए बैंगलोर और फिर जर्मनी जाना है, जहां उसे पूरे दो साल काम करना है. सालों बाद, बड़े कृष्णा (अजय देवगन) से मिलवाया जाता है, जिसे 23 साल पहले डबल मर्डर के आरोप जेल में रखा गया था और उसे 25 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी.
हालांकि, उसके अच्छे व्यवहार के कारण उसकी सजा ढाई साल कम हो जाती है. फिल्म का ज़्यादातर हिस्सा उस दिन को दर्शाता है जिस दिन वह कैद से बाहर निकलता है. दूसरी ओर, वसुधा (तब्बू) अब अपना खुद का हैंडलूम और अन्य बिजनेस चलाती है. वो अब शादीशुदा है. उसकी शादी अभिजीत (जिमी शेरगिल ) से के साथ हुई है. क्या कृष्णा वसुधा से मिलेंगे? अगर वे मिलते हैं, तो क्या वह अपने एक्स बॉयफ्रेंड के लिए अपने पति को छोड़ देगी? किस वजह से कृष्णा और वसुधा अलग हो गए? और अभिजीत अपनी पत्नी के अपने प्रेमी के साथ संबंधों में क्या भूमिका निभाता है जिससे वह शादी करने वाली थी? फिल्म इन सवालों का जवाब ढूढना मुश्किल है. वहीं आपको सभी जवाब नहीं मिल सकते हैं.
सबसे पहले, इस बात का कोई ठोस कारण नहीं है कि अभिजीत की कृष्णा से मिलने की उत्सुकता इतनी क्यों बढ़ जाती है? यह कहानी थोड़ी अजीब लगती है. हमें गलत मत समझिए! डायरेक्टर नीरज पांडे निश्चित रूप से एक कारण बताते है, लेकिन यह शायद ही यकीन करना मुश्किल लगता है. यहां कहानी थोड़ी उलझी हुई लगती है.
फिल्म के म्यूजिक की बता करें तो, इसका बैकग्राउंड म्यूजिक आपको थोड़ा इम्प्रेस करेगा. ऑस्कर विजेता संगीतकार एमएम क्रीम का यहां कोई अनादर नहीं है. उन्होंने ‘सुर’ और ‘ज़ख्म’ के साथ चार्टबस्टर हिंदी फिल्म एल्बम जारी किए हैं, लेकिन इस मामले में, जहां ‘औरों में कहां दम था’ का म्यूजिक आपको कनेक्ट नहीं कर पाता है. फिल्म के इमोशनल थीम से थोड़ा अलग लगता है. कभी-कभी, यह आपको 2000 के दशक की एक हिंदी टेलीविज़न सीरीज की याद दिला सकती है, लेकिन यह इसकी सबसे कमजोर कड़ी नहीं है, क्योंकि कभी-कभी पुरानी यादों का पल आपके दिल को छू जाता है.
अजय देवगन और तब्बू जैसे दमदार कलाकारों के साथ कई रोमांटिक और इमोशनल सीन हैं. इन सीन्स ने भी फिल्म को बेहतरीन बनाने की कोशिश की है. हां, लेकिन दुख की बात है कि वे फीके लगते हैं. क्योंकि फिल्म का पहला सीन जिसमें वे दशकों बाद अपनी पुरानी चॉल में एक-दूसरे से मिलते हैं, उसमें बहुत संभावनाएं थीं. हालांकि यह एक कमजोर सा लगता है. इसे बेहद शानदार बनाया जा सकता है. मगर फिल्म में इनकी केमेस्ट्री काफी लाजवाब है. फिल्म में काफी इमोशनल और दिल तोड़ने वाले सीन हैं, जिसे देख आप रो देंगे. वहीं कुछ ऐसे सीन हैं जिसे देख आप खिल उठेंगे. हालांकि इन सब के बावजूद, 145 मिनट की यह फिल्म ‘औरों में कहां दम था’ एक बहुत ही लंबी फिल्म लगती है. फिल्म का पहला भाग बहुत धीमा है . यहां आपको लगेगा कि मेरे धैर्य की परीक्षा ली जा रही है. जेल में कृष्णा के सीन, जो उसके बंदी जीवन की जटिलताओं की झलक दिखाते हैं, को आसानी से संक्षिप्त किया जा सकता था. फिल्म के अचानक खत्म होने पर एडिंटिंग की बारीकियां चरम पर पहुंच जाती हैं. आप पोस्ट-क्रेडिट सीन का इंतजार करते रहेंगे, लेकिन वह कभी नहीं आता. हां, अधूरी कहानियों में भी सुंदरता होती है, लेकिन यह अंत इतना झकझोर देने वाला है कि यह सच नहीं हो सकता.