सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा है कि एससी /एसटी समुदाय में भी क्रीमी लेयर की पहचान होनी चाहिए ताकि उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर किया जा सके। संविधान पीठ के चार जज जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस सतीश चन्द्र शर्मा इस पर सहमत है। जस्टिस बी आर गवई ने अपने फैसले में कहा है कि सरकार को एससी/एसटी कैटेगरी में भी क्रीमी लेयर की पहचान करने की नीति बनानी चाहिए ताकि उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर किया जा सके। सिर्फ ऐसा करके ही संविधान में दिए गए समानता के बुनियादी सिद्धांत को हासिल किया जा सकता है।
जस्टिस गवई ने सवाल उठाया कि क्या SC/ST समुदाय से ताल्लुक रखने वाले आईएएस/आइपीएस अफसर के बच्चे की तुलना उसी समुदाय के बच्चे से की जा सकती है जो ग्राम पंचायत के स्कूल में पढ़ रहा है। ऐसे लोग जो आरक्षण का फायदा उठाकर समाज मे अपनी हैसियत बना चुके है, जो सामाजिक, आर्थिक या शैक्षणिक तौर परअब पिछड़ेपन का शिकार नहीं है, उनके बच्चों की तुलना उन बच्चों से नहीं की जा सकती, जिनके माता पिता आज भी गांव में मजदूरी कर रहे है ।
हालांकि कोर्ट ने साफ किया कि SC/ST में ओबीसी लेयर की पहचान कर उन्हें इसके दायरे से बाहर करने का मापदंड उससे अलग रखा जा सकता है, जो फिलहाल ओबीसी में लागू है।
जस्टिस पंकज मिथल ने कहा – “आरक्षण का फायदा सिर्फ एक ही पीढ़ी को मिलना चाहिए। अगर किसी परिवार ने आरक्षण का फायदा उठाकर ऊंचा दर्जा हासिल कर लिया है तो कायदे से उस परिवार की दूसरी पीढ़ी को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इसलिए नियमित अंतराल पर सरकार की ओर से वो कोशिश होनी चाहिए जिसके जरिये उन लोगों को आरक्षण के दायरे से बाहर किया जाए, जो इसका फायदा उठाकर सामान्य वर्ग के बराबर की हैसियत में आ गए है।”
जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने भी एससी एसटी समुदाय में क्रीमी लेयर को लेकर दी गई जस्टिस गवई की राय से सहमति जताई। जस्टिस विक्रम नाथ ने जस्टिस बी आर गवई की राय से सहमति जताई । जस्टिस बिक्रम नाथ ने अपने फैसले में कहा कि वो SC/ST कैटेगरी में क्रीमी लेयर के जस्टिस गवई की राय से सहमत है। हालाकि क्रीमी लेयर की पहचान कर उनके आरक्षण के दायरे से बाहर करने का मापदंड उससे अलग हो सकता है , जो OBC के लिए लागू है जस्टिस शर्मा ने कहा इन समुदायों के अंदर ‘क्रीमी लेयर’ की पहचान करना सरकार की संवैधानिक ज़रूरत बन चुकी है।