हीरामंडी बाजार में रहने वाली तवायफों की कहानी पर सीरीज हीरामंडी लेकर आ रहे हैं संजय लीला भंसाली

संजय लीला भंसाली जल्द ही लाहौर के हीरामंडी बाजार में रहने वाली तवायफों की कहानी पर सीरीज हीरामंडी लेकर आ रहे हैं। उसी हीरामंडी की एक तवायफ ऐसी भी थी, जिसने पाकिस्तानी सिनेमा में अपने बेहतरीन डांस से हर प्रोड्यूसर का दिल जीत लिया था। नाम था निग्गो उर्फ नरगिस बेगम।
निग्गो पाकिस्तानी फिल्मों में दिखाए जाने वाले मुजरे की पहली पसंद हुआ करती थीं। यही कारण था कि वो 100 से ज्यादा पाकिस्तानी फिल्मों में नजर आईं। हालांकि, पर्दे पर दिखाई देने वाली उनकी जिंदगी जितनी चकाचौंध भरी और लोगों से घिरी रही, निजी जिंदगी उतनी ही बेरंग और दर्दनाक रही।
लाहौर के सबसे बदनाम रेड लाइट एरिया हीरामंडी में जन्मीं निग्गो की मां भी एक तवायफ थीं। उनके परिवार के गुजारे का इकलौता जरिया था महफिलें और मुजरा।
मां के नक्शेकदम पर निग्गो भी आला दर्जे की ट्रेडिशनल डांसर बनी थीं, जिन्हें देखने भर के लिए शाही मोहल्ले में भीड़ लगा करती थी। इस भीड़ में खड़े एक प्रोड्यूसर ने निग्गो की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी। उस प्रोड्यसूर ने निग्गो का हुनर परखकर उसे हीरामंडी के दलदल से निकलने का मौका दिया। 1968 में पाकिस्तानी सिनेमा से जुड़कर निग्गो ने नाम, रुतबा और शोहरत हासिल किया, साथ ही उन्हें मिला एक हमसफर।
एक प्रोड्यूसर से शादी कर निग्गो ने घर बसाया और हीरामंडी को हमेशा के लिए छोड़ दिया, लेकिन लालची घरवालों ने निग्गो का घर बसने नहीं दिया। चंद लाख की लालच में जब निग्गो के घरवालों ने उनकी शादी तुड़वानी चाही, तो पति ने गुस्से में उनका कत्ल कर दिया।
आज अनसुनी दास्तान में पढ़िए तवायफ से पाकिस्तानी सिनेमा की मशहूर डांसर बनीं निग्गो की स्याह कहानी, 4 चैप्टर में-
हीरामंडी, लाहौर का वो बदनाम इलाका, जो मुगल शासन से ही तवायफों का ठिकाना हुआ करता था। मुगल दौर में इस जगह जाना राजाओं की शान थी, लेकिन बीतते समय के साथ ये लाहौर का सबसे बदनाम इलाका बन गया। इस बदनाम इलाके में 40-50 के दशक के बीच एक तवायफ के घर में बेटी का जन्म हुआ। सभी तवायफों ने उसे नाम दिया नरगिस बानो। वही नरगिस जो पाकिस्तानी सिनेमा की मशहूर डांसर निग्गो नाम से पहचानी गईं। उनके जन्म की तारीख क्या थी, इस बात का जिक्र पाकिस्तानी सिनेमा के इतिहास में कहीं नहीं मिलता है, न ही कहीं उनके पिता या मां के नाम का जिक्र है।
हीरामंडी में पली-बढ़ीं नरगिस बेगम, मां के नक्शेकदम पर चलते हुए खुद भी एक ट्रेडिशनल डांसर बन गईं। बचपन से ट्रेडिशनल डांस सीखते हुए नरगिस इस कदर माहिर हो चुकी थीं कि हीरामंडी में लगने वाली उनकी महफिलों में उनका मुजरा देखने के लिए भारी भीड़ जमा हुआ करती थी।
40 के दशक के आखिर में राजशाही खत्म होने के कगार पर आ गई, ऐसे में हर तवायफ अपना बदनाम पेशा बदलने की चाह रखती थी। ये वो दौर भी था, जब सिनेमा की शुरुआत हो चुकी थी, लेकिन महिलाएं फिल्मों में काम करने से कतराती थीं। ऐसे में जब भी किसी फिल्म में महिला की जरूरत पड़ती थी, तो ज्यादातर प्रोड्यूसर्स हीरोइन की तलाश में तवायफों के ठिकाने का रुख करते थे।
एक दिन अपनी फिल्म में हीरोइन की तलाश करने के लिए पाकिस्तान के प्रोड्यूसर हीरामंडी पहुंचे थे। उन्होंने एक कोठे में भीड़ लगी देखी, तो खुद भी उसका हिस्सा बन गए। वो भीड़ नरगिस बानो का मुजरा देखने के लिए इकट्ठा हुई थी। आला दर्जे की ट्रेडिशनल डांसर नरगिस के शरीर की लचक और चेहरे के हावभाव देखकर वो प्रोड्यूसर इस कदर इंप्रेस हो गया कि उसने कुछ समय बाद नरगिस को अपनी फिल्म का ऑफर दे दिया। तवायफों की बदनाम जिंदगी जी रहीं नरगिस भी उस दलदल से निकलना चाहती थीं, ऐसे में फिल्मों में काम करने के लिए झट से राजी हो गईं।
बेहतरीन डांसिंग स्किल्स और एक्सप्रेशन की बदौलत निग्गो को 1964 की पाकिस्तानी फिल्म इशरत में जगह मिल गई। बेहतरीन अदाकारी और डांस की बदौलत निग्गो को एक के बाद एक फिल्में मिलने लगीं। उन्होंने 1968 की शहंशाह-ए-जहांगीर (1968), नई लैला नया मजनूं (1969), अंदालिब (1969), लव इन जंगल (1970), अफसाना (1970), मोहब्बत (1972) जैसी 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। उन्हें ज्यादातर फिल्मों में मुजरे के लिए ही रखा जाता था।
70 के दशक के शुरुआती सालों की बात है। नरगिस को प्रोड्यूसर ख्वाजा मजहर की फिल्म कासू में काम मिला था। फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में उनकी अक्सर प्रोड्यूसर ख्वाजा मजहर से मुलाकात हुआ करती थी। साथ समय बिताते हुए दोनों एक-दूसरे को चाहने लगे। ख्वाजा मजहर, निग्गो से इस कदर प्यार करने लगे कि उन्होंने बिना कोई परवाह किए सीधे शादी का फैसला कर लिया। कई लोग उनके इस फैसले के खिलाफ थे, वजह थी निग्गो का तवायफों के खानदान से ताल्लुक होना, मगर कई विरोध के बावजूद ख्वाजा मजहर ने कदम पीछे नहीं खींचे।
ख्वाजा मजहर से शादी के ठीक बाद निग्गो ने हीरामंडी की बदनाम गलियों से रिश्ता तोड़ लिया। निग्गो की शादी के बाद हीरामंडी में रह रहे उनके परिवार की रोजी-रोटी का जरिया खत्म हो चुका था। निग्गो मजहर के साथ रहने लगीं और उन्होंने फिल्मों में काम करना भी लगभग बंद कर दिया।
तवायफ कल्चर जब खत्म होने को आया तो शाही मोहल्ले में एक रिवाज की शुरुआत की गई। वो रिवाज ये था कि अगर कोई शख्स शाही मोहल्ले के कोठे की लड़की से शादी करेगा, तो उसे उस लड़की के परिवार वालों को उसकी रकम चुकानी होगी।
निग्गो शादी के बाद एक इज्जतदार जिंदगी जीना शुरू कर चुकी थीं, लेकिन उनके परिवारवालों को ये मंजूर नहीं था। निग्गो के जाने के बाद परिवार की रोजी का जरिया खत्म हो चुका था, तो उनका परिवार चाहता था कि निग्गो लौट आएं। परिवार निग्गो से हीरामंडी लौटने की जिद करने लगा, लेकिन जब उन्होंने लौटने से साफ इनकार कर दिया, तो परिवार उनके पति से रिवाज के तहत एक बड़ी रकम की डिमांड करने लगा।
जब तमाम कोशिशों के बावजूद निग्गो ने घर लौटने से इनकार कर दिया, तो उनकी मां ने उन्हें बुलाने के लिए षड्यंत्र रचा। उन्होंने अपनी तबीयत बिगड़ने का नाटक किया और निग्गो को कॉल कर कहा कि वो मरने से पहले बस एक बार उनसे मिलना चाहती हैं।
मां की बिगड़ी तबीयत की खबर मिलते ही निग्गो अपने पति से इजाजत लेकर उनसे मिलने हीरामंडी आ गईं। जैसे ही वो घर पहुंचीं, तो उनके परिवार ने उनके कान भरने शुरू कर दिए। उन्हें पहले झूठ बोलकर रोक लिया गया और जब उन्होंने लौटना चाहा, तो मां ने उन्हें कसमें देकर रुकने के लिए मना लिया। मां ने बहला-फुसला कर निग्गो को अपने साथ रुकने पर राजी कर लिया।
निग्गो जब कई दिनों तक घर नहीं लौटीं तो मजहर ख्वाजा परेशान रहने लगे। वो कुछ दिनों बाद उन्हें लेने हीरामंडी पहुंचे, लेकिन परिवार के दबाव में निग्गो ने मजहर के साथ लौटने से साफ इनकार कर दिया। कई महीनों तक ये सिलसिला जारी रहा। मजहर ने निग्गो और उनके परिवार को मनाने की लाख कोशिशें की, लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही मिली।
5 जनवरी 1972 की बात है। मजहर ख्वाजा, निग्गो और उनके परिवार को मनाते हुए थक चुके थे। वो आखिरी कोशिश करने हीरामंडी पहुंचे थे, लेकिन इस बार भी जवाब में निराशा ही मिली। जब निग्गो ने उनके साथ आने से साफ इनकार कर दिया तो निग्गो की बेरुखी, मजहर ख्वाजा को इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने अपनी जेब में रखी पिस्तौल निकाली और निग्गो पर चलानी शुरू कर दी।
मजहर इतने आक्रोश में थे कि उन्होंने निग्गो पर एक के बाद एक कई गोलियां चलाईं। गोलियों की आवाज सुनकर कोठे के दो म्यूजिशियन और निग्गो के अंकल भी उन्हें बचाने पहुंचे, लेकिन मजहर ख्वाजा ने उन पर भी गोलियां चलानी शुरू कर दीं। हादसे में निग्गो ने हीरामंडी के अपने घर में ही दम तोड़ दिया और उनके साथ 2 म्यूजिशियन और अंकल की भी मौत हो गई।
निग्गो की मौत के बाद उनके पति मजहर ख्वाजा को ट्रायल के दौरान कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई। जेल में सजा काटते हुए ही मजहर ख्वाजा की भी मौत हो गई, जिन्हें गुंजारवाला कब्रिस्तान में दफनाया गया था। वहीं निग्गो उर्फ नरगिस बेगम को लाहौर के मियामी साहिब कब्रिस्तान में दफनाया गया।