ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी (फिजिसिस्ट) पीटर हिग्स का निधन हो गया है। वे 94 साल के थे। उन्होंने हिग्स-बोसोन पार्टिकल यानी गॉड पार्टिकल की खोज की थी।
इसके तहत ये समझाने में मदद की गई कि बिग बैंग के बाद सृष्टि की रचना कैसे हुई। उन्होंने दर्शाया था कि कैसे बोसोन इस यूनिवर्स को जोड़कर रखता है। इसके लिए 2013 में उन्हें फिजिक्स का नोबेल प्राइज दिया गया था।
एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी ने उनके निधन की जानकारी देते हुए कहा कि पीटर ने बीमारी के बाद 8 अप्रैल को अपने घर में अंतिम सांस ली। वह कई साल इसी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे थे। 1960 के दशक में हिग्स और अन्य भौतिक विज्ञानियों ने यह समझने की कोशिश की थी कि ब्रह्मांड आखिर किस चीज से बना है। इसी कोशिश में उन्होंने भौतिकी के मूल सवाल के जवाब को तलाशने की कोशिश की।
साल 2012 में वैज्ञानिकों ने इस पर जानकारी हासिल कर ली, इसका नाम हिग्स बोसोन रखा गया। दूसरे शब्दों में कहें तो 4 जुलाई 2012 को हिग्स बोसोन कण के अस्तित्व की पुष्टि होने की घोषणा हुई थी। 2012 के पहले तक हिग्स बॉसन या गॉड पार्टिकल विज्ञान की अवधारणा थी।
पीटर हिग्स का जन्म 1929 में न्यूकैसल में हुआ था। उनके पिता BBC में साउंड इंजीनियर थे। जब हिग्स का परिवार ब्रिस्टल में रहने लगा तो हिग्स ने कोटहेम ग्रामर स्कूल में खुद को बेहद प्रतिभाशाली छात्र के रुप में सिद्ध किया। स्कूली शिक्षा के बाद हिग्स ने लंदन के किंग्स कालेज में भौतिक विज्ञान की पढ़ाई की। उस समय उन्होंने भौतिकी के एक नए विकल्प सैद्धांतिक भौतिकी को चुना।
1997 में उन्हें सैद्धांतिक भौतिकी के क्षेत्र में शानदार योगदान के लिए डिरेक मेडल दिया गया। इसी साल यूरोपीय भौतिकी समित ने उच्च ऊर्जा और कणीय ऊर्जा के लिए सम्मानित किया। 2004 में वोल्फ फाउंडेशन ने हिग्स को भौतिक शास्त्र के वोल्फ पुरस्कार से सम्मानित किया।
‘गॉड पार्टिकल’ की खोज में भारत का भी योगदान रहा। ‘हिग्स बोसोन’ का ‘हिग्स’ ब्रिटिश भौतिकशास्त्री पीटर हिग्स के नाम पर है। वहीं, ‘बोसोन’ है वो भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर है। वहीं, जुलाई 2012 के न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में बोस को ‘फादर ऑफ गॉड पार्टिकल’ बताया था।
1 जनवरी 1874 को कलकत्ता में पैदा हुए सत्येंद्र बोस ने क्वांटम मैकेनिक्स और मैथेमेटिकल फिजिक्स में उल्लेखनीय काम किया। बोस ने क्वांटम स्टेटिस्टिक्स पर एक शोधपत्र लिखा और एक ब्रिटिश जर्नल को प्रकाशन के लिए भेजा लेकिन यह प्रकाशित नहीं हो सका।
बोस ने 1924 में अलबर्ट आइंस्टीन को एक पत्र लिखा और साथ में अपना शोधपत्र उन्हें भेज दिया। आइंस्टीन ने बोस के काम के महत्व को समझते हुए उसे एक जर्मन जर्नल में प्रकाशित करवा दिया। इस जर्नल में ही पहली बार बोसोन शब्द का इस्तेमाल हुआ। सत्येंद्र नाथ बोस की खोज को आइंस्टीन ने ही ‘बोसोन’ नाम दिया था। लीवरपूल यूनिवर्सिटी में पार्टिकल फिजिक्स पढ़ाने वाली तारा सियर्स कहती हैं, “हिग्स बोसोन से कणों को भार मिलता है। यह सुनने में बिल्कुल सामान्य लगता है, लेकिन अगर कणों में भार नहीं होता तो फिर तारे नहीं बन सकते थे। आकाश गंगाएं न होंती और परमाणु भी नहीं होते। ब्रह्रांड कुछ और ही होता।”
भार या द्रव्यमान वह चीज है जो किसी भी चीज को अपने अंदर रख सकता है। अगर कुछ नहीं होगा तो फिर किसी चीज के परमाणु उसके अंदर घूमते रहेंगे और जुड़ेंगे ही नहीं। इस सिद्धांत के मुताबिक, हर खाली जगह में एक फील्ड बना हुआ है जिसे हिग्स फील्ड का नाम दिया गया। इस फील्ड में कण होते हैं जिन्हें हिग्स बोसोन कहा गया। जब कणों में भार आता है तो वो एक दूसरे से मिलते हैं।