जलवायु के परिवर्तन से पानी के जंगलों को हो रहा खतरा

जलवायु के परिवर्तन से जितना नुकसान धरती की ऊपरी सतह पर होता है उतना ही नुकसान धरती की आंतरिक सतह यानि पानी के जीवों और पेड़—पौधों को भी होता है।

एक सामने आयी रिपोर्ट अनुसार पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पानी के नीचे समुद्री घास—पात से बने जंगलों के सूक्ष्मजीवों को प्रभावित कर उनके अस्तित्व के लिए खतरा बनता जा रहा है। आस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी आफ सिडनी और सिडनी यूनिवर्सिटी आफ मरीन साइंस के शोधकर्ताओं ने बताया कि जैसे मनुष्य की आंत के सूक्ष्मजीवों में किसी तरह का बदलाव होने पर उनकी सेहत ​बिगड़ जाती है।

उसी तरह समुद्रों में अनुमानित वार्मिंग और अम्लीकरण के चलते केल्प की सहत पर सूक्ष्मजीवों में परिवर्तन होता है। जिससे बीमारी पनपती है और मछली पालन को खतरा पहुंचने की आशंका रहती है। जलवायु परिवर्तन के कारण जैवविविधता पर काफी प्रभाव पड़ा है।

जैवविविधता पर प्रभाव इसलिए पड़ रहा है क्योंकि समु्द्र के गरम होने और अम्लीकरण के कारण समुद्री जीव जैसे कोरल (मूंगा) व बड़े शैवाल अपना निवास ​स्थान बदल रहे है। जिससे उनकी संख्या में काफी कमी आ रही है। केल्प की सतह का तेजी से गर्म होना और ब्लीचिंग एवं अंतत: क्षरण होने से जीवों की प्रकाश संश्लेषण करने की क्षमता और जीवत रहने की क्षमता पर काफी प्रभाव पड़ता है।

इस सम्पूर्ण अध्ययन के बाद अध्ययनकर्ता बताते है दो प्रक्रियाएं भूरे रंग के विशाल शैवालों की सतह पर मौजूद सूक्ष्म जीवों में परिवर्तन ला सकती है जिससे ​बीमारी जैसे लक्षण पैदा हो सकते है। प्रोसिडिंग आफ द रॉयल सोसाइटी में प्रकाशित हुई सूचना के अनुसार शोधकर्ता बताते है कि इससे विश्व भर के समुद्री जंगल प्रभावित हो सकते है।

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