रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग दूसरे सप्ताह में चल रही है। इस दौरान रूस ने चर्नोबिल समेत यूरोप के सबसे बड़े न्यूक्लियर पावर प्लांट जैपोरिझिक पर भी अपना कब्जा कर लिया है। इससे पहले रूस ने इस परमाणु संयंत्र पर हमला भी किया था, जिसको लेकर कई सारे सवाल भी उठे थे। हालांकि जानकार मानते हैं कि इस संयंत्र पर हुआ रूस का हमला पश्चिमी देशों को एक कड़ा और सीधा संकेत था। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फार रशिया एंड सेंटर फार एशियन स्टडीज की प्रोफेसर अनुराधा शिनोए का कहना है कि रूस ने इस हमले से सभी देशों को ये कड़ा संकेत दिया है कि यदि उन्होंने इस लड़ाई में कूदने की कोशिश की तो वो न्यूक्लियर अटैक करने से भी नहीं चूकेगा।
उनके मुताबिक इसका एक संकेत राष्ट्रपति जेलेंस्की के लिए भी है कि यदि वो रूस की मांगों के आगे नहीं झुके तो अंजाम सही नहीं होगा। रूस अपनी मांगों को पूरा करने के लिए कहीं तक भी जा सकता है। जिस संकेत को देने के लिए रूस ने जैपोरिझिक न्यूक्लियर पावर प्लांट पर हमला किया था उसका असर भी साफतौर पर होता दिखाई दे रहा है। इस हमले के बाद पश्चिमी देशों और अमेरिका ने बयानबाजी के अलावा कोई दूसरा कदम नहीं उठाया है। आपको बता दें कि रूस यदि चाहता तो इस परमाणु संयंत्र को सीधा निशाना बनाकर जबरदस्त तबाही मचा सकता था और यूक्रेन को घुटनों पर ला सकता था। लेकिन रूस ने ऐसा नहीं किया है
इस बीच यूक्रेन का भी संयंम अब पश्चिमी देशो, नाटो और अमेरिका से टूटता दिखाई दे रहा है। यही वजह है कि शनिवार को राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने नाटो पर ही सवाल उठा दिया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि नाटो ने ही रूस को यूक्रेन के गांव और शहरों पर हमले करने का ग्रीन सिग्नल दिया था। उनका ये बयान कहीं न कहीं यही बताता है कि रूस के आगे जो उनकी बेबसी है उसको खत्म करने की राह उन्हें कहीं भी दिखाई नहीं दे रही है। पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई तो की है लेकिन इन्हें चलाने वाले वहां पर नहीं हैं। वहीं जो अमेरिका पहले यूक्रेन की हर संभव मदद की बात करता था वो कहीं दूर खड़ा हुआ केवल बयानबाजी ही कर रहा है। ऐसे में यूक्रेन की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है।