राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की बीते दिनों हुई मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ बैठक और हाल के मस्जिद और मदरसे के दौरे के पीछे संघ की भावी रणनीति है। संघ केवल मुस्लिमों को ही नहीं, ईसाई और सिख अल्पसंख्यकों को भी अपने करीब लाने में जुटा है। संघ का मानना है कि देश में सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द के लिए हर समुदाय तक इस बात को पहुंचाना बहुत जरूरी है कि हमारे पूर्वज एक थे, भले ही उनके पंथ और पूजा-पद्धति अलग-अलग हों।
भागवत लंबे समय से लगातार इस बात पर जोर देते रहे कि भारत में रहने वाले सभी धर्मों के लोगों के पूर्वज एक हैं। यही इस देश को एक कड़ी में जोड़ता है। उन्होंने कहा है कि पूजा पद्धति भले ही अलग-अलग हों, लेकिन सब भारत की संतानें हैं। दरअसल, संघ इसके जरिए देश के हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी को साथ रख कर सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना कर विकसित भारत व विश्व गुरु के लक्ष्य को साकार करना चाहता है।
गौरतलब है कि हाल ही में संघ प्रमुख ने कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों से भी व्यक्तिगत स्तर पर मुलाकात की थी। भागवत से मिलने वालों में दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल जमीरउद्दीन शाह, कारोबारी सईद शेरवानी और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दिकी शामिल थे।
संघ के प्रमुख नेता व भाजपा के पूर्व संगठन महामंत्री रामलाल की पहल पर हुई इस मुलाकात में भी दोनों समुदायों के बीच मतभेद को कम करने के लिए संभावित उपायों पर चर्चा की गई। मुलाकात की पहल मुस्लिम बुद्धिजीवियों की ओर से की गई थी। यह पहल उस समय हुई है, जब भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा की विवादित टिप्पणी से स्थिति बिगड़ी थी। बैठक में देश में सांप्रदायिक सौहार्द मजबूत करने व हिंदू-मुस्लिमों के बीच गहरी हो रही खाई को पाटने की जरूरत पर बल दिया गया था।
इसके पहले मुसलमानों के एक संगठन जमीअत-उलेमा-ए-हिंद के नेता मौलाना अरशद मदनी ने भी 30 अगस्त 2019 को दिल्ली स्थित संघ मुख्यालय पहुंचकर भागवत से मुलाकात की थी। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के नेता इंद्रेश कुमार की पहल पर हुई इस मुलाकात की भी बहुत चर्चा हुई थी। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अयोध्या में राम मंदिर पर फैसला (9 नवंबर 2019) आने के पहले दोनों शीर्ष नेताओं की इस मुलाकात को फैसला आने के बाद दोनों समुदायों में शांति बनाए ऱखने की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण माना गया था।
संघ की इस सारी कवायद का राजनीतिक लाभ भाजपा को मिलता है। इससे भाजपा और उसके नेतृत्व के प्रति भी अल्पसंख्यक समुदाय खासकर मुस्लिमों में भरोसा बढ़ेगा। आम धारणा है कि भाजपा और संघ अलग नहीं है और भाजपा की मूल ताकत संघ में निहित है। ऐसे में संघ अगर मुसलमानों के करीब जाता है तो निश्चित रूप से भाजपा को लेकर मुस्लिम वर्ग का पूर्वाग्रह भी टूटेगा।
गौरतलब है कि हाल में भाजपा ने अपनी हैदराबाद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मुस्लिम वर्ग तक पहुंच व्यापक बनाने की बात कही थी। इसमें पसमांदा मुसलमानों को खासतौर पर लक्षित किया गया है, जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं।