जलवायु संकट को लेकर गहराती चिंता के बीच दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के समूह जी-20 ने इस सदी के मध्य तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य स्तर तक लाने यानी कार्बन तटस्थता हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई है। जी-20 के नेताओं ने वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए सार्थक और प्रभावी कार्रवाई करने का संकल्प भी लिया है।
जलवायु शिखर सम्मेलन की भूमिका तैयार
दरअसल इटली की राजधानी में दो दिनों तक चले जी-20 शिखर सम्मेलन के आखिरी दिन रविवार को जो अंतिम बयान जारी किया गया है, उसे ब्रिटेन के ग्लासगो में शुरू हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन की भूमिका के रूप में देखा जा रहा है। जी-20 के शिखर सम्मेलन के आखिरी सत्र में ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा हुई।
जी-20 के नेताओं के बीच इस बात को लेकर सहमति बनी है कि दूसरे देशों को कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए इस साल के बाद वित्तीय मदद नहीं दी जाएगी, लेकिन घरेलू स्तर पर कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को बंद करने की कोई समय सीमा नहीं तय की गई है।
चीन और भारत के लिए यह झटका है क्योंकि इन दोनों देशों में ज्यादातर बिजली उत्पादन करने वाले संयंत्र ईंधन के रूप में कोयले का ही इस्तेमाल करते हैं। ब्रिटेन के लिए भी एक तरह से यह झटका है क्योंकि वह ग्लासगो सम्मेलन से पहले इस संबंध में ठोस संकल्प चाहता था।
जी-20 के सदस्य देश दुनिया की 80 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं। मेजबान देश इटली के प्रधानमंत्री मारियो द्राघी ने नेताओं से अनुरोध किया था कि ग्रीनहाउस गैसों की कटौती के लिए उन्हें दीर्घकालिक लक्ष्य तय करने होंगे और त्वरित बदलाव करने होंग
वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में जी-20 देशों की जिम्मेदारी ज्यादा है क्योंकि दुनिया की 80 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन यही करते हैं। इसलिए इसमें कटौती करने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की है। दुनिया की जीडीपी में इनका हिस्सा का 85 प्रतिशत है। इटली के प्रधानमंत्री मारियो द्राघी ने कहा था कि कोयला पर निर्भरता कम करने और अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने के लिए तेजी से काम करना होगा।
जी-20 के सदस्य देशों ने जलवायु परिवर्तन के चलते मुश्किलों का सामना कर रहे गरीब देशों की मदद के लिए अमीर देशों द्वारा सालाना 100 अरब डालर (7.5 लाख करोड़ रुपये) जुटाने के वादे को फिर दोहराया है। साथ ही अपनी तरफ से भी वित्तीय मदद बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है।कार्बन तटस्थता यानी ‘नेट जीरो’ उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने पर कोई ठोस समय सीमा तय नहीं हो सकी है। ‘नेट जीरो’ उत्सर्जन से मतलब वातावरण में छोड़ी गई कार्बन यानी ग्रीनहाउस गैस और हटाई गई ग्रीनहाउस गैस के बीच संतुलन से है। अधिकारियों का कहना है कि कार्बन तटस्थता को लेकर विभिन्न देशों के लक्ष्य अलग-अलग हैं। कुछ देशों ने इस लक्ष्य को 2050 तक हासिल करने का संकल्प लिया है, वहीं चीन, रूस और सऊदी अरब ने 2060 का लक्ष्य रखा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अभी जिस स्तर से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है, उसके आधार पर 2050 तक वैश्विक तापमान दो डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो इसके नतीजे भयावह होंगे। पृथ्वी के किसी भाग में भीषण सूखा पड़ेगा तो किसी भाग में प्रलयकारी बाढ़ आएगी। ग्लेशियर भी पिघलेंगे और इसके चलते समुद्र तट के कई शहरों का नामोनिशान मिट जाएगा
जी-20 समूह में अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ के देश, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। ये सभी सदस्य मिलकर दुनिया की जीडीपी का 85 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं। यूरोपीय संघ को एक देश के रूप में मान्यता मिली है, जिसमें 27 देश हैं।
समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीनपीस इंटरनेशनल ने जलवायु आपात स्थिति और कोरोना से निपटने के लिए तेज और अधिक महत्वाकांक्षी कार्ययोजना की मांग की। संगठन ने इसके साथ ही कहा कि जी-20 शिखर सम्मेलन वैश्विक संकट से निपटने में असफल रहा है।
ग्रीनपीस इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक जेनिफर मार्गन ने कहा कि जी-20 सम्मेलन ‘कमजोर और महत्वकांक्षा व दृष्टिकोण’ की कमी वाला था। अगर जी-20 सम्मेलन काप-26 सम्मेलन का पूर्वाभ्यास था तो विश्र्व नेताओं ने अपने रुख पर सतही काम किया है। ‘मार्गन ने कहा, ‘ अब वे ग्लासगो जा रहे हैं और अब भी उनके पास ऐतिहासिक अवसर है लेकिन आस्ट्रेलिया और सऊदी अरब जैसे देशों को हाशिये पर ढकेलने जबकि अमीर देशों को अंतत: समझने की जरूरत है कि काप-26 की सफलता की कुंजी विश्वास है।’