एक्टर बनने से पहले टेलरिंग सीखी राजपाल यादव ने, फिल्म ‘जंगल’ के बाद साइन की थीं 16 फिल्में

तारीख थी 20 जनवरी, 2001 और जगह मुंबई का इलाका-अंधेरी । इस दिन 7वें स्क्रीन अवाॅर्ड दिए जा रहे थे। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरे लिए ये दिन खास होने वाला है। मुझे निगेटिव रोल के लिए बेस्ट एक्टर अवॉर्ड दिया गया। यकीन नहीं हुआ कि ये अवाॅर्ड मुझे मिल रहा है। जब मैं अवॉर्ड लेने के लिए स्टेज पर गया तो खूब तालियां बजीं। ये अवाॅर्ड मुझे फिल्म जंगल के लिए मिला था, जो मेरे करियर की चौथी फिल्म थी।
खुद को लकी मानता हूं कि मैंने 24 साल के एक्टिंग करियर में बहुत संघर्ष देखे और कामयाबी भी इस सफर में साथ रही। शाहजहांपुर से निकलकर बॉलीवुड में बतौर कॉमेडियन अपनी जगह बनाना बिल्कुल आसान नहीं था। कभी रिजेक्शन तो कभी तंगी झेली, लेकिन मैं इससे कभी नहीं घबराया।
बातचीत की शुरुआत में मैंने बताया कि मैं उनके संघर्ष को आज की स्ट्रगल स्टोरी में कवर करना चाहती हूं, तो उन्होंने कहा-जब से जन्मा हूं तब से ही संघर्ष रहा है। आपको कितने शब्दों में बता दूं?
मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर से 50 किलोमीटर दूर गांव कुंद्रा में हुआ था। पिता किसान थे। खेती से ही परिवार का गुजर-बसर होता था। उस समय गांव में एक भी पक्का घर नहीं था, मैं दोस्तों के साथ गड्ढों में भरे गंदे पानी में खेलता था। एक बार मैं होमवर्क करके स्कूल नहीं गया तो मास्‍टरजी जगदीश श्रीवास्तव ने लकड़ी से मेरी पिटाई की। कुछ दिन बाद पिता स्‍कूल पहुंचे और प्रिंसिपल से कहा- अगर राजपाल अपनी मेहनत से एग्जाम में पास होता है तो ठीक, नहीं तो इसे पास न करना। अगर ये पढ़ना चाहता है तो ठीक, नहीं तो हम मजदूरी करके इस तरह अपनी कमाई बर्बाद नहीं कर सकते।
मैंने 5वीं तक की पढ़ाई कुंद्रा से की। इसके बाद एक, दो स्कूल और बदले। फिर पिता ने मेरा एडमिशन शहर के सरदार पटेल स्‍कूल में करवा दिया। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के बावजूद वो मुझे पढ़ा-लिखाकर बड़ा इंसान बनाना चाहते थे।
स्कूल में एक टीचर थे। वो चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं। उनके कहने पर मैंने भी मन बना लिया कि आगे चलकर डॉक्टर बनूंगा। 10वीं के बाद समझ आ गया कि डॉक्टरी की पढ़ाई नहीं कर पाऊंगा। मैंने डॉक्टर बनने के सपने को छोड़ दिया। फिर ऑर्डिनेंस क्लॉथ फैक्ट्री में टेलरिंग अप्रेंटिस का कोर्स किया। परिवार की माली हालत देख मैंने इस कोर्स को करने का फैसला लिया था। ये फैक्ट्री रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आती है। यहां पर सैनिकों के लिए कपड़े बनाए जाते थे। हर साल इसमें 30 लोगों का सिलेक्शन होता है। मैं यहां के 30वें बैच का पास आउट हूं।
ऑर्डिनेंस क्लॉथ फैक्ट्री में रामलीला होती थी। मैं भी इसमें पार्टिसिपेट करने लगा। मेरी एक्टिंग देख लोग इम्प्रेस हुए। मुझे भी नाटकों में काम करके मजा आने लगा। मुझे लगने लगा कि इस फील्ड में मैं बेहतर काम कर पाऊंगा।
उस वक्त मुझे श और स बोलने में बड़ी दिक्कत होती थी। शाम को साम बोलता था। इन छोटी-छोटी चीजों पर मैंने बहुत मेहनत की। रोज प्रैक्टिस करता था। अब श और स का अंतर बखूबी जानता हूं। गलती से भी गलती नहीं करता।
भारतेंदु नाट्य एकेडमी में पढ़ाई पूरी हो गई थी। फिर भी मन में था कि अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है। सीखने की चाहत में मैंने NSD में एडमिशन ले लिया। यहां पर तीन साल के लिए मुझे स्काॅलरशिप भी मिल गई। 1997 में यहां से पास हो गया।
मुझे याद है कि NSD में हमारे फेयरवल का समय था। इसी में मंजू सिंह आई थीं जो आज भी बड़ी बहन की तरह हैं। मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा कि वो एक टीवी शो बना रही हैं, जब भी मैं मुंबई आऊं तो उनसे जरूर मिलूं।
फेयरवल के कुछ दिन बाद हम 5 दोस्त मुंबई पहुंचे और मंजू सिंह से मिलने चले गए। वो उन दिनों स्वराज सीरियल पर काम कर रही थीं। ये पहली बार था जब मैंने कैमरा फेस किया। इसमें उन्होंने मुझे भी छोटा सा रोल दे दिया। इसके बाद मुझे शो मुंगेरी के भाई नौरंगीलाल में काम करने का मौका मिला।
एक वक्त के बाद मेरा मन टीवी शोज से भर गया था। मुझे बड़े ब्रेक की तलाश थी। इसके लिए बड़े-बड़े डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स के ऑफिस के चक्कर लगाने पड़ते थे। हालात ये हो गए थे कि ऑफिस के वॉचमैन भी मुझे पहचानने लगे थे। पैसों की कमी थी। इस कारण लंबा सफर भी पैदल ही कवर करना पड़ता
मैं रोज 5-6 लोगों के साथ पृथ्वी थिएटर में बैठता था। नवाजुद्दीन सिद्दीकी, अनुराग कश्यप से मुलाकात होती रहती थी। उस समय मेरा सीरियल मुंगेरी के भाई नौरंगीलाल सिर्फ डीडी नेटवर्क पर टेलिकास्ट हो रहा था। बहुत लोगों को पता भी नहीं था कि मैं इसमें काम कर रहा हूं।
उस वक्त राम गोपाल वर्मा के साथ मिलकर अनुराग कश्यप फिल्म शूल की कहानी लिख रहे थे। उसी समय सत्या भी रिलीज हुई थी, जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया था। यही कारण था कि काम की उम्मीद में मैं भी रामू जी के ऑफिस के बहुत चक्कर काटता था। ये वो दौर था कि जब राम गोपाल वर्मा, महेश भट्ट जैसे डायरेक्टर्स न्यू कमर्स को अपनी फिल्मों में कास्ट कर रहे थे।
अनुराग कश्यप ने मुझसे कहा- रामू जी नई फिल्म शूल प्रोड्यूस कर रहे हैं, जिसमें मनोज बाजपेयी लीड रोल में दिखेंगे। तुमको भी काम मिल सकता है। उसके लिए अपनी फोटोज उनके ऑफिस में छोड़ आओ।
उनके कहने पर मैंने और दोस्तों ने अपनी फोटो रामू जी के ऑफिस में छोड़ दी। अनुराग कश्यप का आइडिया काम कर गया। शूल में मुझे कुली का रोल मिला, नवाज भाई (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) को वेटर का रोल मिला, ऐसे ही बाकी लोगों को भी एक-एक लाइन का सीन मिला। भगवान की कृपा से शूटिंग के दौरान 1 सीन से मेरे 13 सीन हो गए।
फिल्म में मेरा मनोज बाजपेयी और रवीना टंडन के साथ सीन था। आज भी मैं रवीना टंडन, मनोज बाजपेयी और अनुराग कश्यप का शुक्रिया अदा करता हूं। इन लोगों ने परफेक्ट शॉट देने में मेरी बहुत मदद की थी।
फिल्म जंगल के डायरेक्टर राम गोपाल वर्मा थे। उन्होंने फिल्म शूल में मेरा काम देखा था। एक दिन उनके ऑफिस से श्री प्रबल पांडे का काॅल आया- रामू जी आप से मिलना चाहते हैं।
क्यों मिलना चाहते हैं। पूछने पर पता चला कि वो अपनी अपकमिंग फिल्म जंगल के सिलसिले में मिलना चाहते हैं। ये सुनते ही मैंने मना कर दिया। मुझे लगा कि मैं फिल्म के लिए फिट नहीं हूं। मैं जंगली नहीं दिखता। मेरी लंबाई अच्छी नहीं है इसलिए मैंने सोचा कि उन्हें 6 फीट के एक आदमी की जरूरत होगी।
फिर भी मैं मिलने के लिए उनके ऑफिस गया। उन्होंने फिल्म जंगल में मुझे सिप्पा का रोल ऑफर किया। मुझे यकीन ही नहीं हुआ। लगा कि रामू जी इतनी बड़ी फिल्म मुझे क्यों ऑफर कर रहे हैं। फिर उन्होंने मुझे समझाया, जिसके बाद मैंने फिल्म साइन की।
जब स्क्रीन अवॉर्ड में सिप्पा के रोल के लिए मुझे बेस्ट एक्टर इन निगेटिव रोल का अवाॅर्ड मिला, तो मैं खुशी से पागल हो गया। इसके पहले ये हालात थे कि फिल्म शूल के बाद मुझे कोई फिल्म ही नहीं ऑफर कर रहा था। जंगल के बाद मैंने एक महीने में 16 फिल्में साइन कीं।
एक समय ऐसा था कि जब मैं एक प्रोजेक्ट करने के तुरंत बाद दूसरे प्रोजेक्ट के लिए तैयार हो जाता था। घर जाने तक का वक्त नहीं मिलता था। एयरपोर्ट पर पत्नी घर से नए कपड़े भेज दिया करती थी। एक बार मैं एक फिल्म की शूटिंग लखनऊ के पास के एक गांव में कर रहा था। वहां मुझे एक टूटे-फूटे घर में रहना पड़ा, जो धूल से भरा हुआ था। जब मैं सुबह उठता था तो मेरी नाक में रेत होती थी। यह बहुत बुरा था! वहां शूटिंग करना संघर्ष से भरा था, लेकिन मैंने कभी किसी बात को लेकर शिकायत नहीं की। मैंने अपने परिवार को भी इस बारे में कुछ नहीं बताया।
बहुत कम उम्र में, मैंने सीखा कि इंसान को हर पल उत्साह से भरा रहना चाहिए। मेरा मानना ​​है कि मैं बॉलीवुड का सबसे भाग्यशाली एक्टर हूं। मैं पिछले तीन दशकों से काम कर रहा हूं।
ये तो सबका अपना-अपना नजरिया है। वैसे खेल भी सब हाइट का ही है। हाइट की ताकत ही इंसान को एक ऊंचे मुकाम पर पहुंचाती है। वैसे हाइट कम करना या बढ़ाना, किसी के हाथ में नहीं होता है। ये तो पैदाइश से ही फिक्स होता है। कम हाइट पर दुख जताना बस समय की बर्बादी है।
मैं खुद को लकी मानता हूं कि मैंने हर जाॅनर की फिल्मों में काम किया है। हर सिनेमा को करीब से देखा है। मैंने निगेटिव रोल से शुरुआत की, फिर मैं काॅमेडियन बना। लीड एक्टर के तौर पर भी काम किया। फिल्म का नाम था मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं। फिल्म ‘मैं, मेरी पत्नी और वो’ में भी लोड रोल निभाया। फिर निगेटिव रोल किया फिर काॅमेडी में छाया। मतलब मैंने खुद को एक जाॅनर में सीमित नहीं किया और आगे बढ़ता गया।