अचानक इंडस्ट्री से गायब हुए राज किरण के कभी अटलांटा के पागलखाने में होने की खबर आई

कहते हैं फिल्मी दुनिया में दूर से जितनी चकाचौंध दिखती है, नजदीक जाने पर उतनी ही पेचीदा होती चली जाती है। कई लोग यहां नाम, शोहरत स्टारडम तो हासिल कर लेते हैं, लेकिन जब उन्हीं स्टार्स का नाकामी से सामना होता है तो उसे बर्दाश्त करना काफी मुश्किल होता है। ऐसा ही कुछ हुआ 80 के दशक के मशहूर एक्टर राज किरण के साथ। कई लोग उन्हें नाम से नहीं पहचानते, लेकिन तस्वीर देखने पर मालूम पड़ता है कि इस शख्स को किसी न किसी फिल्म में तो जरूर देखा है।

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो…., झुकी झुकी सी नजर…जैसे बेहतरीन गाने राज किरण पर ही फिल्माए गए हैं। 1975 की फिल्म कागज की नाव से फिल्मों में आए राज किरण ने अपने हुनर का ऐसा कारनामा दिखाया कि 1980 में उनकी एक साथ 8 फिल्में रिलीज हुईं, जिनमें से ज्यादातर हिट रहीं। कर्ज, अर्थ, घर एक मंदिर जैसी करीब 100 फिल्मों में नजर आए राज किरण को हिंदी सिनेमा के हैंडसम और नम्र स्वभाव के दरियादिल एक्टर के रूप में जाना जाता था, लेकिन उनकी निजी जिंदगी अपने आप में एक मुकम्मल थ्रिलर फिल्म की तरह रही, जिसके क्लाइमैक्स का इंतजार आज भी फैंस को है।
अचानक इंडस्ट्री से गायब हुए राज किरण के कभी अटलांटा के पागलखाने में होने की खबर आई, तो कभी अमेरिका में टैक्सी चलाने की, लेकिन असल में वो कहां, किस हाल में है, जिंदा हैं भी या नहीं, ये बात कोई नहीं जानता। ऋषि कपूर और दिप्ती नवल जैसे उनके कुछ दोस्तों ने भी उन्हें ढूंढने की कोशिशें कीं, लेकिन परिवार ने उन्हें पूरे मामले से दूर रहने की हिदायत दे दी।
19 जून 1949, राज किरण महतानी का जन्म बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था। सिंधी परिवार में जन्मे राज के 2 भाई गोविंद महतानी और अजीत महतानी हैं। उन्हें बचपन से ही फिल्मों में आने का शौक था। कॉलेज के दिनों में राज किरण को 26 साल की उम्र में बी.आर. इशारा की फिल्म कागज की नाव (1975) मिल गई। इस फिल्म में उनकी हीरोइन सारिका (कमल हासन की पूर्व पत्नी और श्रुति हासन की मां) थीं। ये उनकी भी डेब्यू फिल्म थी।
उस जमाने की पॉपुलर मैगजीन संडे को दिए एक इंटरव्यू में राज किरण ने बताया था कि बी.आर. इशारा करीब एक हफ्ते तक उनके साइलेंट सीन शूट करते रहे। वो चाहते थे कि राज किरण कैमरा फ्रेंडली होने के बाद ही डायलॉग बोलें।
1975 में रिलीज हुई राज किरण की पहली फिल्म कागज की नाव में जब वो पहली बार स्क्रीन पर नजर आए, तो समुद्र किनारे उन्हें रेत पर बने सवालों के निशानों के बीच बैठा देखा गया। वहीं उनका पहला डायलॉग था, सवाल एक ही है, बस बड़ा हो रहा है, बहुत बड़ा।
किसे पता था उनकी पहली स्क्रीन अपीयरेंस में दिखाए गए सवालों के निशान और उनका पहला डायलॉग ताउम्र उनके साथ बंधा रहेगा। पहली फिल्म से ही राज किरण का चेहरा दर्शकों के जहन में बस गया।
पहली फिल्म कागज की नाव की बदौलत उन्हें अगली फिल्म मिली किस्सा कुर्सी का। 1977 में सोशल पॉलिटिकल सटायर पर बनी फिल्म काफी विवादों में रही। फिल्म में कांग्रेस नेताओं इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी का जमकर मजाक बनाया गया था, जिससे सत्ता में चल रही कांग्रेस पार्टी ने फिल्म पर बैन लगा दिया था। देश में इमरजेंसी लगने के बाद इस फिल्म की सारी प्रिंट और मास्टर प्रिंट को सेंसर बोर्ड के दफ्तर में जब्त कर लिया गया था।

कुछ समय बाद फिल्म की प्रिंट चोरी कर ली गई, जिसे गुड़गांव (अब गुरुग्राम) स्थित मारुति फैक्टरी ले जाकर जला दिया गया। फिल्म रील जलाए जाने पर जब फिल्ममेकर कोर्ट पहुंचे, तो जांच में फिल्म रील जलाने के लिए संजय गांधी और इन्फोर्मेशन एंड ब्रॉडकास्ट मिनिस्टर वी.सी. शुक्ला को दोषी पाया गया। 11 महीने तक चले केस के बाद 27 फरवरी 1979 को संजय गांधी और वी.सी. शुक्ला को 2 साल एक महीने की जेल की सजा सुनाई गई। हालांकि बाद में फैसला पलट दिया गया।
आगे राज किरण फिल्म शिक्षा में नजर आए। साल 1980 राज किरण के करियर के लिए सुनहरा दौर लेकर आया। इस साल उनकी एक-दो नहीं, बल्कि पूरी 8 फिल्में रिलीज हुईं। बंबई का महाराजा, मान अभिमान, मनोकामना, नजराना प्यार का, पतिता, साजन मेरे मैं साजन की और ये कैसा इंसाफ, ये सारी फिल्में 1980 में रिलीज हुईं और ज्यादातर हिट रहीं। इसी साल राज किरण, ऋषि कपूर, टीना मुनीम और सिमी ग्रेवाल के साथ फिल्म कर्ज में नजर आए। कर्ज में ऋषि कपूर, मोंटी के रोल में नजर आए थे। मोंटी, राज किरण का पुनर्जन्म था। कर्ज के रोल से राज किरण को देशभर में पहचान मिली। आज भी कई लोग राज किरण को फिल्म कर्ज के लिए जानते हैं।साल 1982 में रिलीज हुई फिल्म अर्थ (महेश भट्ट और परवीन बाबी के अफेयर पर बनी सेमी ऑटोबायोग्राफिकल) में राज किरण, स्मिता पाटिल, शबाना आजमी और कुलभूषण खरबंदा जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ नजर आए थे। इस फिल्म के गाने झुकी झुकी सी नजर…, तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो…आज भी सदाबहार हैं। ये फिल्म 2 करोड़ रुपए कमाई कर सुपरहिट साबित हुई।
वहीं प्रकाश झा की डायरेक्टोरियल डेब्यू फिल्म हिप हिप हुर्रे में फुटबॉल कोच की भूमिका निभाकर और दीप्ति नवल के साथ बेहतरीन केमिस्ट्री दिखाकर राज किरण ने फिर एक बार अपने हुनर का नमूना पेश किया। शुरुआत में ये फिल्म अनिल कपूर को दी जाने वाली थी, लेकिन एन मौके पर उन्होंने फिल्म ठुकरा दी थी, जिससे बाद में फिल्म में राज किरण को लिया गया।
राज किरण अपनी तरह के इकलौते एक्टर थे, जिन्होंने सुपरहिट फिल्मों में लीड रोल निभाने के साथ-साथ सपोर्टिंग रोल करना भी शुरू कर दिया। फिल्म स्टार (1982), मजदूर (1983) घर एक मंदिर (1983), घर हो तो ऐसा (1990) जैसी कई फिल्मों में उन्होंने सपोर्टिंग रोल निभाया।

साइड रोल में टाइपकास्ट हुए तो करना चाहते थे पढ़ाई

80 के दशक के मिड में राज किरण को लीड रोल मिलने लगभग बंद हो गए। उन्हें ज्यादातर फिल्मों में सिर्फ साइडरोल ही दिए जाने लगे। उस समय संडे मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में राज किरण ने कहा था, या तो मैं फिल्मों में कुछ बेहतरीन करूंगा या तो छोड़ दूंगा। इसी समय उन्होंने फिल्में छोड़कर अपनी पढ़ाई पूरी करने का भी फैसला किया था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
समय के साथ साइड रोल करते हुए राज किरण की पहचान मिटने लगी। जिन्हें पहले फिल्मों में हैंडसम और कोमल स्वभाव वाले हीरो के रोल मिलते थे, उनके पास 80 के दशक के बाद हीरो के भाई, दोस्त या विलेन के रोल ही बच गए। फिल्मों में मिल रही नाकामी से राज किरण लगातार चिंतित रहने लगे। उन्हें हीरो से साइड हीरो बनना खलने लगा था, जिससे वो मानसिक तनाव में रहने लगे थे।
90 के दशक के आखिर में अखबार में छपी एक खबर ने हर किसी को चौंका दिया। खबर थी कि राज किरण ने बैंगलोर के व्हाइटफील्ड के एक आश्रम में चोरी-छिपे घुसने की कोशिश की थी, जिसके चलते उन्हें बैंगलोर की सेंट्रल जेल में एक महीने तक बंद रखा गया था।
आखिरकार, एक महीने बाद जब उनके पिता को इस बात की खबर मिली तो उन्होंने जाकर राज को बेल दिलवाई। जेल से निकलने के बाद खबर मिली की कुछ महीनों पहले उनकी पत्नी रूपा ने उन्हें छोड़ दिया था। इस सदमे में वो बॉम्बे छोड़कर बैंगलोर के आश्रम में रहना चाहते थे। लेकिन जब उन्होंने गैरकानूनी तरीके से दीवार फांदकर आश्रम में घुसने की कोशिश की, तो वो पकड़े गए। उसी आश्रम के गार्ड्स ने उन्हें पुलिस के हवाले किया था।
साल 1997 में राज किरण ने सिनेब्लिट्ज मैग्जीन को दिए एक इंटरव्यू में मदद की गुहार लगाई। उस इंटरव्यू का टाइटल था, ‘मुझे जिंदा रहने के लिए मदद की जरूरत है।’
इंटरव्यू में उन्होंने आश्रम में घुसने की कोशिश करने और जेल जाने पर सफाई भी थी। उन्होंने कहा था, मैंने सिर्फ आश्रम में घुसने की कोशिश की थी, लेकिन लोगों ने इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। वो केस अब भी कोर्ट में है, तो मैं इस बारे में ज्यादा बात नहीं कर सकता। आप वो ट्रॉमा महसूस नहीं कर सकते, जो मैंने जेल में रहकर बर्दाश्त किया। कोई भी ये डर नहीं महसूस कर सकता कि जब आपसे कहा जाए कि आपको बेल नहीं मिलेगी। मैंने वहां 34 दिन बिताए हैं। मुझे नहीं पता था कि मैं कभी इससे छुटकारा पा सकूंगा या नहीं। ये बहुत डरावनी फीलिंग थी।
जब राज किरण को फिल्मों और टीवी शोज में काम मिलना पूरी तरह बंद हो गया, तो उन्हें गरीबी का सामना करना पड़ा। जब कोई रास्ता नहीं मिला तो राज किरण काम की तलाश में अमेरिका जाकर बस गए। कुछ साल उन्होंने वहीं गुजारे थे, लेकिन कोर्ट में चल रहे केस के चलते उन्हें वहां की नौकरी से निकाल दिया गया।
जब अमेरिका में गुजारा करना मुश्किल हुआ तो राज दोबारा भारत लौट आए। सिनेब्लिट्ज को एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वो अमेरिका में मामूली काम करते हुए बेहद खुश थे।
1997 को दिए इस इंटरव्यू के बाद से राज किरण पूरी तरह गुमनामी में रहने लगे। फिल्म इंडस्ट्री के किसी शख्स ने न तो उनकी तरफ मदद का हाथ बढ़ाया, न उनकी खबर ली। जब कई दिनों तक राज किरण की कोई खबर नहीं मिली तो उनके कुछ दोस्तों ने पूछताछ शुरू की। इन लोगों में उनके को-स्टार ऋषि कपूर और दीप्ति नवल शामिल थे। कई दिनों तक तलाशने के बाद कुछ लोगों ने ये भी मान लिया था कि राज किरण अब जिंदा नहीं हैं, लेकिन उन्हें तलाश करने वालों ने कभी हार नहीं मानी।
कुछ सालों बाद जब राज किरण पूरी तरह गुमनाम हो गए तो उनकी हिप हिप हुर्रे, प्रेम जाल और घर हो तो ऐसा फिल्मों की को-स्टार दीप्ति नवल ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए उनकी तलाश शुरू की। उन्होंने पोस्ट में लिखा था, अपने फिल्म वर्ल्ड के एक दोस्त की तलाश कर रही हूं, उसका नाम राज किरण है। हमारे पास उसकी कोई खबर नहीं है। आखिरी बार सुना था कि वो न्यूयॉर्क में कैब चला रहा है। किसी के पास भी उससे जुड़ी कोई खबर है तो प्लीज इत्तला करिए। इस पोस्ट के बावजूद राज किरण की किसी को खबर नहीं मिली।
साल 2011 में ऋषि कपूर न्यूयॉर्क गए हुए थे। दीप्ति नवल की पोस्ट से उन्हें लगा कि न्यूयॉर्क में वो जरूर मिलेंगे, लेकिन जब ऋषि ने न्यूयॉर्क पहुंचकर उनके भाई से संपर्क किया, तो उन्हें बताया गया कि राज किरण अटलांटा के पागलखाने में हैं। ऋषि कपूर को तसल्ली नहीं मिली, तो उन्हें राज किरण से बात करवाने को कहा, लेकिन उनके भाइयों ने नंबर देने और बात करवाने से साफ इनकार कर दिया।
जब गोविंद (राज किरण के बड़े भाई) ने मुझे बताया कि वो जिंदा है तो ये जानकर बहुत सुकून मिला। लेकिन उन्होंने बताया कि वो मानसिक बीमारी के चलते अटलांटा के असायलम में हैं। वो असायलम में ही काम करते हुए अपने इलाज का खर्च निकालते हैं। ये एक कामयाब एक्टर के बारे में सुनकर बुरा लगा, लेकिन ये सुनकर खुश हूं कि वो जिंदा हैं।
ऋषि के बयान से भड़की राज किरण की बेटी, तलाश पूरी होने के दावे को खारिज किया
ऋषि कपूर का बयान सामने आने के बाद राज किरण की बेटी ऋषिका ने एक पब्लिक स्टेटमेंट जारी कर उनके दावे को खारिज कर दिया। उन्होंने बताया कि राज किरण अटलांटा में नहीं हैं। वो कहां है और किस हाल में हैं, ये पता लगाने की कोशिश जारी है। उनका परिवार आज भी प्राइवेट डिटेक्टिव, न्यूयॉर्क पुलिस की मदद से राज किरण की तलाश कर रहा है।
साल 2011 में ही जब दीप्ति नवल और ऋषि कपूर ने राज किरण की तलाश शुरू की तो हर जगह उनकी चर्चा फिर गर्म हो गई। इस बीच एक दिन अचानक ऋषि कपूर के पास राज किरण के भाई का कॉल आया। उस कॉल में ऋषि कपूर को राज किरण और उनके पारिवारिक मामले से दूर रहने की हिदायत दी गई।
परिवार के इस रवैये और अपने रेपुटेशन की खातिर ऋषि कपूर और दीप्ति नवल ने न चाहते हुए भी राज किरण की तलाश बंद कर दी।
1997 से आज तक 27 साल बीत गए, लेकिन राज किरण कहां हैं, किस हाल में हैं या जिंदा हैं भी या नहीं, इस बात की किसी को खबर नहीं हैं। उनके इंतजार के सालों बाद उनकी पत्नी रूपा महतानी दूसरी शादी कर चुकी हैं। वहीं उनकी बेटी ऋषिका एक जूलरी डिजाइनर हैं, जिनकी साल 2016 में शादी हो चुकी ह
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