छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री कार्यालय और स्वास्थ्य विभाग के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। हालात ऐसे हैं कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की जानकारी में आए बिना मुख्यमंत्री सचिवालय से फैसले लिए जा रहे हैं। आज टीएस सिंहदेव ने स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े मुख्यमंत्री के एक फैसले पर अपनी असहमति जता दी। उन्होंने यहां तक कह दिया कि इस बारे में उनसे किसी ने चर्चा भी नहीं की है।
दरअसल 27 जून को जनसंपर्क विभाग ने बताया था, सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देने जा रही है। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में निजी अस्पताल खोलने पर अनुदान दिया जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उद्योग विभाग को 10 दिन में अनुदान का प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया है। सोमवार रात अपने निवास पर संवाददाताओं से बातचीत में ऐसे किसी फैसले से अपनी असहमति जता दी। उन्होंने कहा, “मैं इससे सहमत नहीं हूं। मुझसे किसी ने इसपर चर्चा भी नहीं की है। मैं शुरू से यूनिवर्सल हेल्थ केयर की बात करता रहा हूं। अंग्रेजी के शब्द हैं तो शायद लोगों तक पहुंच नहीं पाता।लेकिन सभी नागरिकों को सरकार के बजट से, पब्लिक मनी से नि:शुल्क उपचार हो मैं इसका पक्षधर हूं। हम यह कहते हैं सरकारी तंत्र की स्वास्थ्य व्यवस्था को और सुदृढ़ करने के लिए पैसों की कमी आती है। वहीं दूसरी ओर हम निजी क्षेत्र को अगर पैसा देने को तैयार हैं। अगर निजी क्षेत्र नि:शुल्क काम करेगा तो फिर ठीक है। कोई दिक्कत नहीं है। आप ग्रांट लीजिए और पब्लिक से कोई पैसा मत लीजिए वह बात तो समझ में आती है। लेकिन आप पब्लिक का पैसा किसी निजी संस्था को देकर फिर कहिए की पब्लिक से भी पैसा लो तो यह नीति बिल्कुल उचित नहीं है।’ सिंहदेव ने कहा, “मेरी जब भी विभाग में बात हुई तो यही हुई है कि हमें पब्लिक सेक्टर को मजबूत करना है। जब हमारे पास पैसे की कमी है, उस स्थिति में प्राइवेट सेक्टर को पैसे देना जिसमें वे पब्लिक से पैसे लेकर उपचार करें यह मेरे समझ में उचित नहीं है।’ सिंहदेव का यह रुख निजी क्षेत्र को अनुदान देने की योजना को प्रभावित कर पाता है या नहीं यह तो कुछ समय बाद पता चलेगा, लेकिन उनके इस बयान ने विपक्ष को बैठे-बिठाए एक बड़ा मुद्दा जरूर दे दिया है।