रायपुर:- आज तिल्दा साहित्य आस पास के गाँव में भी छत्तीसगढ़ का पारंपरिक पहली तैवहार मान्य जाता है उसी प्रकार उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली में लोहड़ी मांगने की परंपरा है, बच्चे गीत गाते हुए घर-घर जाकर लोहड़ी मांगते हैं। दान में रुपये, पैसे, अनाज मिलने के बाद हंसी-खुशी उस परिवार के लिए दुआ करते हैं। उसी तरह छत्तीसगढ़ की संस्कृति में भी पौष माह की पूर्णिमा तिथि पर दान मांगने की अनोखी परंपरा सदियों से निभाई जा रही है।आज छेरछेरा पर्व है। छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम और हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं। इसे दान करने का पर्व माना जाता है। इस दिन छत्तीसगढ़ में युवक-युवती और बच्चे, सभी छेरछेरा (अनाज) मांगने घर-घर जाते हैं।छत्तीसगढ़ में छेरछेरा पुन्नी का अलग ही महत्व है। वर्षों से मनाया जाने वाला ये पारंपरिक लोक पर्व साल के शुरुआत में मनाया जाता है। इस दिन रुपये पैसे नहीं बल्कि अन्न का दान करते हैं।इसलिए मनाते हैं छेरछेरा
धान का कटोरा कहलाने वाला भारत का एक मात्र प्रदेश छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान प्रदेश है। यहां पर ज्यादातर किसान वर्ग के लोग रहते हैं। कृषि ही उनके जीवकोपार्जन का मुख्य साधन होता है। यही वजह है कि कृषि आधारित जीवकोपार्जन और जीवन शैली ही अन्न दान करने का पर्व मनाने की प्रेरणा देती है। अपने धन की पवित्रता के लिए छेरछेरा तिहार मनाया जाता है। क्योंकि जनमानस में ये अवधारणा है कि दान करने से धन की शुद्धि होतीमाई कोठी के धान ला हेर हेरा…छेरछेरा पर बच्चे गली-मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछेरा (दान) मांगते हैं। दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा… माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक आप अन्न दान नहीं देंगे तब तक वे कहते रहेंगे- ‘अरन बरन कोदो करन, जब्भे देबे तब्भे टरन’। इसका मतलब ये होता है कि बच्चे आपसे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे।