सौरभ यादव / तिल्दा – नेवरा :- भारत देव भूमि है। यहां किसी भी मानव का जन्म अपना कल्याण कर लेने यानी जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुटकारा पाने के लिए होता है। लेकिन माया के वश में आकर हम सब अपना मूल कार्य को भूल कर संसारिक भोग-विलास में फंस जाते हैं। जिसके कारण परेशानी बढ़ जाती है। उक्त बातें ग्राम जंजगीरा में महिला मंडल द्वारा आयोजित हो रहे संगीतमय श्रीमद् भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान यज्ञ के दौरान कथावाचक पंडित परमानंद शास्त्री मढ़ी वालें ने कही। कथा के चौंथे दिन कथा प्रसंग में कथा व्यास ने व्यास पीठ से भक्त प्रहलाद चरित्र और भगवान नृसिंह की कथा विस्तार से बताया तो भक्त भावविभोर हो उठे। भक्त प्रहलाद चरित्र की प्रसंग सुनाते हुए भगवताचार्य ने कहा कि भक्त पर संकट आने पर भगवान भक्त की रक्षा करने के लिए दौड़े चले आते हैं। भक्त के प्रति भगवान का स्नेह अपार होता है और भक्त पर ईश्वर की कृपा सदैव बनी रहती है। उन्होंने कहा कि जब भक्त प्रहलाद पर पिता हिरण्यकश्यप द्वारा प्रताड़ित किया गया तो आखिर में भक्त की रक्षा के लिए भगवान ने खंभे से नृसिंह भगवान का अवतार लिया और धरती पर हिरण्यकश्यप के बढ़ते पाप, अत्याचार को मिटाने के लिए हिरण्यकश्यप का वध किया। प्रहलाद मां के गर्भ में ही भक्ति के संस्कार ग्रहण कर लिए थे। नारद जैसे परम भागवत का सान्निध्य मिलने पर दैत्यकुल में जन्म लेते हुए भी प्रहलाद बचपन से ही भक्त हो गए। प्रहलाद को भक्त बनता देख पिता हिरण्यकश्यप ने पुत्र को दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आश्रम में भेजा।हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को बड़ी-बड़ी यातनाएं दी। इसके बाद भी भक्त प्रहलाद के मन में श्रीनारायण की भक्ति बरकरार रहीं। इसके कारण भगवान ने नरसिंह रूप धारण कर भक्त प्रहलाद की रक्षा करते हुए उसका वध कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि भगवान की अगर भक्ती करनी है तो भक्त प्रहलाद की तरह करो जो असुरों के साथ रहकर भी भगवान को नहींं भूला और उसकी निष्पक्ष भक्ति भगवान को अवतार लेने पर विवश कर गई। प्रवचनकार ने आगे भगवान नृसिंह का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि पूर्व काल में दैत्य राज पुत्र महाबली हिरण्यकश्यप ने ब्रह्माजी के वर से गर्व युक्त होकर संपूर्ण त्रिलोकी को अपने वश में कर लिया। भक्त प्रहलाद एक दिन अपने गुरु के साथ पिता के पास गए। उस समय पिता मद्यपान कर रहे थे। तब अपने चरणों में झुके हुए अपने पुत्र प्रहलाद को गोद में उठाया। प्रहलाद ने अपने पिता से हरि का नाम लेने को कहा तो दैत्य राज ने उसे गोद से उठाकर दूर फेंक दिया। उसे मारने के अनेक प्रयास किए। एक दिन भक्त प्रहलाद अपने सहपाठियों के साथ हरि का नाम ले रहा था। उसकी आवाज दैत्यराज के कानों में पहुंची तब दैत्यराज ने आकर कहा कि तेरा हरि कहां है तो प्रहलाद ने कहा कि मेरा हरि तो कण-कण में विद्यमान है। दैत्यराज ने कहा कि इस पत्थर नुमा खंभे में हरि कहां हैं, तभी भगवान प्रहलाद की लाज रखने के लिए उस खंभे में से निकल कर भगवान ने नृसिंह अवतार लिया और दैत्यराज का वध कर दिया। वहीं कथा के बीच-बीच में प्रस्तुत एक से बढ़कर एक भजनों को सुन श्रद्धालु झूम उठे। तीसरें दिन शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग सुनाया गया। इस दौरान शिव-पार्वती विवाह की आकर्षक झांकी भी सजाई गई थी जिसे देख श्रद्वालु मंत्रमुग्ध हो गए। कथा के परायणकर्ता पंडित कृष्णा महाराज मढ़ी वालें ने बताया कि 12 अप्रैल से 20 अप्रैल तक आयोजित हो रहे भागवत कथा का रसपान करने गांव सहित आसपास गांव से भी बड़ी संख्या में रसिक श्रोतागण पहुंच रहे है। कथा का समय दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक है।