कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की कमान थामने को लेकर ऊहापोह का दौर चाहे अभी खत्म नहीं हुआ हो मगर यह साफ होता जा रहा कि राज्यों में पार्टी संगठन पर राहुल गांधी धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। केरल में पीढ़ीगत बदलाव करने के बाद तेलंगाना में भी पार्टी हाईकमान ने राहुल के भरोसेमंद लोकसभा सदस्य रेवंत रेड्डी को कई पुराने नेताओं के एतराज को दरकिनार कर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की बागडोर सौंपी है।
केरल और तेलंगाना से ठीक पहले महाराष्ट्र में नाना पटोले को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपे जाने से स्पष्ट है कि भले ही औपचारिक रूप से राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर दोबारा वापसी अभी नहीं हुई है, मगर अहम संगठनात्मक फैसले उनके मनमाफिक ही लिए जा रहे हैं।
पार्टी हाईकमान ने तेलंगाना की जमीनी राजनीति का आकलन करने और कई दौर के सर्वे के बाद पिछले साल ही रेवंत रेड्डी को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने का न केवल मन बना लिया था, बल्कि उनकी नियुक्ति की फाइल भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास पहुंच गई थी। तब सूबे के कांग्रेसी दिग्गजों ने एकजुट होकर रेवंत के विरोध में हाईकमान पर दबाव बनाया और नियुक्ति की घोषणा अंतिम क्षणों में टल गई।
बीते नवंबर-दिसंबर में हैदराबाद नगर निगम चुनाव में कांग्रेस का जिस तरह सफाया हुआ और भाजपा मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी उसके बाद से ही पार्टी नेतृत्व तेलंगाना में एक मजबूत चेहरे को कमान सौंपने के पक्ष में था। जमीनी सियासी पकड़ और लोकप्रियता इन दोनों कसौटियों पर रेवंत रेड्डी फिट बैठ रहे थे। खास बात यह भी थी कि संसदीय मामलों में अपनी सक्रियता के जरिये वे राहुल गांधी की भी पसंद बन गए थे। लेकिन सूबे के कांग्रेसी दिग्गज उन्हें बाहरी बता संगठन की कमान देने का विरोध कर रहे थे। रेवंत 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व तेदेपा को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे और कांग्रेस हाईकमान को सूबे के अगले विधानसभा चुनाव में रेवंत को आगे बढ़ाने में ही अपना भविष्य भी दिख रहा है।