”हम कांग्रेस को हिंदुस्तान की ग्रांड ओल्ड एंड यंग पार्टी बनाने जा रहे हैं।”
दिल्ली यूनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर संजीव तिवारी कहते हैं कि राहुल के कमान संभालते ही पार्टी के भीतर ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट जैसे युवा चेहरों को तवज्जो मिली है। इससे पहले सोनिया गांधी के काल में पार्टी के भीतर अहम पटेल लॉबी मजबूत थी। हालांकि, सेकेंड रन लीडरशिप में रहना और लीडरशिप में रहने में अंतर तो है ही।
संजीव कहते हैं-
यह बात तो साफ है कि राहुल गांधी विपक्ष के सर्वोपरी नेता नहीं बन पाए हैं। हां, राहुल ने पार्टी को जरूर सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ बढ़ाया है। वह जान रहे हैं कि तुष्टिकरण की राजनीति का दौर अब खत्म हो गया है। बहुसंख्यक की राजनीति में आना पड़ेगा।
संजीव कहते हैं कि यही वजह है कि राहुल गांधी अब वही बहुसंख्यक की राजनीति कर रहे हैं जो भाजपा करती आई है। इससे पहले कांग्रेस की पूरी राजनीति अल्पसंख्यक पर टिकी हुई थी। 2017 तक राहुल गांधी इसलिए नरेंद्र मोदी के प्रति इतने अटैकिंग नहीं थे क्योंकि उस वक्त मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी। अब जब राहुल को बड़ा नेता बनना है तो नरेंद्र मोदी के प्रति अटैकिंग तो होना ही पड़ेगा। इसलिए ही उन्होंने चोकीदार चोर है के जरिए नरेंद्र मोदी को घेर विपक्ष के सर्वोपरी नेता बनने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सके।
नचिकेता कहते हैं कि जहां भाजपा में वरिष्ठ नेताओं को साइड लाइन करने से विद्रोह जैसी परिस्थितियां पैदा हुई हैं, जो कि न ही सरकार के लिए अच्छा है और न ही पार्टी के लिए। राहुल ने इससे सीखा है कि अगर कांग्रेस को आगे बढ़ाना है तो पार्टी में युवाओं के साथ ही बुजुर्ग नेताओं को भी साथ लेकर चलना पड़ेगा। वह कहते हैं-
राहुल जानते हैं कि ओल्ड को किनारे करके यंग की राजनीति नहीं की जा सकती है।
नचिकेचा कहते हैं कि आपको पंजाब से लेकर दूसरे राज्यों में कांग्रेस में ही बुजुर्ग नेता मिलेंगे राहुल समझते हैं कि युवाओं को बढ़ावा देना है तो पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को साथ लेकर चलना पड़ेगा। वह कहते हैं-
यह सही है कि राहुल में अभी बहुत-सी कमियां हैं। लेकिन वह कमजोर नेता नहीं है। भाजपा ने उनकी छवि कमजोर नेता की बना दी थी जिसे उन्होंने आक्रमक छवि के जरिए काउंटर किया है।
नचिकेता कहते हैं कि राहुल को ऐसी छवि बनानी होगी कि उन्हें क्षेत्रिय पार्टियां का भी भरपूर साथ मिल सके। उन्हें इस वक्त भाजपा के अलावा क्षेत्रीय पार्टियों से भी चैलेंज आ रहा है। ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू और मायावती ये सभी मजे हुए हैं, उम्र में भी राहुल गांधी से बड़े हैं और राजनीति अनुभव भी ज्यादा है। ऐसे में इनके बीच विपक्ष का सर्वमान चेहरा बनकर उभरना राहुल के थोड़ा मुश्किल है…..।
राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व पर नचिकेता कहते हैं-
हिंदू वोट पाने के लिए कांग्रेस को कुछ तो करना ही होगा। राहुल की राजनीति हिंदुत्व की नहीं बल्कि व्यवहारिक है।
ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी सोनिया गांधी के अध्यक्ष रहते खुलकर काम नहीं कर पा रहे थे। यह जरूर है कि उस वक्त जवाबदेही उनकी नहीं थी लेकिन जब आपकी जवाबदेही बनती है तो जिम्मेदारी भी बढ़ती है। राहुल गांधी पर तथ्य और तर्क हैं तभी वह भाजपा के खिलाफ आक्रमक हो रहे हैं। नचिकेता का मानना है कि कांग्रेस कल्चर में कोई बदलाव नहीं आया है। 14 महीने बदलाव के लिए ज्यादा नहीं हैं। बता दें कि राहुल अध्यक्ष बनने के बाद अपने पहले भाषण में भारतीय जनता पार्टी के प्रति अटैकिंग रवैये में दिखे थे। उन्होंंने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा था कि वह गुस्सा करते हैं, हम प्यार करते हैं। वो तोड़ते हैं, हम जोड़ते हैं।
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