पीएम मोदी की सुरक्षा में चूक पर उठे सवाल, पहले भी दो प्रधानमंत्रियों और एक मुख्‍यमंत्री को गंवा चुका है देश

पंजाब के फिरोजपुर में रैली को संबोधित करने जा रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफि‍ले को रोके जाने की घटना को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुरक्षा में बड़ी चूक बताया है। जहां तक प्रधानमंत्री के दौरे का सवाल है तो ऐसे मामलों में सुरक्षा की बेहद कड़ी व्‍यवस्‍था होती है। ऐसे में जब देश पहले भी ऐसी सुरक्षा खामियों के चलते दो पूर्व प्रधानमंत्रियों (इंदिरा, राजीव गांधी) और एक पूर्व मुख्‍यमंत्री (बेअंत सिंह) को गंवा चुका है… बड़ा सवाल यही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा को पंजाब सरकार ने गंभीरता से क्‍यों नहीं लिया। जानें राज्‍यों में दौरों के दौरान कैसी होती है प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा और पूर्व में किन घटनाओं से सहम गया था देश…
प्रधानमंत्री के किसी भी कार्यक्रम में एसपीजी से लेकर राज्य पुलिस और स्थानीय खुफिया विभाग तक की बड़ी टीम की भूमिका होती है। संबंधित राज्य में एसपीजी की टीम जाती है जिसमें केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के लोग भी शामिल होते हैं। स्थानीय पुलिस के साथ इनकी पूरी बैठक होती है जिसे एएसएल का नाम दिया जाता है, यानी एडवांस सिक्योरिटी लाइजनिंग। एक आपात रणनीति भी तय होती है। यानी किसी स्थान पर हेलीकाप्टर से जाना है तो कैसे जाएंगे और किसी कारण सड़क से जाना पड़ा तो कैसे जाएंगे।
जहां तक प्रधानमंत्री के काफिले की सुरक्षा का सवाल है तो राज्‍यों में दौरे के दौरान उनकी सुरक्षा की मुख्‍य जिम्‍मेदारी राज्‍य सरकारों की होती है। ऐसे दौरों में पीएम के चारों ओर तीन स्‍तरों की सुरक्षा व्‍यवस्‍था होती है। सबसे पहले स्‍तर की सुरक्षा एसपीजी के हवाले होती है। इसमें प्रधानमंत्री के चारों ओर उनके निजी सुरक्षा गार्ड होते हैं। इसमें एसपीजी के कमांडो दस्‍ते शामिल होते हैं। दूसरे और तीसरे चरण में केंद्रीय एजेंसियों और राज्‍य सरकारों के तेज-तर्रार सुरक्षा कर्मी होते हैं।

यही नहीं, काफिले की रवानगी के लिए कम से कम दो या तीन वैकल्पिक रूट पहले से ही निर्धारित किए जाते हैं। इन रास्‍तों पर माकड्रिल करके काफ‍िले की सुरक्षा की जांच-परख कर ली जाती है। पीएम के काफिले से लगभग 10 मिनट पहले आरओपी यानी रोड ओपनिंग टीम जाती है। इसमें स्थानीय पुलिस के लोग होते हैं। उसके बाद काफिला गुजरता है। पूरे रूट की जानकारी केवल एसपीजी और स्थानीय पुलिस को होती है। रास्ते में पड़ने वाले नालों, जंगलों और फ्लाईओवर के आसपास विशेष निगरानी रखी जाती है।
प्रधानमंत्री के गुजरने वाले रास्‍तों पर राज्‍य सरकार के सुरक्षा कर्मी तैनात रहते हैं। काफिला किस रूट से होकर जाएगा इस बारे में केवल एसपीजी और स्‍थानीय पुलिस के उच्‍च स्‍तर के चुनिंदा अधिकारियों के अलावा किसी को कोई जानकारी साझा नहीं की जाती है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि प्रधानमंत्री मोदी के काफिले के रास्‍ते पर प्रदर्शनकारी कैसे पहुंच गए…
उल्‍लेखनीय है कि ऐसी ही सुरक्षा चूक में देश अपने दो पूर्व प्रधानमंत्रियों को गंवा चुका है। 31 अक्‍टूबर 1984 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्‍या नई दिल्ली में उनके आवास पर सुबह 9:29 बजे कर दी गई थी। पूर्व पीएम के सिख अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी थी। यही नहीं 21 मई 1991 को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबदुर में मानव बम धनु ने विस्फोट करके हत्या कर दी थी। इस बम धमाके में कुल 18 लोगों की मौत हुई थी।
नब्‍बे के दशक में पंजाब अलगाववाद पर काबू पाने की जद्दोजहद कर रहा था। इसके लिए लंबे समय तक राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। सन 1992 में बेअंत सिंह ने पंजाब के सीएम की कुर्सी संभाली थी। बेअंत सिंह ने अलगाववादियों से सख्‍ती से निपटने में सफलता पाई, लेकिन इसकी कीमत उन्हें जान देकर चुकानी पड़ी। 31 अगस्त 1995 का वो मनहूस दिन था। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंजाब-हरियाणा सचिवालय के बाहर अपनी कार में मौजूद थे। तभी एक खालिस्तानी आतंकी वहां मानव बम बनकर पहुंचा और अपने आप को उड़ा लिया। यह धमाका इतना तेज था कि इसकी आवाज दूर-दूर तक सुनाई दी। इस आतंकी हमले में बेअंत सिंह समेत 18 लोगों की मौत हो गई थी।