क्वाड ने चीन के लिया किया रोडमैप एयर , आक्रामक रवैये के खिलाफ सदस्‍य देशों ने दिए गंभीर संकेत, जानें इसके मायने

भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के प्रमुखों की वाशिंगटन में शुक्रवार दोपहर बाद हुई बैठक का इशारा साफ है कि इन देशों के पास हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक रवैये के खिलाफ एक व्यापक और ठोस एजेंडा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र को अपना साझा भविष्य बताते हुए इस समूचे क्षेत्र को कानून सम्मत बनाने और यहां शांति व समृद्धि लाने के जिस रास्ते पर चलने का वादा इन देशों ने किया है, वह चीन के मौजूदा रवैये से पूरी तरह भिन्न है।

चाहे देशों के हिसाब से ढांचागत विकास करने की बात हो या 5जी व दूसरी अत्याधुनिक तकनीक को सुरक्षित बनाने के लिए संयुक्त अभियान की बात हो, क्वाड का संकेत साफ है कि चीन के लिए राह बहुत ही मुश्किल है। सबसे अहम संकेत यह है कि क्वाड एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण से काम करेगा और भविष्य में इसके फलक का विस्तार हिंद-प्रशांत क्षेत्र से बाहर भी होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा और आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्काट मारिसन के नेतृत्व में पहली क्वाड शिखर बैठक हुई। फरवरी, 2021 में इन नेताओं की पहली वर्चुअल बैठक हुई थी। प्रधानमंत्री मोदी के साथ भारतीय दल में विदेश मंत्री एस. जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल, विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला, अमेरिका में भारत के राजदूत तरणजीत ¨सह सिद्धू प्रमुख तौर पर थे

हर राष्ट्र प्रमुख के साथ उनके विदेश मंत्री और एनएसए के अलावा दूसरे विभागों के वरिष्ठतम अधिकारी उपस्थित थे। बैठक के बाद एक संयुक्त बयान और एक तथ्य प्रपत्र जारी किया गया है। यह बयान व प्रपत्र यह रोडमैप बताता है कि उक्त चारों देशों के बीच स्वास्थ्य मामलों से लेकर आर्थिक, विज्ञान, अत्याधुनिक तकनीक, ढांचागत विकास में कई स्तरों पर गहरी साझेदारी बनने जा रही है। इस साझेदारी से भारतीय उद्योग जगत और पेशेवरों के लिए भी बड़े अवसर बनने की संभावना है।

कई जानकार मानते हैं कि आर्थिक, सैन्य और अत्याधुनिक तकनीक के क्षेत्र में इन देशों के बीच जो सहयोग स्थापित होगा उससे भारत को सबसे ज्यादा फायदा हो सकता है। इसी तरह, चीन पर कई तरह से शिकंजा कसने की जो रणनीति सामने आती दिख रही है उससे भी भारत को फायदा होगा। भारत एशिया के उन देशों में है जो चीन के आक्रामक रवैये से सबसे ज्यादा परेशान है।
इसी तरह क्वाड देशों का संयुक्त बयान यह भी बताता है कि अफगानिस्तान को लेकर जो चिंताएं प्रधानमंत्री मोदी ने अपने अमेरिका प्रवास के दौरान कई मंचों पर साझा की हैं, उसे तरजीह दी गई है। इसमें तालिबान का नाम नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल न तो आतंकी गतिविधियों के लिए होना चाहिए और न ही किसी दूसरे देश पर आतंकी हमलों के लिए।
चारों देशों ने कहा है कि वे हिंद प्रशांत क्षेत्र को मुक्त व सभी के लिए समान अवसर वाला बनाने के लिए दोगुनी मेहनत करेंगे। यहां ऐसी व्यवस्था की जाएगी जहां कोई देश किसी दूसरे पर दबाव नहीं बना सके, जहां अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन हो, यहां सभी देशों को उड़ान व समुद्री जहाजों की आवाजाही की आजादी हो व सभी देशों की भौगोलिक संप्रभुता की रक्षा हो।
इसमें संकेत दिया गया है कि चारों देश दूसरे साझीदारों के साथ काम करेंगे। हिंद प्रशांत क्षेत्र के विकास में आसियान देशों के हितों का सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाएगा और आसियान के साथ ही यूरोपीय संघ के साथ भी सहयोग किया जाएगा। मार्च, 2022 तक इस क्षेत्र के मझोले व छोटे देशों को 120 करोड़ वैक्सीन देने का काम शुरू कर दिया गया है।
इसमें भारत की अहम हिस्सेदारी होगी क्योंकि भारतीय कंपनी 100 करोड़ वैक्सीन की आपूर्ति करेगी। क्वाड देश सुनिश्चित करेंगे कि दूसरे क्षेत्र के देशों को भी वैक्सीन उपलब्ध हो। वैक्सीन निर्माण के लिए कच्चे माल की आपूर्ति भी निर्बाध की जाएगी। जापान 3.3 अरब डालर और आस्ट्रेलिया 21.20 करोड़ डालर की मदद देगा।
एक और अहम एजेंडा चीन पर तकनीकी निर्भरता कम करने को लेकर है। हालांकि सीधे तौर पर चीन का नाम नहीं लिया गया है। इसमें चारों देश भविष्य की अत्याधुनिक व बेहद जरूरी माने जाने वाली तकनीक के विकास में साझा काम करेंगे। तकनीकी विकास में इस बात का ख्याल रखा जाएगा कि मानवाधिकारों का आदर हो। इस संदर्भ में पारदर्शी, सुरक्षित 5जी नेटवर्क विकसित किए जाएंगे और 5जी के बाद की तकनीक के संदर्भ में भी काम शुरू कर दिया जाएगा।
चारों देशों की सरकारें और इनकी निजी तकनीकी कंपनियां मिलकर इसका खाका तैयार कर रही हैं। हिंद प्रशांत क्षेत्र में ढांचागत विकास का एक व्यापक रोडमैप बनाया जा रहा है जिसमें इस बात ख्याल रखा जाएगा कि किसी देश की भौगोलिक संप्रभुता का उल्लंघन न हो। जिस देश में कर्ज के आधार पर ढांचागत विकास हो रहा है वहां सारे समझौते पारदर्शी होंगे। इस बात का ख्याल रखा जाएगा कि दूसरे देशों को कर्ज के बोझ में नहीं डाला जाए।