नई दिल्ली: देश में पांच समुदायों- मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित करने संबंधी केंद्र की 26 साल पुरानी अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने यह जनहित याचिका दायर की है. इस याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून 1992 की धारा 2 (सी) को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है. इसी कानून के तहत 23 अक्टूबर, 1993 को अधिसूचना जारी की गई थी.
याचिका में राष्ट्रीय औसत की बजाय राज्य में किसी समुदाय की आबादी के आधार पर उसे ‘अल्पसंख्यक’ परिभाषित करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया है.
याचिका में दलील दी गई है कि इस अधिसूचना से स्वास्थ, शिक्षा, आवास और आजीविका के मौलिक अधिकारों का हनन होता है. उपाध्याय ने याचिका में यह भी कहा है कि यह संविधान की प्रस्तावना में शामिल समता, न्याय और पंथनिरपेक्षता के लक्ष्य के भी खिलाफ है.
उपाध्याय ने कहा है कि गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को इस बारे में दिए गये प्रतिवेदनों का कोई जवाब नहीं मिलने की वजह से ही वह यह जनहित याचिका दायर कर रहे हैं.
याचिकाकर्ता ने यह नई याचिका दायर की है क्योंकि न्यायालय ने 11 फरवरी को उन्हें समाधान के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग जाने के लिए कहा था.
साथ ही न्यायालय ने यह निर्देश दिया था कि राष्ट्रीय औसत की बजाय राज्य में किसी समुदाय की आबादी के आधार पर उसे ‘अल्पसंख्यक’ परिभाषित करने के लिए दिशानिर्देश प्रतिपादित करने के बारे में उनके प्रतिवेदन पर तीन महीने के भीतर निर्णय लिया जाए.
भाजपा नेता ने याचिका में कहा है कि राष्ट्रीय आंकड़ो के अनुसार हिंदू बहुसंख्यक समुदाय है लेकिन पूर्वोत्तर के कई राज्यों और जम्मू कश्मीर में वे अल्पसंख्यक हैं.
याचिका में कहा गया है कि इन राज्यों में हिंदू समुदाय उन लाभों से वंचित है जो यहां अल्पसंख्यक समुदायों को उपल्ब्ध हैं.
याचिका में कहा गया है कि 2011 की जनगणना के अनुसार आठ राज्यों- लक्षद्वीप, मिजोरम, नगालैंड, मेघालय, जम्मू कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब- में हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन उनके अल्पसंख्यक अधिकारों को उन राज्यों की बहुसंख्यक आबादी गैरकानूनी और मनमाने तरीके से हड़प रही है क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून के तहत हिंदूओं को अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया है.