जापान ने 24 अगस्त को अपने फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट से रेडियोएक्टिव पानी छोड़ने की शुरुआत की थी। इसके बाद से चीन और जापान के लोगों में तनाव है। अब चीन में मौजूद जापान के मिशन्स और स्कूलों पर हमला हुआ है। जापान टाइम्स के मुताबिक, उनकी बिल्डिंग पर पत्थर फेंके गए हैं। इसके बाद जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने नाराजगी जताई है।
किशिदा ने कहा- चीन से लगातार उत्पीड़न की खबरें आ रही हैं। वहां हमारे दूतावास और स्कूलों पर पत्थर फेंके गए हैं। मैं ऐसे हमलों की निंदा करता हूं। PM बोले- हमने मामले में चीनी ऐंबेसडर को समन भेजा था। उनसे कहा गया है कि वो चीन के नागरिकों को गैर-जिम्मेदाराना रवैया न अपनाने और शांति बनाए रखने के लिए कहें। चीन में जापानी बिल्डिंग्स पर हमलों के बाद सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
इससे पहले टोक्यो ने चीन में रह रहे अपने नागरिकों को सतर्क रहने और सार्वजनिक तौर पर जापानी भाषा का इस्तेमाल न करने की सलाह दी थी। जापान के उप विदेश मंत्री मसटाका ओकानो ने चीनी ऐम्बेसडर वू जियांघाओ से कहा- चीन को गलत जानकारी के जरिए अपने नागरिकों की चिंता बढ़ाने की बजाय उन्हें पूरे मामले के बारे में सही तरह से जानकारी देनी चाहिए, जिससे उनकी परेशानी खत्म हो सके।
ओकानो ने कहा- फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट से पानी छोड़े जाने के बाद से जापानी लोगों ने लगातार धमकी भरे फोन कॉल रिसीव किए हैं। हालात सुधरने की बजाय खराब हो रहे हैं। इससे पहले चीन ने 24 अगस्त को रेडियोएक्टिव पानी छोड़ने की शुरुआत होने पर जापान से सभी सीफूड के इम्पोर्ट पर बैन लगा दिया था।
12 साल पहले 2011 में आए भूकंप और सुनामी की वजह से फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट में भयानक विस्फोट हुआ था। इसके बाद से ही वहां 133 करोड़ लीटर रेडियोएक्टिव पानी जमा है। अब जापान इससे निजात पाने के लिए पानी को बहा रहा है।
वहां जमा पानी करीब 500 ओलिंपिक साइज स्विमिंग पूल के जितना है। जैसे ही जापान ने इस पानी को समुद्र में मिलाने की बात कही, चीन और दक्षिण कोरिया के लोग डरे हुए हैं। प्लांट से पूरा पानी छोड़े जाने में करीब 30 साल का समय लगेगा। प्लांट में मौजूद 133 करोड़ लीटर पानी को करीब 1 हजार ब्लू टैंकरों में स्टोर किया गया है। इस पानी को वहां से हटाए जाना इसलिए भी जरूरी है ताकि न्यूक्लियर प्लांट को नष्ट किया जा सके।दरअसल, मार्च 2011 में आई सुनामी की वजह से फुकुशिमा के न्यूक्लियर प्लांट का कूलिंग और इलेक्ट्रिसिटी सिस्टम ठप हो गया था। गर्मी की वजह से वहां मौजूद तीनों रिएक्टर्स के कोर पिघल गए थे, जिसके चलते काफी ज्यादा मात्रा में रेडिएशन फैला था। न्यूक्लियर प्लांट से पानी छोड़े जाने के प्लान की घोषणा 2021 में की गई थी। तब कहा गया था कि ये काम अगले 2 सालों में शुरू हो जाएगा। जापान की रेगुलेटरी बॉडी ने 30 जून को ही अपना इंस्पेक्शन पूरा कर लिया था। UN की जांच के बाद प्लांट की देखभाल कर रही कंपनी TEPCO को पानी छोड़ने का परमिट मिल गया था।
जापान के विदेश मंत्रालय के मुताबिक पानी को महासागर में छोड़ने से पहले साफ कर दिया गया है। हालांकि, कई रिपोर्ट्स के मुताबिक इसमें अभी भी ट्रीटियम के कण हैं। ट्राइटियम एक रेडियोएक्टिव मैटीरियल है, जिसे पानी से अलग करना काफी मुश्किल होता है।
ऐसे तो इससे कॉन्टैक्ट में आने पर ज्यादा नुकसान नहीं होता है, लेकिन अगर ये किसी के शरीर में काफी बड़ी मात्रा में चला जाए तो इससे कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं। जापान में न्यूक्लियर प्लांट का पानी और वेस्ट मैटिरियल काफी सालों से परेशानी बना हुआ है।
पानी को पैसिफिक महासागर में छोड़े जाने का साउथ कोरिया, चीन और ऑस्ट्रेलिया विरोध जता चुके हैं। वहीं जापान लगातार इस बात का आश्वासन देता रहा है कि वो इंटरनेशनल मानकों के आधार पर ट्रीटियम की मात्रा को कम करने के बाद ही पानी डिस्चार्ज कर रहा है।