यूरोपीय संघ के शीर्ष नेताओं के साथ हो रही बुधवार को शिखर बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी की एक अहम कोशिश चीन को लेकर इस संघ की सोच की थाह लेने की होगी। दोनो पक्षों के एजेंडे में पिछले सात वर्षो से लंबित कारोबारी द्विपक्षीय मुक्त व्यापार व निवेश समझौते पर नए सिरे से चर्चा शुरू करना निश्चित तौर पर ऊपर होगा लेकिन अंतरराष्ट्रीय फलक पर चीन का मौजूदा व्यवहार एक अहम मुद्दा होगा। भारतीय विदेश मंत्रालय और यूरोपीय संघ के सूत्र भी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं।
भारत की पूरी कोशिश होगी कि पूर्वी लद्दाख सीमा में चीनी सैनिकों के अतिक्रमण पर जिस तरह से अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों ने भारतीय पक्ष का समर्थन किया है, वैसे ही ईयू की तरफ से हो। शिखर बैठक में यूरोपीय संघ की अगुवाई यूरोपीय परिषद के प्रेसिडेंट चार्ल्स मिशेल और यूरोपीय आयोग की प्रेसिडेंट उर्सुला लीयर करेंगी।
यह भी उल्लेखनीय है कि तकरीबन तीन हफ्ते पहले ईयू और चीन के बीच इसी तरह की वर्चुअल शिखर बैठक हुई थी, जिसे विशेषज्ञों ने असफल करार दिया था। उसके बाद हांगकांग को लेकर ईयू और चीन के बीच भी तल्खी बढ़ी है। दोनों के बीच कारोबार समझौते को लेकर भी सहमति बनने में दिक्कतें आने की खबरें आ रही हैं। भारत और ईयू के बीच की बैठक में भी द्विपक्षीय मुक्त कारोबार व निवेश समझौते को नए सिरे से शुरू करने पर बात होनी है। वर्ष 2013 में भारत ने इसे स्थगित कर दिया था।
सितंबर, 2019 से इस पर बात शुरू करने की सहमति बनी थी लेकिन फिर यह हुआ कि मोदी की मई, 2020 की ब्रूसेल्स यात्रा में इसकी घोषणा की जाएगी। कोविड-19 से यह यात्रा नहीं हो सकी। अब वर्चुअल बैठक होगी, जिसमें इसकी घोषणा होने के आसार हैं। सूत्रों का कहना है कि बैठक के बाद भारत व ईयू एक संयुक्त घोषणा पत्र जारी करेंगे जिसमें वर्ष 2025 तक के अपने द्विपक्षीय संबंधों का लक्ष्य रखेंगे।
बताते चलें कि जून, 2020 की चीन व ईयू शिखर बैठक के बाद कोई संयुक्त घोषणा पत्र भी जारी नहीं किया गया था। भारत के लिए ईयू सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर देश है। दोनों के बीच वर्ष 2019 में 80 अरब यूरो का कारोबार हुआ था। भारतीय कंपनियों ने अभी तक वहां 50 अरब यूरो का निवेश किया हुआ है। ईयू की तरफ से भारत के कई ट्रेड नियमों, खास तौर पर घरेलू उद्योगों को ज्यादा प्रश्रय देने के नियमों से परेशानी है। अब जबकि केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पर जोर देना शुरू कर दिया है तो यह भी ईयू को नागवार गुजर सकता है।
लेकिन कई जानकार यह मानते हैं कि चीन जिस तरह से तेजी से ईयू के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने की तरफ बढ़ रहा है तो भारत को पीछे नहीं छूटना चाहिए। भारत सरकार का मानना है कि ईयू में सत्ता संभाल चुके नए प्रशासन के साथ लंबी अवधि के रणनीतिक हितों पर चर्चा शुरू करने का यह सही समय है। ईयू के जर्मनी, फ्रांस जैसे देश पहले से ही भारत के बेहद मजबूत रणनीतिक साझीदार हैं।