प्रधानमंत्री मोदी ने ‘संस्कृति संसद-2021’ को समर्पित एक पत्र में कहा कि स्वर्गीय नरेन्द्र मोहन जी की पुण्य स्मृति में वैचारिक समृद्धि को समर्पित विभिन्न कार्यक्रमों का यह आयोजन सराहनीय है। भारत की गौरवपूर्ण संस्कृति एवं संस्कार सदियों से मानवता को समृद्ध कर रहे हैं। भारत की पावन भूमि विभिन्न विषयों से संबंधित ज्ञान, विज्ञान, कला, अध्यात्म एवं विभिन्न संस्कृतियों की जननी है। हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का सार लिए ‘यत् कर्म कुरुते तदभिसम्पद्यते’ वाक्य हमें लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर कर्म करने की प्रेरणा देता है।
प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारतीय चिंतन परंपरा और वैभवशाली इतिहास से प्रेरणा लेते हुए भविष्योन्मुख दृष्टि के साथ किए जा रहे मौजूदा प्रयास हमारी प्रगति के आधार हैं। आजादी के अमृत काल में आत्मनिर्भर एवं भव्य भारत के विराट संकल्पों की सिद्धि की तरफ देश निरंतर बढ़ रहा है। यह अवसर है कि अमृत काल में हम सभी ‘राष्ट्र प्रथम, सदैव प्रथम’ के विचार को आत्मसात करते हुए देश को उन्नति की राह पर ले जाने के लिए हर संभव प्रयास करें।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में आजादी के अमृत महोत्सव पर आधारित कार्यक्रमों का आयोजन काफी प्रशंसनीय है। मुझे विश्वास है कि स्वतंत्रता आंदोलन में काशी की भूमिका पर राष्ट्रीय चित्रकारों की कार्यशाला एवं संस्कृत कवियों के राष्ट्रीय सम्मेलन समेत विभिन्न कार्यक्रमों में होने वाली विचारपूर्ण एवं फलदायी चर्चा देश और समाज के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। ‘संस्कृति संसद-2021’ में हिस्सा लेने वाले सभी विद्वानों, विशेषज्ञों, प्रतिभागियों और आयोजकों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
उल्लेखनीय है कि अखिल भारतीय संत समिति व श्रीकाशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में तीन दिवसीय ‘संस्कृति संसद-2021’ का आयोजन शुक्रवार को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में शुरू हुआ था। इसमें देश-दुनिया के विद्वान शामिल हुए। संस्कृति संसद का शुभारंभ जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी, विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र समेत देश-दुनिया के संत-महंतों ने किया। पहले दिन तीन सत्रों में सनातन हिंदू धर्म के अनुत्तरित प्रश्न, भारत की प्राचीनतम अखंडित संस्कृति की वैश्विक छाप पर मंथन हुआ।