दुष्कर्म जैसी घटनाओं पर राष्ट्रपति मुर्मू ने की सख्त टिप्पणी, कह दी ये बात!

भारत मंडपम में आयोजित दो दिवसीय जिला न्यायापालिका राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट का नया ध्वज और प्रतीक चिन्ह जारी किया. इस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कि रेप जैसे जघन्य अपराधों में अदालती फैसलों में देरी से आम आदमी को लगता है कि न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता का अभाव है. साथ ही, उन्होंने अदालतों में स्थगन की संस्कृति में बदलाव का आह्वान किया.

राष्ट्रपति ने कहा कि लंबित मामले न्यायपालिका के समक्ष एक बड़ी चुनौती हैं.उन्होंने कहा, ‘‘जब रेप जैसे जघन्य अपराध में अदालती फैसले एक पीढ़ी बीत जाने के बाद आते हैं, तो आम आदमी को लगता है कि न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता का अभाव है. लंबित मामलों के निपटारे के लिए विशेष लोक अदालत सप्ताह जैसे कार्यक्रम अधिक बार आयोजित किए जाने चाहिए. सभी हितधारकों को इस समस्या को प्राथमिकता देकर इसका समाधान ढूंढना होगा.’’

राष्ट्रपति ने अफसोस जताते हुए कहा, ‘‘कुछ मामलों में, साधन संपन्न लोग अपराध करने के बाद भी बेखौफ और खुलेआम घूमते रहते हैं, जो लोग उनके अपराधों से पीड़ित होते हैं, वे डरे-सहमे रहते हैं, मानो उन्हीं बेचारों ने कोई अपराध कर दिया हो. गांवों के गरीब लोग अदालत जाने से डरते हैं. वे अदालत की न्याय प्रक्रिया में बहुत मजबूरी में ही भागीदार बनते हैं. अक्सर वे अन्याय को चुपचाप सहन कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि न्याय के लिए लड़ना उनके जीवन को और अधिक दयनीय बना सकता है.’’ उन्होंने कहा कि गांव से दूर एक बार भी अदालत जाना ऐसे लोगों के लिए मानसिक और आर्थिक रूप से बहुत बड़ा दबाव बन जाता है.

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में कई लोग कल्पना भी नहीं कर सकते कि स्थगन की संस्कृति के कारण गरीब लोगों को कितना दर्द होता है. इस स्थिति को बदलने के लिए हर संभव उपाय किए जाने चाहिए. बहुत से लोग व्हाइट कोट हाइपरटेंशन के बारे में जानते हैं, जिसके कारण अस्पताल के माहौल में लोगों का रक्तचाप बढ़ जाता है. इसी तरह अदालती माहौल में एक आम व्यक्ति का तनाव बढ़ जाता है, जिसे ब्लैक कोट सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है.” उन्होंने कहा कि इस घबराहट के कारण आम लोग अक्सर अपने पक्ष में वे बातें भी नहीं कह पाते जो वे पहले से जानते हैं और कहना चाहते हैं.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा, “देश के हर जज और न्यायिक अधिकारी की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे धर्म, सत्य और न्याय का सम्मान करें. जिला स्तर पर यह नैतिक जिम्मेदारी न्यायपालिका का प्रकाश स्तंभ है. जिला स्तर की अदालतें करोड़ों नागरिकों के मन में न्यायपालिका की छवि निर्धारित करती हैं. इसलिए, जिला अदालतों के माध्यम से लोगों को संवेदनशीलता और तत्परता के साथ और कम लागत पर न्याय मुहैया करना हमारी न्यायपालिका की सफलता का आधार है. न्यायपालिका के समक्ष कई चुनौतियां हैं जिनके समाधान के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है.

राष्ट्रपति ने कहा, “न्याय के प्रति आस्था और श्रद्धा की भावना देश की परंपरा का हिस्सा रही है, जिसमें जजों को भगवान का दर्जा भी दिया जाता है. पिछले कुछ वर्षों में जिला स्तर पर न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे, सुविधाओं, प्रशिक्षण और मानव संसाधनों की उपलब्धता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, लेकिन इन सभी क्षेत्रों में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.’’

राष्ट्रपति मुर्मू ने जेलों में बंद महिलाओं के बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा की देखभाल के लिए भी प्रयास करने का सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि किशोर अपराधियों की सोच और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करना और उन्हें उपयोगी जीवन कौशल और मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए.