राष्ट्रपति जोको बिडोडो की सरकार रोहिंग्याओं के खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले रही है

इंडोनेशिया के बांदा एचे शहर में बुधवार रात रोहिंग्या रिफ्यूजियों के शेल्टर होम पर सैकड़ों लोगों हमला बोल दिया। भीड़ में ज्यादातर स्टूडेंट्स थे। लोकल मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पुलिस ने बमुश्किल रोहिंग्या शरणार्थियों को बचाया।
स्टूडेंट्स का आरोप है कि राष्ट्रपति जोको बिडोडो की सरकार रोहिंग्याओं के खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले रही है और इसकी वजह से इंडोनेशिया के लोगों के सामने भूख से मरने का खतरा पैदा हो रहा है।
भीड़ ने सरकार से कहा कि रोहिंग्याओं को फौरन उनके देश म्यांमार भेजा जाए। ये लोग हाथ में बैनर लिए थे। एक बैनर पर लिखा था- जिन लोगों को अपने देश में जगह नहीं मिल रही है, उन्हें हम क्यों रखें। भीड़ को खुद की तरफ बढ़ते देख रोहिंग्या शरणार्थी भागने लगे। कई लोगों के तो बच्चे तक पीछे छूट गए। बाद में पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए भीड़ को खदेड़ दिया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक- ज्यादातर रोहिंग्याओं को अलग-अलग जगह शिफ्ट किया जा रहा है। हाल के दिनों में इंडोनेशिया में इस तरह की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। राष्ट्रपति बिडोडो का कहना है कि साल के इस वक्त समंदर शांत रहता है, इसलिए रोहिंग्या हमारे देश में आते हैं। सबसे बड़ा खतरा ह्यूमन ट्रैफिकिंग का है। हमने इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन्स से मदद मांगी है।
UN की एक एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक- नवंबर से अप्रैल के बीच समंदर में ज्यादा हलचल नहीं होती। इसका फायदा उठाकर रोहिंग्या दूसरे देशों की तरफ रुख करते हैं। इनके पास सिर्फ लकड़ी की बोट्स होती हैं। कई बार हादसे होते हैं और ये लोग मारे जाते हैं।
इंडोनेशिया के बांदा एचे राज्य के एक समुद्री किनारे पर पिछले महीने 250 रोहिंग्या लकड़ी की नाव से पहुंचे। स्थानीय लोगों ने उनके साथ बदसलूकी की। दो बार इन लोगों ने वहां रुकने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे।
इंडोनेशियाई लोगों ने इन्हें उसी लकड़ी की नाव के जरिए गहरे समंदर के सफर पर भेज दिया। कई दिनों बाद इन लोगों की लोकेशन मिल सकी थी।
उत्तरी एचे के लोगों का कहना है कि रोहिंग्या रिफ्यूजियों ने तीन हफ्ते पहले बांग्लादेश से सफर शुरू किया था और इसके बाद यहां पहुंचे थे। इस बोट में कई महिलाएं और बच्चे थे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक- जैसे ही रोहिंग्या मुस्लिमों से भरी बोट किनारे पहुंची तो स्थानीय लोग जुट गए। इन्होंने रिफ्यूजियों से कहा कि वो फौरन जहां से आए हैं, वहीं लौट जाएं। इसके बाद कुछ झड़प भी हुई।
कुछ रोहिंग्या इतने थके थे कि वो वापसी के लिए बोट में तो बैठ गए, लेकिन कुछ दूरी पर एक और किनारे पर जाकर आराम करने के लिए लेट गए। स्थानीय लोग यहां भी पहुंच गए और उन्हें जबरदस्ती लकड़ी की उसी नाव में बिठा दिया। इसके बाद इस नौका को समंदर में भेज दिया गया।
हर साल म्यांमार से भगाए गए रोहिंग्या शरणार्थी इसी तरह अलग-अलग देशों में पनाह लेने की कोशिश करते हैं। इनमें से कई की सफर के दौरान मौत की खबरें इंटरनेशनल मीडिया में आती रही हैं।
बांग्लादेश में रोहिंग्या मुस्लिमों की बहुत बड़ी आबादी है। ये सभी म्यांमार से ही यहां पहुंचे हैं। अब इन्हें वहां से भी निकाला जा रहा है। इसके बाद इन लोगों की पहली कोशिश मलेशिया या इंडोनेशिया पहुंचने की कोशिश होती है। इसकी वजह यह है कि ये दोनों ही मुस्लिम देश हैं। इसके बावजूद रोहिंग्याओं को किसी तरह की मदद देने के लिए तैयार नहीं हैं।