तुर्किये में आज राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव के लिए वोटिंग होगी। 20 साल से सत्ता पर काबिज राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के लिए ये इलेक्शन्स बेहद अहम हैं। दरअसल, 6 फरवरी को आए भूकंप में तुर्किये के 50 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। राष्ट्रपति एर्दोगन और उनकी पार्टी की इस बात के लिए काफी आलोचना हुई थी कि उन्होंने भूकंप के बाद मदद पहुंचाने में सुस्ती दिखाई। इसके साथ ही उनकी सरकार सालों तक कंस्ट्रक्शन की सही व्यवस्था को लागू करने में भी विफल रही।
एर्दोगन हमेशा से कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देते रहे हैं। इसके बावजूद भूकंप के बाद भारत ने तुर्किये को काफी मदद पहुंचाई थी। एर्दोगन ने कई बार कहा है कि कश्मीर समस्या का समाधान UN के प्रस्तावों के तहत होना चाहिए। हालांकि पिछले साल एर्दोगन ने UN में निष्पक्ष रवैया अपनाया था। उन्होंने कहा था- 75 साल पहले भारत और पाकिस्तान आजाद हुए, लेकिन दोनों मुल्कों के बीच शांति और एकता स्थापित नहीं हो पाई। हम उम्मीद करते हैं कि जल्दी ही कश्मीर में उचित और स्थायी शांति स्थापित होगी।
तुर्किये में तीसरी बार राष्ट्रपति सीधे वोटिंग के जरिए चुने जाएंगे। ऐसे में जानिए तुर्किये चुनाव और इसमें लड़ रहे 2 प्रमुख उम्मीदवारों से जुड़ी अहम बातें…
रेसेप तैयप एर्दोगन जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (AKP) के नेता हैं। उनकी उम्र 69 साल है। वो दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थक हैं। उनकी पार्टी की राजनीति इस्लाम की तरफ झुकी है, लेकिन उन्होंने राष्ट्रवादी विचारधारा वाली नेशनलिस्ट मूवमेंट पार्टी (MHP) के साथ गठबंधन किया है।
तुर्किये की सत्ता 2003 से एर्दोगन के पास है। वो 2014 तक प्रधानमंत्री रहे। फिर वो तुर्किये के पहले ऐसे राष्ट्रपति बने जिन्हें वोटिंग के जरिए चुना गया। इसके बाद उन्होंने एक रेफरेंडम में भी जीत हासिल की जिसके तहत देश की पूरी पावर राष्ट्रपति के हाथों में आ गई। एर्दोगन तुर्किये के पहले ऐसे नेता हैं जो 20 साल से सत्ता पर काबिज हैं।
एर्दोगन ने 1976 में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। देश के पूर्व प्रधानमंत्री नेमेटिन एरबाकन को उनका गुरु कहा जाता है। 1994 में एर्दोगन इस्तांबुल के मेयर के तौर पर चुने गए। 1998 में उन्होंने ईरान और अजरबैजान से जुड़ी एक विवादित कविता कही, जिसके बाद उन्हें चार महीने के लिए जेल जाना पड़ा।
1999 में वो जेल से बाहर आए और 2001 में उन्होंने जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी का गठन किया। इस दौरान उन पर पॉलिटिकल बैन भी लगा रहा। पार्टी बनाने के 15 महीनों बाद ही 2002 में एर्दोगन तुर्किये में आम चुनाव जीत गए। हालांकि अगले साल मार्च में बैन हटने के बाद ही वो प्रधानमंत्री बन पाए।
तुर्किये के 6 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों के लिए एकजुट होकर विपक्षी नेता कमाल केलिकदारोग्लू को अपने गठबंधन का उम्मीदवार चुना है। इस गठबंधन को टेबल ऑफ सिक्स नाम दिया गया है। कमाल मुख्य विपक्षी दल रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (CHP) के नेता हैं। उनकी पहचान ‘तुर्किये के गांधी’ के तौर पर बन चुकी है। स्थानीय मीडिया उन्हें ‘गांधी कमाल’ कहता है। वह महात्मा गांधी की तरह ही चश्मा पहनते हैं और उन्हीं की तरह राजनीतिक शैली भी विनम्र है
कमाल 2002 में CHP से जुड़े थे। यह देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल है। इसकी स्थापना आधुनिक तुर्किये के संस्थापक मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने की थी। 2010 में एक वीडियो लीक मामले के बाद CHP प्रमुख बायकल ने इस्तीफा दे दिया। तब कमाल को पार्टी की कमान सौंपी गई। नागरिक अधिकार, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के लिए तो वे लड़ ही रहे थे, 2011 में एर्दोगन के PM बनने के बाद कमाल ने अभियान और तेज कर दिया।
कमाल पर कई बार जानलेवा हमले भी हो चुके हैं। 2016 में उनके काफिले पर मिसाइल से और 2017 में IS ने बम से हमला किया था। 2019 में भी उन्हें मारने की कोशिश की गई थी।
गांधी जी की दांडी यात्रा से प्रेरित होकर कमाल ने 2017 में एर्दोगन के खिलाफ अंकारा से इस्तांबुल तक (450 किमी) ‘मार्च फॉर जस्टिस’ निकाला था। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें 10 लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। विरोध को दबाने के लिए एर्दोगन ने 2 लाख लोगों को जेल भिजवा दिया था। देश की सभी 372 जेलें क्षमता से ज्यादा भर गई थीं।
कमाल को कट्टरपंथी एर्दोगन के ठीक उलट माना जाता है। लोकतांत्रिक संस्थान खत्म करने और मीडिया पर नियंत्रण जैसे मुद्दों पर वो एर्दोगन को घेरते रहे हैं। फरवरी में आए भूकंप और लोगों के बेघर होने पर भी उन्होंने एर्दोगन को दोषी ठहराया था। कमाल ने वादा किया है कि वो देश में आजादी और लोकतंत्र लाकर रहेंगे। उन्होंने एर्दोगन की गलत आर्थिक नीतियों को पलटने का भी संकल्प लिया है।
तुर्किये की 600 सीटों वाली संसद में प्रवेश के लिए एक पार्टी के पास 7% वोट होना जरूरी है। या फिर पार्टी किसी ऐसे गठबंधन का हिस्सा हो जिसके पास वोटों की जरूरी संख्या मौजूद हो। तुर्किये में एक व्यक्ति सिर्फ 2 टर्म तक ही राष्ट्रपति रह सकता है।
एर्दोगन के 2 टर्म पूरे हो चुके हैं, लेकिन 2017 में राष्ट्रपति के अधिकारों से जुड़ा एक रेफरेंडम लाया गया था, जिसकी वजह से उनका पहला कार्यकाल जल्दी खत्म हो गया था। इसी वजह से एर्दोगन को तीसरी बार चुनाव लड़ने की इजाजत मिल गई है।
चुनाव जीतने के लिए एक उम्मीदवार को 50% वोट हासिल करना जरूरी है। अगर किसी भी कैंडिडेट को बहुमत नहीं मिला तो 28 मई को दोबारा चुनाव करवाए जाएंगे। तुर्किये में करीब 6 करोड़ जनता वोट डालेगी। इनमें 1 लाख से ज्यादा सीरियाई लोग हैं जिन्हें तुर्किये की नागरिकता मिल गई है।
तुर्किये में 36 लाख लोग रिफ्यूजी हैं जो 2011 में सीरिया में सिविल वॉर शुरू होने के बाद यहां आ गए थे। यहां हर नागरिक का वोट डालना जरूरी है। हालांकि वोट नहीं डालने पर जुर्माने का कोई स्ट्रक्चर नहीं बताया गया है। 2018 के चुनाव में यहां 86% वोटिंग हुई थी।