वर्तमान भारतीय राजनीति और लोकतंत्र :राम सिंह     

लोकतंत्र जनता की, जनता द्वारा और जनता के लिए सरकार है किन्तु वर्तमान में भारत में सरकार जनता द्वारा तो बनती है किन्तु जनता की नहीं। यह सरकार जनता की नहीं होती है, अतः जनता के लिए भी नहीं होती है। यह सरकार जनता द्वारा बनती है क्योंकि जनता चुनाव में मतदान करती है जिससे सरकार बनती है। यह सरकार जनता की नहीं होती है क्योंकि जो चुने जाते हैं वह सामान्य जनता से न होकर सामंतवादी होते हैं। वर्तमान भारतीय राजनीति ही ऐसी हो गई है जिसमें सामान्य जनता के चुने जाने के अवसर समाप्त हो चुके हैं। यह सरकार सामान्य जनता की नहीं होती है, अतः सामान्य जनता के लोकतांत्रिक मुद्दों, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक न्याय, आदि पर भी ध्यान नहीं देती है।

वर्तमान भारतीय राजनीति में चुनावी राजतंत्र या सामंतवाद चल रहा है क्योंकि लोकतंत्र में सरकार राजनीतिक दलों द्वारा बनाई जाती है और देशके लगभग सभी राजनैतिक दल सामंतवादी हैं। इन सामंतवादी दलों के कारण निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले भी वही प्रत्याशी चुनाव जीत पाते हैं जो सामंतवादी होते हैं क्योंकि इन राजनैतिक दलों ने चुनाव की संस्कृति सामंतवादी बना दी है ताकि सामान्य जनता चुनाव में प्रतिभाग न कर सके।
भारत की जनता को स्वतंत्रता के समय ही बिना किसी मेहनत के आसानी से लोकतंत्र भी मिल गया, उसे फ्रांस या ब्रिटेन और अन्य देशों की तरह राजतंत्र से सामंतवाद हेतु और सामंतवाद से लोकतंत्र हेतु रक्तरंजित या रक्तहीन क्रांति नहीं करनी पड़ी या फिर संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह इसके अश्वेत पुरुष नागरिकों को मताधिकार के लिए गृहयुद्ध नहीं करना पड़ा। संयुक्त राज्य अमेरिका की अश्वेत महिलाओं को तो भारत से भी बाद में, 1965 में मताधिकार मिला। इसी कारण यहाँ की जनता लोकतंत्र का महत्व नहीं समझती है और सामंतवादी राजनैतिक दलों को ही वोट करके सत्ता में पहुंचाती रहती है।


राजनैतिक दलों के अनुसार देखें तो कांग्रेस में पहले परिवारवाद और जातिवाद नहीं था किन्तु कुलीन तंत्र था। अतः इसे सीमित लोकतांत्रिक पार्टी कहा जा सकता था। कुलीनता के कारण ही कांग्रेस ने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक न्याय, आदि पर समुचित ध्यान नहीं दिया था। अब यह दल परिवारवादी भी हो गया है। 1998 से आज तक सोनिया गाँधी, उनके पुत्र राहुल गांधी और पुनः वह स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष हैं। कुछ लोग जनता पर यह आरोप लगाते हैं कि जनता स्वयं गांधी-नेहरू परिवार को ही कांग्रेस प्रमुख के रूप में देखना चाहती है और इसके प्रमाण के तौर पर 1998 के लगभग कांग्रेस की दुर्गति को उद्धृत करते हैं, जबकि उस समय कांग्रेस अपनी नीतियों के कारण हीकमजोर हो गई थी। यदि गांधी-नेहरू परिवार से कांग्रेस चलती तो आज अच्छी दशा में होनी चाहिए थी किन्तु वर्तमान में तो कांग्रेस बहुत बुरी दशा में है।


बसपा को देखें तो 1984 में स्थापना के समय से आज तक दो व्यक्ति ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं और दोनों एक ही जाति के हैं। मनुवाद के विरोध में सामाजिक न्याय का झंडा बुलंद करने वाली इस पार्टी को आज तक राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने लायक दूसरी जाति से कोई योग्य व्यक्ति नहीं मिला है। पार्टी के संगठन में भी एक जाति विशेष को ही प्राथमिकता मिलती है, अधिकांश महत्वपूर्ण पदों पर जाति विशेष के लोग ही काबिज रहते हैं। बसपा से शुरुआत में ऐसे लोग भी सांसद/विधायक बने जिनके पास साइकिल भी नहीं थी किन्तु आज टिकटों की बिक्री इतनी महंगी होती है कि गरीब तो छोड़िए, मध्यमवर्गीय परिवार भी चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं।
सपा में 1992 से आज तक पिता-पुत्र ही राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। पार्टी के अन्य महत्वपूर्ण पदों पर भी सैफई परिवार के लोग ही हैं। महत्वपूर्ण पदों पर एक जाति विशेष के लोगों के होने के कारण नौकरियों में और कानून व्यवस्था में उस जाति विशेष को महत्व मिलता है क्योंकि नौकरियों और कानून व्यवस्था में राजनेताओं की सिफारिश/प्रभाव खूब चलता है|


अन्य पार्टियों, अपना दल, रालोद, राजद, जद-यू, जद-एस, राकांपा, द्रमुक, जन अधिकार मंच, महान दल, मौलिक अधिकार पार्टी, लोजपा, हम, सुभासपा, आदि जो बसपा, सपा, राजद, जद-यू, आदि के व्यक्तिवाद, परिवारवाद और जातिवाद की प्रतिक्रिया में बनीं, साथ ही सामाजिक न्याय का झंडा भी बुलंद किए हैं, में भी राजतंत्र की तरह पिता-पुत्र/पुत्री या परिवार के लोग ही राष्ट्रीय अध्यक्ष/मालिक बने हुए हैं, उन्हें किसी दूसरे परिवार और जाति से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने लायक योग्य व्यक्ति नहीं मिल रहा है या फिर यह लोग अपनी पार्टी को प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की तरह अपनी निजी सम्पत्ति समझते हैं।


इस तरह के सामंतवाद, व्यक्तिवाद, परिवारवाद, जातिवाद और क्षेत्रवाद के कारण ही सामान्य जनता को राजनीति में प्रतिभागिता नहीं मिल पाती है। इसके अतिरिक्त राजनीति इतनी महंगी हो गई है कि सामान्य और मध्यमवर्गीय परिवार के लोग राजनीति में भाग लेने और चुनाव लड़ने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते हैं जिससेउन्हें राजनीति में भाग लेने का अवसर नहीं मिल पाता है| राजनीति को इतना महंगा इन सामंतवादियों ने जानबूझकर किया है ताकि सामान्य जनता चुनाव में प्रतिभाग न कर सके और उन्हें कोई चुनौती न मिले। सामान्य जनता चुनाव में प्रतिभाग करेगी तो इन सामंतवादियों को भी जनहित के कार्य करने पडेंगे जिससे इनके हित प्रभावित होंगे।
सामान्य जनता को राजनीति से दूर करने के लिए ही इन सामंतवादियों ने सार्वजनिक शिक्षा को बदहाल कर रखा है। अन्यथा की स्थिति में सामान्य जनता जागरुक हो जाएगी और अपने मुद्दों, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक न्याय, आदि को उठाने लगेगी। सामाजिक न्याय के पक्षधर नेताओं ने भी शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाने पर ध्यान नहीं दिया, अन्यथा यूपी में सपा-बसपा और बिहार में राजद-जद-यू कम से कम 20 साल तक सत्ता में रहे हैं, इतने समय में शिक्षा को सुधार सकते थे जबकि यह दल जिनका झंडा उठाए हैं वह शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए हैं। इन्होंने भी शिक्षा पर ध्यान इसलिए नहीं दिया ताकि इनके ही समाज के लोग राजनीति में प्रतिभाग न कर सकें और अपने मुद्दे न उठा सकें अन्यथा इनका सामंतवाद खत्म हो जाएगा।


अतः भारत में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए लोकतांत्रिक पार्टियों की जरूरत है। वर्तमान में भाजपा में परिवारवाद और जातिवाद नहीं है किन्तु कुलीन तंत्र इसमें भी है जिसके कारण भाजपा को सीमित लोकतंत्र वाली पार्टी कह सकते हैं| कुलीन तंत्र के कारण ही भाजपा का सामान्य जनहित के लोकतांत्रिक मुद्दों, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक न्याय, आदि से कोई सरोकार नहीं है। इसने जनहित के लोकतांत्रिक मुद्दों पर ध्यान देने के बजाय धर्म और छद्म राष्ट्रवाद के मुद्दे में लोगों को उलझा रखा है। भाजपा को सामाजिक न्याय का विरोधी भी माना जाता है। राजनीति को महंगा भाजपा ने भी किया है। नवगठित सम्यक पार्टी पूर्ण लोकतांत्रिक पार्टी है क्योंकि इसमें व्यक्तिवाद, परिवारवाद और जातिवाद न होने के साथ-साथ इसने जनहित के लोकतांत्रिक मुद्दोंजैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक न्याय,आदि को भी अपने एजेंडे में शामिल किया है। सामान्य जनता, युवाओं, महिलाओं, बुद्धिजीवियों,सामाजिक चिंतकों, आदि को इन लोकतांत्रिक पार्टियों से ही जुड़ना चाहिए, इन्हें ही सत्ता में पहुंचाना चाहिए| इन दोनों पार्टियों से असहमत लोगों को नई लोकतांत्रिक पार्टी बना लेनी चाहिए किन्तु लोकतांत्रिक ही होनी चाहिए ताकि देश से चुनावी सामंतवाद खत्म हो सके तथा लोकतंत्र मजबूत हो सके।

राम सिंह                                 

प्रोफ़ेसर- भूगोल, जे.एल.एन.(पी.जी.) कॉलेज, एटा, उ. प्र.

मोबा.- 9450874945