जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी है। इलेक्शन कमिश्नर राजीव कुमार ने 3 जून को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि इलेक्शन की प्रोसेस जल्द शुरू हो जाएगी। इसी महीने वोटिंग की तारीखें भी आ सकती हैं।
लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के हिसाब से देखें, तो विधानसभा चुनाव में फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है। उसे 33 सीटें मिल सकती हैं। कांग्रेस और PDP की सीटें मिला दें, तो INDIA ब्लॉक 45 सीटों पर आगे रहेगा। BJP 29 सीटों पर लीड ले सकती है। लोकसभा चुनाव में PDP कश्मीर में अलग लड़ी थी। जम्मू में उसने INDIA ब्लॉक को सपोर्ट किया था।
ये प्रिडिक्शन, इलेक्शन कमीशन के डेटा, पॉलिटिकल एक्सपर्ट से बातचीत और लोकसभा चुनाव में पार्टियों की परफॉर्मेंस से निकला है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोटिंग का पैटर्न बदल भी सकता है।
लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर की 5 सीटों में से BJP और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 2-2 सीटें जीती हैं। एक सीट निर्दलीय कैंडिडेट को मिली है। जम्मू-कश्मीर परिसीमन की फाइनल रिपोर्ट के मुताबिक, 114 सदस्यों वाली विधानसभा में फिलहाल 90 सीटों पर चुनाव कराए जाएंगे। बाकी 24 सीटें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर, 2023 में चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि सितंबर, 2024 तक हर हाल में जम्मू-कश्मीर में चुनाव करा लिए जाएं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी एक इंटरव्यू में कहा था कि 30 सितंबर से पहले जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो जाएंगे। जम्मू-कश्मीर में 2014 के बाद से विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं।
जम्मू-कश्मीर में इस बार के लोकसभा इलेक्शन में दो बातें खास रहीं। आर्टिकल-370 हटने के बाद हुए पहले चुनाव में वोटिंग के पुराने सभी रिकॉर्ड टूट गए। जम्मू-कश्मीर में इस बार 58.46%
वोटिंग हुई। दूसरी बड़ी बात रही- घाटी के दो सबसे बड़े लीडर महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला चुनाव हार गए। उमर अब्दुल्ला तो पहली बार चुनाव हारे हैं।
अब सवाल है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे क्या कह रहे हैं, महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला की हार के क्या मायने हैं। एक और बात ये कि तिहाड़ जेल में कैद होने के बावजूद चुनाव जीतने वाले इंजीनियर राशिद की जीत का घाटी की सियासत पर क्या असर होगा। दैनिक भास्कर ने इस पर पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स से बात की।
जम्मू-कश्मीर में सबसे हैरान करने वाला रिजल्ट बारामूला सीट पर आया है। यहां से नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रेसिडेंट और पूर्व CM उमर अब्दुल्ला ने चुनाव लड़ा था। मुकाबला जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रेसिडेंट सज्जाद लोन से था। आतंकी फंडिंग के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद अब्दुल राशिद शेख भी चुनाव लड़ रहे थे।
2019 के चुनाव में यहां से उमर अब्दुल्ला की पार्टी के मोहम्मद अकबर लोन चुनाव जीते थे। इस लिहाज से उमर अब्दुल्ला के लिए ये सेफ सीट थी। रिजल्ट आया तो अब्दुल राशिद शेख ने घाटी के दो बड़े नेताओं को हरा दिया।
राशिद को 4,72,481 वोट मिले। उमर अब्दुल्ला और राशिद को मिले वोट में 2 लाख वोट का अंतर है। ये घाटी में अब तक की सबसे बड़ी जीत है। अब्दुल राशिद शेख 2 बार हंदवाड़ा की लंगेट सीट से विधायक रह चुके हैं।
बारामूला लोकसभा सीट में 18 विधानसभा सीटें आती हैं। लोकसभा इलेक्शन का रिजल्ट देखें तो अब्दुल राशिद को विधानसभा की 15 सीटों पर बढ़त मिली है। राशिद कह चुके हैं कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के कैंडिडेट उतारेंगे। इस लिहाज से वे घाटी में बड़ी पॉलिटिकल पावर के तौर पर उभर सकते हैं। बारामूला सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस को 2 और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस को एक सीट पर बढ़त मिली है।
लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा झटका पूर्व CM महबूबा मुफ्ती को लगा है। वे खुद तो अपने घर अनंतनाग में चुनाव हारीं ही, तीन सीटों पर लड़ी उनकी पार्टी PDP को एक भी सीट नहीं मिली। अनंतनाग-राजौरी सीट पर महबूबा का मुकाबला नेशनल कॉन्फ्रेंस के मियां अल्ताफ से था। अल्ताफ ने महबूबा को 2.81 लाख वोट से हराया।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट अजहर हुसैन कहते हैं, ‘महबूबा मुफ्ती के लिए लोगों में हमदर्दी नहीं थी। लोगों के मन में ये बात है कि महबूबा मुफ्ती ने BJP के साथ सरकार बनाई थी, तभी आर्टिकल-370 हटाया गया। फिर गुपकार अलायंस बना तो वे उसमें शामिल हो गईं। कश्मीर में अलायंस की बात हुई, तो अलग हो गईं। इससे लोगों में गुस्सा था।’
‘दूसरी तरफ नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रत्याशी मियां अल्ताफ संत मियां निजामुद्दीन के पोते हैं। लाखों लोग का उनके परिवार से धार्मिक जुड़ाव है। एक वजह ये भी है कि BJP की सरकार ने राजौरी को अनंतनाग सीट से जोड़ दिया। पहाड़ी इलाके में गुज्जर-बकरवाल को आरक्षण दिया।’
‘BJP ने कश्मीर की तीनों सीटों पर कैंडिडेट नहीं उतारे, लेकिन दूसरी पार्टियों को सपोर्ट किया। इसका नतीजा ये हुआ कि मियां अल्ताफ को एकतरफा वोट मिले और महबूबा मुफ्ती को बड़ी हार मिली।’
अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट में 18 विधानसभा सीटें आती हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट अजहर हुसैन के मुताबिक, PDP जम्मू-कश्मीर में यहीं मजबूत है। उसे यहां 3 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली है। नेशनल कॉन्फ्रेंस 15 सीट पर आगे रही।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट फरमान अली कहते हैं, ‘कश्मीर में युवाओं की आबादी करीब 70% है। घाटी के दोनों बड़े नेताओं ने उनसे जुड़ने की कोशिश नहीं की। वे उनकी भावनाएं नहीं समझ पाए। यूथ ने मैसेज देने की कोशिश है कि जेल में बंद यहां के लोगों को राहत मिले। ये उनकी तरफ से कश्मीर की सभी सीटों के लिए बड़ी डिमांड है।’
1967 में हुए पहले चुनाव के बाद से अब तक श्रीनगर अब्दुल्ला परिवार का गढ़ रहा है। पार्टी ने यहां 13 बार चुनाव जीता है। उमर अब्दुल्ला और उनके पिता फारूक अब्दुल्ला दोनों यहां से सांसद रह चुके हैं।
इस बार भी यहां नेशनल कॉन्फ्रेंस के फायर ब्रांड नेता आगा सैयद रुहुल्लाह मेहदी जीते हैं। वे शुरुआत से बढ़त बनाए रहे। उमर अब्दुल्ला भी श्रीनगर में एक्टिव रहे। श्रीनगर सीट पर PDP के नेता शहरी इलाके को छोड़कर रूरल एरियाज में चुनाव करते रहे। इस वजह से पार्टी श्रीनगर सीट नहीं बचा पाई।
श्रीनगर लोकसभा सीट में विधानसभा की 18 सीटें आती हैं। इनमें नेशनल कॉन्फ्रेंस को 16 और PDP को 2 सीटों पर बढ़त मिली है।
इस बार लोकसभा चुनाव में कश्मीर घाटी में रिकॉर्ड वोटिंग हुई है। इससे पहले 1996 में 46.86% वोटिंग हुई थी। उसके बाद ये ग्राफ लगातार घटता-बढ़ता रहा। इस बार कश्मीर घाटी की तीन सीटों पर 50.86% वोटिंग हुई है।
चुनाव आयोग के मुताबिक, इस बार ज्यादातर वोटर 18 से 39 साल उम्र के रहे। बारामूला में 56% और अनंतनाग-राजौरी सीट पर 54.41% वोटर 18-39 साल उम्र के हैं। इन्हीं दोनों सीटों पर जम्मू-कश्मीर के दो बड़े चेहरे चुनाव लड़ रहे थे। दोनों ही हार गए।
जम्मू रीजन की दोनों सीटों पर BJP ने हैट्रिक लगाई है। यहां कांग्रेस और BJP में सीधा मुकाबला था। कांग्रेस कैंडिडेट को INDIA ब्लॉक का सपोर्ट था। माना जा रहा था कि उधमपुर में कांग्रेस कैंडिडेट चौधरी लाल सिंह BJP के डॉ. जितेंद्र सिंह को कड़ी टक्कर देंगे। हुआ इसका उल्टा, डॉ. जितेंद्र सिंह 1.24 लाख वोट से चुनाव जीत गए।
जम्मू सीट से BJP कैंडिडेट जुगल किशोर ने कांग्रेस कैंडिडेट रमन भल्ला को 1.35 लाख वोट से हराया। यानी दोनों ने एक लाख से ज्यादा के अंतर से जीत हासिल की।
जम्मू और उधमपुर सीट में विधानसभा की 18-18 सीटें हैं। BJP को यहां 29 सीटों पर लीड मिली है। 7 सीटों पर कांग्रेस, यानी INDIA ब्लॉक आगे है।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट अजहर हुसैन कहते हैं, ‘कश्मीर में BJP की हालत लोकसभा चुनाव जैसी ही रह सकती है। यहां BJP कुछ सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ सकती है। ये भी हो सकता है कि लोकसभा चुनाव की तरह कैंडिडेट न उतारे। गुरेज, कुपवाड़ा और त्राल में BJP कुछ कर सकती है, लेकिन जीत की गारंटी नहीं है।’
अजहर कहते हैं कि कश्मीर घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस 35 सीटों पर लीड कर रही है। 14 सीट पर इंजीनियर राशिद आगे हैं। PDP को 5 और सज्जाद लोन को एक सीट पर बढ़त है। जम्मू रीजन में कांग्रेस 10 से 12 सीटों पर आगे है।
जम्मू-कश्मीर के सीनियर जर्नलिस्ट सैयद तज्जमुल कहते हैं, ‘जम्मू में मोदी की लहर कायम रही। यहां सबसे ज्यादा हिंदू वोटर हैं। पिछली बार के मुकाबले चौधरी लाल सिंह गठबंधन की वजह से मजबूत थे, लेकिन जीत नहीं पाए। PM मोदी यहां प्रचार के लिए आए थे, लेकिन कांग्रेस की तरफ से कोई स्टार प्रचारक जम्मू नहीं आया। इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा।’
2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग होकर नए केंद्र शासित प्रदेश बने लद्दाख में बड़ा फेरबदल हुआ है। 2014 और 2019 में ये सीट BJP ने जीती थी। इस बार BJP कैंडिडेट तीसरे नंबर पर रहा।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट अजहर हुसैन कहते हैं कि 2019 में BJP ने लद्दाख के लिए बड़े-बड़े दावे किए थे। इसमें लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाना और छठी अनुसूची में शामिल कराना था। दोनों वादों पर काम नहीं हुआ। इसके बाद BJP ने सांसद रहे जामयांग त्सेरिंग नामग्याल का टिकट काट दिया। उनकी जगह ताशी ग्यालसन को टिकट मिला।
यहां से जीतने वाले निर्दलीय कैंडिडेट मोहम्मद हनीफा पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस में थे। फिर वे कांग्रेस में चले गए। उन्होंने लद्दाख से टिकट की दावेदारी की थी, लेकिन बात नहीं बनी। कांग्रेस ने उनकी जगह सेरिंग नामग्याल को टिकट दिया। इसके बाद मोहम्मद हनीफा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा।
लद्दाख सीट में दो जिले लेह और कारगिल आते हैं। लेह में बुद्धिस्ट आबादी ज्यादा है। कारगिल में शिया मुसलमान ज्यादा हैं। निर्दलीय प्रत्याशी मोहम्मद हनीफा मुस्लिम समुदाय से थे। BJP और कांग्रेस के कैंडिडेट बुद्धिस्ट हैं। ऐसे में लेह में दोनों के वोट कट गए। मोहम्मद हनीफा 65 हजार वोट पाकर भी 27 हजार वोट से जीत गए।