यह फैसला गाजीपुर की सुरसति की याचिका पर सुनवाई करते हुए तीन जजों की फुल बेंच ने सुनाया है। मामले में मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति प्रकाश पाड़िया और पीयूष अग्रवाल की संयुक्त पीठ कर रही थी।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि नेशनल हाईवे एक्ट-1956 की धारा 3-डी के तहत अधिसूचना के प्रकाशन के बाद मूल काश्तकार या भूमिधर केवल मुआवजा पाने का हकदार है। अगर, यही काश्तकार अपनी भूमि का विक्रय कर देता है तो ऐसी भूमि को लेने वाला काश्तकार (दूसरा खरीदार) केवल मुआवजे का हकदार होगा। वह अधिसूचना को चुनौती देने या अन्य प्रकार के दावे करने का अधिकार नहीं रखता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि दूसरा खरीदार तभी मुआवजे का दावा कर सकता है जब, इसकी सहमति मूल काश्तकार देता है।
यह फैसला गाजीपुर की सुरसति की याचिका पर सुनवाई करते हुए तीन जजों की फुल बेंच ने सुनाया है। मामले में मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति प्रकाश पाड़िया और पीयूष अग्रवाल की संयुक्त पीठ कर रही थी। फुल बेंच के सामने मामले में दो अलग-अलग खंडपीठों के अलग-अलग फैसले थे। इस वजह से मामले को फुल बेंच के समक्ष भेजा गया।फुल बेंच के सामने तीन सवाल थे। एक तो क्या नेशनल हाईवे एक्ट 1856 (3-डी) की अधिसूचना के प्रकाशन के बाद मूलखातेदार या काश्तकार केवल मुआवजा पाने का हकदार है। दूसरा, नेशनल हाईवे एक्ट 3 (जी) के तहत एक बार भूमि के मुआवजे का निर्धारण हो गया है तो अगर भूमि का विक्रय हो जाता है तो दूसरा खरीदार पूर्व मालिक से क्षतिपूर्ति नियमानुसार ले सकता है। तीसरा, इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो जजों की खंडपीठ ने सुरेंद्र नाथ सिंह केस में दी गई व्यवस्था को सही माना है।
मामले में गाजीपुर में नेशनल हाईवे ने भूमि अधिग्रहीत कर इसकी अधिसूचना प्रकाशित की थी। इसके बावजूद एक महिला ने नेशनल हाईवे की ओर से अधिग्रहीत की गई भूमि का विक्रय कर दिया था। रेवेन्यू रिकॉड में उसका नाम दर्ज हो गया, जिसे लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई।
कोर्ट ने मामले में सुरेंद्र नाथ सिंह के केस में खंडपीठ के फैसले को सही मानते हुए कहा कि दूसरा हकदार मुख्य काश्तकार (विक्रयकर्ता) की सहमति के बाद केवल मुआवजा पाने का हकदार होगा। वह किसी अन्य प्रकार के लाभ का दावा नहीं कर सकता है। साथ ही अधिसूचना को भी चुनौती नहीं दे सकता है।