ये शब्द थे 50 के दशक की सबसे बोल्ड और समय से आगे चलने वाली इंडियन-यहूदी एक्ट्रेस फ्लोरेंस एजेकिल उर्फ नादिरा के।
जब महिलाएं पर्दे में रहना पसंद करती थीं, उस जमाने में नादिरा सिगरेट पीते हुए सबसे लग्जरी और मंहगी गाड़ी रोल्स रॉयस में घूमा करती थीं। ये भारत की पहली एक्ट्रेस थीं, जिन्होंने रोल्स रॉयस खरीदी थी, जो उस समय सिर्फ राजा-महाराजाओं के पास ही होती थी।
परिवार की गरीबी मिटाने के लिए जब यहूदी नादिरा फिल्मों में आईं, तो मां ने सिनेगॉग (यहूदी पूजास्थल) जाने पर रोक लगा दी। लेकिन जब भारत की पहली रंगीन फिल्म आन (1952) में नादिरा ने राजकुमारी का रोल निभाया, तो रातों रात उन्हें भारत में पहचान मिल गई। हालांकि उनकी निजी जिंदगी उथल-पुथल भरी रही।
दो नाकाम शादियों और परिवार के भारत छोड़ने से नादिरा अकेलेपन में घुटने लगीं। जीने का एकमात्र सहारा एक नौकरानी थी, जिसे वो कभी खुद से दूर नहीं जाने देती थीं। अपने घर में कैद हो चुकीं नादिरा के लिए मौत अकेलेपन से मुक्ति थी।
5 दिसंबर 1932 को फ्लोरेंस एजेकिल का जन्म बगदाद, इराक के एक यहूदी परिवार में हुआ। 1932 में इराक को यूनाइटेड किंगडम से मिली स्वतंत्रता के बाद देश में कई बड़े बदलाव हुए, जिससे नादिरा का परिवार आर्थिक तंगी से जूझने लगा। नादिरा महज चंद हफ्तों की ही थीं, जब उनका पूरा परिवार काम की तलाश में इराक से पलायन कर भारत आ पहुंचा। उनका परिवार बॉम्बे में रहते हुए छोटे-मोटे काम करने लगा। परिवार के लिए दो वक्त का खाना जुटा पाना भी काफी मुश्किल था।
साल 1943 में आलिया भट्ट के दादाजी नानाभाई भट्ट और बाबूराव मिस्त्री ने फिल्म मौज बनाई, जिसमें एक बाल कलाकार की जरुरत थी। कुछ जान-पहचान के लोगों की मदद से नादिरा को उस फिल्म में एक छोटा सा रोल मिल गया। चंद रुपयों के लिए नादिरा ने वो काम तो किया, लेकिन पहली फिल्म करने के बाद ही वो हीरोइन बनने का ख्वाब देखने लगीं।
मशहूर फिल्ममेकर महबूब खान अपनी फिल्म आन के लिए दिलीप कुमार, निम्मी और प्रेमनाथ के साथ काम करने के लिए एक और एक्ट्रेस की तलाश में थे। उस रोल के लिए उनकी सबसे पहली पसंद नरगिस थीं, लेकिन आरके स्टूडियो की दूसरी फिल्म करने के लिए उन्होंने फिल्म आन छोड़ दी। नरगिस के बाद दिलीप कुमार के कहने पर मधुबाला को फिल्म में कास्ट किया गया, क्योंकि उस समय दिलीप-मधुबाला काफी करीब हुआ करते थे। कुछ समय बाद मधुबाला ने भी फिल्म करने से साफ इनकार कर दिया।
फिल्म आन की शूटिंग शुरू होनी थी, लेकिन हीरोइन न मिलने से फिल्म शुरू करने में देरी हो रही थी। इसी बीच महबूब खान ने एक नए चेहरे को तलाशने का मन बना लिया। वो इस रोल के लिए एक खूबसूरत और बोल्ड लड़की की तलाश में थे।
ठीक उसी समय नादिरा का परिवार आर्थिक तंगी का सामना कर रहा था। किस्मत से उस समय किसी पहचान वाले की मदद से महबूब खान का परिचय 16 साल की नादिरा से हुआ। नादिरा को न हिंदी आती थी न उर्दू, इसके बावजूद उनकी खूबसूरती, तीखे नैन-नक्श और तेज आवाज से इंप्रेस होकर महबूब खान ने उन्हें फिल्म आन में कास्ट कर लिया। फिल्म के लिए महबूब खान ने उन्हें 1200 रुपए महीना देने का वादा किया, जो नादिरा के लिए एक बड़ी रकम थी।
जब नादिरा ने घर लौटते ही अपनी मां को फिल्म मिलने की खबर दी तो वो बेहद नाराज हुईं। यहूदी परिवार के लिए अपने घर की बेटी को फिल्मों में हीरोइन बनाना अस्वीकार था। मां ने उन्हें समझाया कि फिल्मों में काम करना, अपने शरीर को बेचने के बराबर है। जब नादिरा फिल्मों में काम करने के लिए अड़ी रहीं, तो मां ने उनसे कहा कि अगर फिल्मों में काम करोगी तो तुम्हें कभी सिनेगॉग (यहूदियों का पूजास्थल) नहीं जाने दिया जाएगा।
मां की ये बात सुनते ही नादिरा ने कहा, फिलहाल हमें रात के खाने के इंजताम के बारे में सोचना चाहिए। अगर फिल्मों में काम करना बुरा है, तो भूख से मरना उससे भी ज्यादा बुरा है।
फिल्म आन में उन्होंने राजपूत शहजादी राजेश्वरी का रोल निभाया, जिससे आम आदमी बने दिलीप कुमार को प्यार हो जाता है। फिल्म की शूटिंग के दौरान पहले ही स्टार बन चुके दिलीप कुमार ने नादिरा की मदद की और उन्हें हिंदी से लेकर सही ढंग से डायलॉग डिलीवरी सिखाई। सिनेमाजी को दिए एक पुराने इंटरव्यू में नादिरा ने बताया था कि फिल्मों में आने से पहले उन्होंने सिर्फ एक ही फिल्म देखी थी, जो दिलीप कुमार की अंदाज (1949) थी।
3 महीने में फिल्म आन की शूटिंग पूरी होते ही वादे के अनुसार महबूब खान ने नादिरा के हाथों में 3600 रुपए थमा दिए। नादिरा ने अपनी जिंदगी में ये रकम पहली बार देखी थी, नतीजतन उन्होंने महबूब खान से कहा कि वो अकेले इतनी बड़ी रकम के साथ घर नहीं जाएंगी, उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए मदद चाहिए।
महबूब खान की मदद से ही नादिरा उस रकम के साथ घर पहुंच गईं, लेकिन जैसे ही उन्होंने वो रकम अपनी मां को थमाई, तो उन्होंने डर से कहा, कहीं तू चोरी करके तो नहीं आई। नादिरा ने मां को समझाया कि ये रकम उन्हें फिल्म में काम करने से मिली है, तो सबसे पहले मां ने उससे राशन खरीदा और भरपेट खाना खाया।
3600 रुपए का 50 के दशक में क्या मूल्य था, इस बात का अंदाजा ऐसे लगा लीजिए कि उन रुपयों की हिफाजत के लिए मां-बेटी रात भर जागती रहीं।
1952 में रिलीज हुई फिल्म आन में नादिरा ने मॉडर्न, जिद्दी शहजादी के दमदार अभिनय की ऐसी गहरी छाप छोड़ी कि रातोंरात उन्हें स्टार का दर्जा दिया जाने लगा। हॉलीवुड के जनक और मशहूर फिल्ममेकर सेसिल बी. डी मिली ने फिल्म रिलीज के बाद महबूब खान को खत लिखकर दिलीप कुमार, निम्मी, नादिरा की एक्टिंग और फिल्म की सराहना की थी। फिल्म आन की बदौलत नादिरा को लगातार नगमा, वारिस, डाक बाबू, रफ्तार, जलन जैसी फिल्मों में बतौर लीड हीरोइन काम मिलने लगा। नादिरा की पॉपुलैरिटी निम्मी, मधुबाला के बराबर हुआ करती थी। इस कदर खूबसूरत थीं कि जहां भी जाती थीं वहां भीड़ इकट्ठा हो जाया करती थी।
फिल्मों से मिल रहे पैसों से नादिरा ने सबसे पहले मां के लिए सोने के गहने, घर के फर्नीचर खरीदे। फिल्म-दर-फिल्म उनको मिलने वाली फीस बढ़ती गई और देखते-ही-देखते नादिरा की गिनती हिंदी सिनेमा की सबसे रईस एक्ट्रेसेस में होने लगी। महंगे डिजाइनर कपड़ों, कीमती गहनों और गाड़ियों के काफिले से नादिरा उस जमाने के हीरो को भी कई दफा मात दे दिया करती थीं।
लग्जरी जिंदगी जीते हुए नादिरा ने गाड़ियों का बड़ा कलेक्शन जमा कर लिया। जब एक दिन नादिरा को पता चला कि दुनिया की सबसे लग्जरी कार रोल्स रॉयस है, तो उन्होंने खुद वो गाड़ी खरीद ली। उस जमाने में सिर्फ राजा-महाराजाओं के पास ही ये गाड़ी हुआ करती थी। नादिरा के बाद ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में रोल्स रॉयस खरीदने का ट्रेंड शुरू हुआ और कई ए-लिस्टर्स ने ये गाड़ी खरीदी।
फिल्म आन से मिली पॉपुलैरिटी के बाद नादिरा को फिल्म नगमा में काम मिला। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान नादिरा की मुलाकात मशहूर लिरिसिस्ट नक्शब जारछवि से हुई, जो 1949 की फिल्म महल के मशहूर गाने आएगा आनेवाला के राइटर थे। चंद मुलाकातों के बाद ही दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया, हालांकि दोनों की शादी की कोई तारीख या साल सिनेमा के इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है।
दोनों की शादी हुई ही थी कि कुछ दिनों बाद ही नादिरा के सामने नक्शब घर में दूसरी महिलाओं को बुलाने लगे। शादी के एक हफ्ते ही बीते थे कि पति की रंगीनमिजाजी से नाखुश नादिरा ने एक जोड़ी कपड़े में ही घर छोड़ दिया। नक्शब ने कई बार नादिरा को मनाने की कोशिश की, लेकिन अपने स्वाभिमान की पक्की नादिरा कभी नहीं लौटीं। आखिरकार 1960 में नक्शब खुद पाकिस्तान में जाकर बस गए।
मौत सेकुछ दिनों पहले नादिरा ने 2005 में बीते हुए लम्हे ब्लॉग के राइटर शिशिर कृष्ण शर्मा से कहा था, सिर्फ मैं ही नहीं, कोई भी सेल्फ रेस्पेक्ट वाली महिला नक्शब की रंगीनमिजाजी बर्दाश्त नहीं करती, जब वो मेरी मौजूदगी में ही दूसरी लड़कियां घर बुलाने लगा, तो मैंने तुरंत उसका घर छोड़ दिया।
1955 की राज कपूर, नरगिस स्टारर ब्लॉकबस्टर फिल्म श्री 420 में नादिरा को रईस, मॉडर्न और सिडक्टिव माया का नेगेटिव रोल मिला। नादिरा फिल्म में वैंप बनने के खिलाफ थीं, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि फिल्म के हीरो और डायरेक्टर राज कपूर होने वाले हैं, तो उन्होंने झट से हामी भर दी। वो राज कपूर की फैन रही थीं।
श्री 420 का मशहूर गाना मुड़-मुड़ के ना देख मुड़-मुड़ के नादिरा पर ही फिल्माया गया था। फिल्म में हाथों में सिगरेट लिए और मॉडर्न कपड़े पहने हुए नादिरा ने हमेशा की तरह अपने किरदार को जिया और माया के किरदार से लोगों को नफरत करवाने में कामयाब रहीं।
नेगेटिव रोल में नादिरा इस कदर रम गईं कि श्री 420 के बाद नादिरा को कभी हीरोइन का ऑफर ही नहीं मिला। जो भी फिल्म मिलती उसमें उन्हें नेगेटिव या वैंप का रोल ही दिया जाता था, हालांकि वो नेगेटिव नहीं बल्कि हीरोइन के रोल करना चाहती थीं।
कुछ समय तक तो नादिरा वैंप के किरदारों के लिए इनकार करती रहीं, लेकिन जब कोई दूसरा रोल नहीं मिला, तो जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने वो रोल स्वीकार कर लिए। नई हीरोइन और वैंप आने से नादिरा का स्टारडम और पॉपुलैरिटी धुंधली पड़ने लगी। लेकिन उन्होंने फिर भी छोटे-मोटे रोल निभाते हुए हिंदी सिनेमा से अपना रिश्ता जोड़े रखा।
पहली नाकाम शादी के कुछ सालों बाद नादिरा ने अरब ओरिजिन के एक शख्स से दूसरी शादी थी। वो शख्स कौन था, उसका नाम क्या था, ये कोई नहीं जानता है। दूसरे पति का जिक्र नादिरा ने खुद बीते हुए लम्हे व्लॉग को दिए एक इंटरव्यू में किया था। उन्होंने बताया था, मेरा दूसरा पति बेहद आलसी था। हर आम औरत की तरह मेरी भी अपने पति से कुछ अपेक्षाएं थीं। उस शख्स को पालना और उसका खर्चा उठाना मेरे लिए मुनासिब नहीं था, इसलिए मुझे उसे छोड़ना पड़ा।
नादिरा से अलग होने के बाद उनका दूसरा पति भी अरब लौट गया। पति के जाने के बाद नादिरा ने फिर हिंदी सिनेमा का रुख किया और सालाना एक से दो फिल्में करती रहीं।
90 के दशक के आखिर में नादिरा के भाइयों ने इजरायल लौटने का फैसला कर लिया, लेकिन नादिरा इसके खिलाफ थीं। जब भाई भारत में नहीं रुके तो 70 साल की नादिरा ने अकेले ही मुंबई में रहने का फैसला किया। नादिरा साउथ मुंबई के पेडर रोड स्थित वसुंधरा अपार्टमेंट के फ्लेट नंबर 29 में रहती थीं।
उन्होंने अपना ख्याल रखने के लिए एक मेड रखी थी, जिसका नाम विद्या था। विद्या से उनका ऐसा लगाव हो गया था कि वो 24 घंटे उनके साथ रहती थी। अपने छोटे से आशियाने को उन्होंने कई सारी पुरानी तस्वीरों और किताबों से सजाया था। जो भी घर आता, उसे उन तस्वीरों को हाथ लगाने की इजाजत नहीं होती, हां, लेकिन वो अपना बुक कलेक्शन लोगों से जरूर शेयर करती थीं। अकेलेपन में नादिरा हिटलर, वर्ल्ड वॉर 2 और स्वामीविवेकानंद की किताबें पढ़कर समय काटती थीं। 70 साल की होने के बाद नादिरा ने घर से निकलना छोड़ दिया।
आखिरी इच्छा थी- हिंदू रीति-रिवाज से हो अंतिम संस्का
24 जनवरी 2006 को हार्ट अटैक आने से नादिरा की मेड ने उन्हें अस्पताल भर्ती करवाया, जहां वो पैरालाइज्ड हो गईं। लंबे इलाज के बाद 9 फरवरी 2006 में 73 साल की उम्र में नादिरा ने मुंबई के भाटिया हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया।
मौत के बाद उनकी मेड ने उनकी विल दिखाई, जिसमें उन्होंने लिखा था कि उनका अंतिम संस्कार यहूदी नहीं बल्कि हिंदू रीति-रिवाजों से हो। यहूदी फेडरेशन के चेयरमैन सोलोमन एफ. सोफर ने उनकी आखिरी इच्छा का विरोध करते हुए कहा था, नादिरा बेहद धार्मिक महिला थीं, वो हर न्यूईयर में सेनगॉग जाया करती थी।
एक इंटरव्यू के दौरान नादिरा ने कहा था, वो बेहद अकेला महसूस करती हैं। उन्हें रात को अकेलेपन से नींद भी नहीं आती। ये अकेलापन मुझे बहुत खलता है। मैं इतनी अकेली हूं कि लोगों को मेरी मौत की खबर भी मेरे मरने के 4 दिन बाद लगेगी, जब मेरे घर से सड़न की बदबू आएगी।
अगले शनिवार 18 नवंबर को पढ़िए साउथ की मशहूर एक्ट्रेस श्रीविद्या की कहानी, जिसे अपने ही रुपयों से अपना कैंसर का इलाज करने की इजाजत नहीं मिली।