तम्बाकू को लेकर यह है लोगों की राय

लोक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, डॉक्टरों और तंबाकू पीड़ितों ने मांग की है कि वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) की नई व्यवस्था में हर तरह के तंबाकू उत्पादों पर अधिकतम टैक्स लगाया जाए। इनका कहना है कि सरकार को इस पर कम से कम 40 फीसदी का ‘सिन टैक्स’ जरूर लगाना चाहिए। साथ ही किसी तंबाकू उत्पाद को ले कर इस वजह से रियायत की गई कि उसका इस्तेमाल गरीब करते हैं तो यह गरीबों के लिए और नुकसानदेह होगा।

मुंह के कैंसर की वजह से मारे गए महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री सतीश पेडणोकर की पत्नी सुमित्र पेडणोकर कहती हैं, ‘तंबाकू की वजह से ही मेरे पति की इतनी कम उम्र में मौत हो गई। ऐसे कारोबार को जो बड़ी संख्या में महिलाओं को विधवा और बच्चों को अनाथ बना रहा है, उस पर सरकार किसी भी तरह की रहम कैसे दिखा सकती है?’ इसी तरह आइआइटी जोधपुर के सहायक प्रोफेसर कहते हैं, ‘अगर तंबाकू उत्पादों पर 40 फीसद की बजाय सिर्फ 26 फीसद टैक्स लगाया गया तो इससे सरकार का राजस्व बहुत घट जाएगा। यह तो एक तरह से तंबाकू उत्पादों को कर राहत देने की स्थिति हो जाएगी।’

इनका कहना है कि मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने अपनी सिफारिश में तंबाकू उत्पादों पर 40 फीसदी का ‘सिन टैक्स’ लगाने की सिफारिश की थी। ऐसे में जीएसटी परिषद को उससे कम दर रखने के बारे में तो सोचना भी नहीं चाहिए। सबसे अच्छा विकल्प तो यह है कि 40 फीसदी का सिन टैक्स लगाया जाए और साथ ही मौजूदा उत्पाद शुल्क जारी रखते हुए राज्यों को टॉप अप टैक्स का अधिकार भी दिया जाए। यह जन स्वास्थ्य और राजस्व दोनों ही लिहाज से सबसे अच्छी स्थिति होगी।

बीड़ी या गुटखा जैसे सस्ते तंबाकू उत्पादों पर किसी तरह की रियायत को ये और भी खतरनाक बताते हैं। लोक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले संगठन वोलंट्री हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया (वीएचएआइ) की मुख्य कार्यकारी अधिकारी भावना मुखोपाध्याय कहती हैं, ‘अगर जीएसटी में सभी तंबाकू उत्पादों पर भरपूर रूप से टैक्स नहीं लगाया गया तो खास तौर पर देश की गरीब आबादी हमेशा के लिए गरीबी और खराब स्वास्थ्य के कुचक्र में फंसी रहेगी।’ भारत में तंबाकू उत्पादों का उपयोग करने वालों की संख्या 27 करोड़ से ज्यादा है। इनमें से दस लाख लोग हर साल तंबाकू के उपयोग से होने वाली बीमारियों का शिकार हो कर मौत के मुंह में चले जाते हैं। वर्ष 2011 में किए गए सरकारी आकलन के मुताबिक तंबाकू की वजह से देश पर स्वास्थ्य के क्षेत्र में ही एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का बोझ पड़ता है।