इजरायल के पेगासस स्पायवेयर से जासूसी के खुलासे के मामले में केंद्र सरकार को घेरते हुए शिवसेना ने बुधवार को एक बार फिर से कहा पेगासस चुने गए भारतीयों पर किया गया एक साइबर हमला है और ऐसा हमला केंद्र सरकार की सहमति के बिना नहीं हो सकता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में आगे कहा गया कि पेगासस का हमला आपातकाल से भी बड़ा है. पेगासस के असली जनक हमारे देश में हैं और उनका पता लगाया जाना चाहिए.
सामना के संपादकीय में कहा गया, ‘पेगासस चुनिंदा भारतीयों पर किया गया एक साइबर हमला है और ऐसा हमला केंद्र सरकार की सहमति के बिना नहीं हो सकता. पेगासस जासूसी मामले की जिम्मेदारी कौन लेगा? सबसे पहले पूरे मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) द्वारा की जानी चाहिए. नहीं तो सुप्रीम कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए और एक स्वतंत्र समिति नियुक्त करनी चाहिए. राष्ट्रीय हित इसमें निहित है.’
लोकसभा में शिवसेना के नेता विनायक राउत के नेतृत्व में मंगलवार को शिवसेना सांसदों के एक दल ने लोकसभा स्पीकर ओम अध्यक्ष से मुलाकात की और पेगासस मामले में जेपीसी गठित करने और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई किए जाने की मांग की.स्पीकर को लिखे गए पत्र में शिवसेना नेताओं ने कहा कि रिपोर्ट के अनुसार, विपक्षी नेताओं, मंत्रियों, पत्रकारों, सुप्रीम कोर्ट के जजों और अन्य सहित कम से कम 40 लोगों को निगरानी में रखा गया.
संपादकीय में आगे कहा गया है कि मुट्ठी भर लोग आपातकाल लगाने के लिए हर साल काला दिवस मनाते हैं.उन्होंने कहा, ‘पेगासस हमला आपातकाल से भी ज्यादा खतरनाक है. पेगासस के असली जनक हमारे देश में हैं और उन्हें ढूंढना चाहिए.’
शिवसेना के मुखपत्र ने इसे निजता के अधिकार पर सीधा हमला बताते हुए आगे कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आश्चर्यजनक बयान दिया है कि यह देश और लोकतंत्र को बदनाम करने की एक अंतरराष्ट्रीय साजिश है.
संपादकीय में पूछा गया, ‘क्या गृह मंत्री बता सकते हैं कि वास्तव में देश को कौन बदनाम कर रहा है? सरकार, लोकतंत्र और देश आपका है. फिर यह सब करने की हिम्मत किसमें है?’
उसमें आगे कहा गया कि जब कांग्रेस शासन के दौरान जासूसी के मामले सामने आए थे, तब भाजपा ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उनके इस्तीफे की मांग की थी. अब यह सत्ता में है लेकिन संसद में इस मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार नहीं है.
इसमें यह भी कहा गया कि लोकतंत्र के चार स्तंभ जैसे न्यायपालिका, संसद, कार्यपालिका और प्रेस को निगरानी में रखा गया.
संपादकीय में कहा गया, ‘अब सवाल यह है कि राजनीतिक विरोधियों पर नजर रखने के लिए भारत में पेगासस की सेवाएं किसने खरीदीं. ऐसा हमारे देश के इतिहास में पहली बार हुआ है.’
संपादकीय में आगे कहा, ‘अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के कार्यकाल के दौरान वाटरगेट कांड हुआ था. राष्ट्रपति को इस्तीफा देना पड़ा और घर जाना पड़ा था. इसी तरह राजीव गांधी ने आरोप लगाया था कि तत्कालीन चंद्रशेखर सरकार ने उनके घर के बाहर दो पुलिसकर्मी तैनात किए थे. कांग्रेस ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया जिसके कारण सरकार गिर गई थी. पेगासस हमला इन सबसे ज्यादा खतरनाक है. ऐसा इसलिए है क्योंकि उस अवधि के दौरान प्रौद्योगिकी का अधिक विकसित उपयोग नहीं किया गया था.’
इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए संपादकीय में कहा गया, ‘हम इजरायल को मित्र देश मानते थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में यह दोस्ती और भी मजबूत हुई है. इजरायल का पेगासस स्पायवेयर कम से कम 1,500 भारतीयों की जासूसी कर चुका है. राहुल गांधी से लेकर उद्योगपति, राजनेता, पत्रकार, सभी का फोन टैप किया गया है. यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला है. यह सीधा-सीधा जासूसी का मामला है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर हमला हुआ है.’इस बीच महाराष्ट्र के सूचना एवं प्रौद्योगिकी और गृह राज्य मंत्री सतेज पाटिल ने मोदी सरकार को यह कहते हुए फटकार लगाई है कि यह भारत के महान लोकतांत्रिक मूल्यों को बर्बाद कर रही है और पेगासस खुलासा भारतीय लोगों के विश्वास और गोपनीयता का एक बड़ा उल्लंघन था.पाटिल ने एक मजबूत आईटी तंत्र की भी मांग की है जो प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों को धमकाने के बजाय सरकार को जवाबदेह ठहरा सके.