पाकिस्तानी रुपया दुनिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में शामिल हो चुका है। आलम यह है कि वर्ष के प्रारंभ से ही उसके मूल्य में करीब 12 फीसद की गिरावट बरकरार है। मई के मध्य में तो उसके मूल्य में 17 फीसद की गिरावट दर्ज की गई थी। स्थानीय समाचार पत्र डान की मंगलवार की रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान सरकार को अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने के लिए जल्द ही एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) रुख करना पड़ सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तानी स्टेट बैंक ने रुपया को स्थिर करने के लिए कई उपाय किए हैं। संघीय जांच एजेंसी (एफआइए) जमाखोरों व तस्करों के खिलाफ लगातार अभियान चला रही है, ताकि अमेरिकी डालर के प्रवाह को सीमित करते हुए नुकसान को कम किया जाए, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पा रही है।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के तीन वर्ष और चार महीने के कार्यकाल के दौरान पाकिस्तानी रुपया में 30.5 फीसद का अवमूल्यन हुआ है। द न्यूज इंटरनेशनल के अनुसार, अगस्त 2018 में एक डालर 123 पाकिस्तानी रुपये के बराबर था जो इस साल दिसंबर में करीब 177 रुपये के बराबर हो गया है।
पाकिस्तान के इतिहास में देश की मुद्रा का यह दूसरा सबसे बड़ा अवमूल्यन है। वर्ष 1971-72 में जब बांग्लादेश अलग हुआ था तब पाकिस्तानी रुपया का 58 फीसद अवमूल्यन हुआ था और एक डालर की कीमत 4.60 पाकिस्तानी रुपये से बढ़कर 11.10 रुपये हो गई थी।
पाकिस्तान की करेंसी की खराब हालात को लेकर पूर्व आर्थिक सलाहकार डा. अशफाक हसन खान कहते हैं कि देश की आर्थिक नीति पूरी तरह से चरमरा गई है। क्योंकि देश की राजकोषीय फिसिकल पॉलिसी और एक्सचेंज रेट नीतियों के अधीन हो गई है। उन्होंने आगे कहा है कि पब्लिक डेब्ट, डेब्ट सर्विस, आदि के कारण हालात खराब हो गई है।