पाकिस्तान ने अमेरिका से मांग की है कि वो उनकी मिलिट्री फंडिंग को फिर से शुरू कर दें। जिसे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने कार्यकाल के दौरान बंद कर दिया था। गुरुवार को पाकिस्तान के एक डिप्लोमैट मसूद खान ने वॉशिंगटन में हुए एक सेमिनार में इसकी मांग की।
उन्होंने कहा, ‘ये जरूरी है कि पाकिस्तान के लिए अमेरिका अपनी मिलिट्री फंडिंग और हथियारों की बिक्री फिर से शुरू कर दे।’ इसके जवाब में सेमिनार में मौजूद अमेरिकी अधिकारी एलिजाबेथ होर्स्ट ने पाकिस्तान को अपनी आर्थिक तंगहाली दूर करने के लिए IMF के साथ काम करने को कहा।
मिलिट्री फंडिंग को फिर से शुरू करने की मांग पर अमेरिका ने पाकिस्तान से कहा है कि वो IMF की कड़ी शर्तों को स्वीकार कर ले। एलिजाबेथ ने कहा, ‘लोन के बदले IMF पाकिस्तान से अर्थव्यवस्था में जो बदलाव करवाना चाहता है वो काफी मुश्किल हैं। हालांकि, देश को फिर से पटरी पर लाने के लिए और आगे के कर्ज से बचने के लिए ये जरूरी है।’
वहीं, इस सेमिनार के दौरान रूस से तेल खरीदने के पाकिस्तान के फैसले पर सवाल किया गया। इसके जवाब में ऐंबैस्डर खान ने कहा कि रूस से तेल खरीदने का फैसला अमेरिका से बातचीत करने के बाद ही किया गया है। अफगानिस्तान से अपनी फौज को निकालने के बाद और चीन से नजदीकी बढ़ाने की वजह से अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते उतार-चढ़ाव से गुजर रहे हैं।
2018 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 300 मिलियन डॉलर यानी 24 हजार करोड़ की मिलिट्री फंडिंग को कैंसिल कर दिया था। ट्रम्प ने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान अफगान बॉर्डर से आतंकियों का खात्मा करने के लिए उचित कदम नहीं उठा रहा है। वहीं ट्रम्प के प्रशासन ने दावा किया था कि पाकिस्तान आतंकियों को खत्म करने की बजाए उन्हें पनाह दे रहा है।
किताब के लेखक हसन अब्बास के मुताबिक दोनों के बीच भारत को लेकर बातचीत हुई थी। इसके बाद ही तालिबान ने भारत को अपने डिप्लोमैट्स और टेक्निकल स्टाफ को फिर से काबुल भेजने के लिए कहा था। दरअसल, अफगानिस्तान में तालिबान के टेक-ओवर के बाद भारत समेत कई देशों ने अपने नागरिकों और डिप्लोमैट्स को वहां से वापस बुला लिया था।