पहलगाम की ‘मिनी स्विटजरलैंड’ कही जाने वाली बैसरन घाटी में दोपहर की धूप धीरे-धीरे छनकर आ रही थी। 22 अप्रैल को दोपहर के 2:40 बजे थे। हनीमून के लिए पहुंचे लेफ्टिनेंट 26 साल के विनय नरवाल और हिमांशी स्वामी भेल पूरी खा रहे थे। अचानक, फौजी वर्दी पहने एक आदमी ने नरवाल को गोली मार दी।
वे उन 26 सैलानियों में थे, जिन्हें उस दिन फौजी वर्दी पहने चार आतंकवादियों ने गोली मारी थी। उनके साथ सत्रह अन्य घायल हो गए। 2017 के अमरनाथ यात्रा हत्याकांड के बाद आम लोगों को निशाना बनाने के बाद यह सबसे भीषण आतंकी हमला था। इस हमले से पाकिस्तान के साथ युद्ध की मांग फिर फिजा में है, घाटी में सुरक्षा खामियां उजागर हुई हैं और सबसे बढ़कर, यह घटना 26 पीड़ितों परिवारों को मायूसी और गुस्से में छोड़ गई है।
करनाल में विनय नरवाल
हमले के बाद सरकारी मशीनरी फौरन हरकत में आई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घटनास्थल का दौरा किया और फौरन जवाबी कार्रवाई का वादा किया। 23 अप्रैल को पुलिस ने संदिग्धों के स्केच जारी किए, तलाशी अभियान शुरू हुआ। लेकिन जिन लोगों ने अपने प्रियजन खो दिए, उनके परिवारों का कहना है कि यह सब उनके प्रियजनों को वापस नहीं लाएगा।
हमले के कुछ दिनों बाद करनाल से कानपुर, कोलकाता से मुंबई तक अंतिम संस्कार हुए। हर श्मशान घाट पर, एक वर्दीधारी अधिकारी या शहर के मेयर ने झुके हुए झंडे, श्रद्धांजलि और भाषण दिए, सुरक्षा नाकामियों के लिए माफी मांगी और इंसाफ का वादा किया। सभी का लाइव प्रसारण हुआ। इसके बीच परिवार के सदस्य थे, जो अचानक हुई त्रासदी के साथ-साथ श्मशान घाट तक उनके पीछे आने वाली सुर्खियों को समझने की कोशिश कर रहे थे। सब कुछ कैमरे में कैद किया गया। अपने भाई विनय की चिता को अग्नि देते सृष्टि नरवाल के कांपते हाथ, कोलकाता के बिटन अधिकारी की अंतिम यात्रा और अठारह वर्षीय ऋचा मोने का अपने पिता के शोक में डोंबिवली की खामोश सड़कों पर अकेले मार्च।
24 अप्रैल को अपने बेटे के अंतिम संस्कार के दौरान सफेद कुर्ता-पायजामा पहने राजेश नरवाल एकदम शांत सारी व्यवस्था देख रहे थे। एक वक्त वे अपने एक रिश्तेदार को यह बता रहे थे कि नरवाल को गोली कैसे मारी गई, लेकिन वे ज्यादातर धीर-गंभीर बने रहे। शायद उन्होंने परिवार को ढांढस बंधाने और मजबूत बने रहने का फैसला किया था। करनाल में उनके घर पर रिश्तेदार, पड़ोसी और कुछ मील दूर उनके गांव के लोग, विनय के दोस्त और उनके काडर के लोग मौजूद थे। पिता कहते हैं, ‘‘मैं उससे जुड़ी हर चीज को मिस करूंगा, हर चीज।’’ हालांकि, दो दिन बाद, हरिद्वार में नरवाल की अस्थियां विसर्जित करते वक्त पिता का धैर्य टूट गया और वे फूट-फूट कर रो पड़े।
नरवाल परिवार की 17 साल से पड़ोसी रहीं सीमा वर्मा विनय को एक गोल-मटोल, चमकदार आंखों वाले और सेब के फूल जैसे गालों वाले लड़के के रूप में याद करती हैं, जो उनसे विज्ञान पढ़ने आता था। वे कहती हैं, “जब हम यहां आए, तो वह सेंट कबीर कॉन्वेंट में कक्षा 5 या 6 में था। मेरी छोटी बेटी और उसकी बहन सृष्टि एक ही कक्षा में थी। तब भी, वह दृढ़ निश्चयी था। शाम हो या दोपहर, वजन कम करने और नौसेना के मानकों पर खरा उतरने के लिए पार्क में दौड़ता रहता था।”
विनय ने भारतीय नौसेना में शामिल होने से पहले दो बार एनडीए की परीक्षा पास की थी। 5 फुट 9 इंच लंबे विनय ने पिछले अक्टूबर में मसूरी में डॉक्टरेट की छात्रा हिमांशी स्वामी को प्रपोज किया था। 16 अप्रैल को उनकी शादी हुई और 22 अप्रैल को पहलगाम के बैसरन मैदान में आतंकियों के शिकार हो गए।
शुरू में विनय और हिमांशी हनीमून के लिए स्विटजरलैंड जाने की सोच रहे थे, लेकिन वीजा नहीं मिल पाया। शादी के छह दिन बाद हनीमून के लिए कश्मीर पहुंचे। आतंकवादियों ने उनकी नई दुल्हन के सामने ही उनके सीने में गोली मार दी।
शवदाहगृह में विनय से सिर्फ एक साल छोटी बहन सृष्टि ने अपने भाई की अंतिम रस्में निभाईं। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के सामने उनका धैर्य टूट गया। वे बोल पड़ीं, “डेढ़ घंटे तक मेरे भाई की मदद को कोई नहीं था। अगर वहां कोई होता, तो शायद वह जिंदा होता।” सूरज डूब रहा था और अंधेरा छाने लगा था। करनाल के श्मशान में सृष्टि की आवाज साफ सुनाई दे रही थी, “आप ऐसा कैसे होने दे सकते हैं? सेना कहां थी?” उसके पड़ोसियों और विनय के दोस्तों ने भी यही शिकायत की। वर्मा ने जानना चाहा कि बैसरन, जो “पर्यटकों के लिए हॉट स्पॉट” है, को बिना सुरक्षा के कैसे छोड़ा जा सकता था? विनय के रिश्तेदार मनोज कुमार कहते हैं, “अगर सेना के लोग वहां होते, तो मुझे नहीं लगता कि यह घटना हुई होती।” उनके दोस्त विकास मलिक कहते हैं, “यह सरकार की सबसे बड़ी खामी है।”
“सोब शेश (सब कुछ खत्म हो गया)”
चालीस वर्षीय बिटन अधिकारी 16 अप्रैल को फ्लोरिडा से कोलकाता के लिए विमान में चढ़े थे। वे टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज में टेस्ट मैनेजर थे, लेकिन बंगाली नववर्ष पोइला बैशाख के लिए घर आए थे। अचानक, वे और उनकी पत्नी, 37 वर्षीय सोहिनी रॉय और उनका बेटा, 3 वर्षीय हिरदान, श्रीनगर के लिए विमान में बैठे और 22 अप्रैल की सुबह पहलगाम पहुंच गए।
परिवार बताता है, जब आतंकवादियों ने पर्यटकों को धर्म के आधार पर लाइन में खड़ा किया, तो उन्हें यह साबित करने के लिए शर्ट के बटन खोलने का आदेश दिया कि जनेऊ पहना हुआ है या नहीं। बिटन ने बटन खोले और आतंकियों ने उन्हें तीन गोली मारी। एक गोली दिल में लगी, जिससे फौरन उनकी मौत हो गई। पत्नी अपने बेटे हिरदान को गोद में लिए यह सब देख रही थी।
बिटन के चाचा शंकर चक्रवर्ती को टीवी पर हमले के बारे में पता चला। वे बिटन के बूढ़े माता-पिता को कोलकाता हवाई अड्डे पर ले गए। जब टीवी न्यूज चैनलों पर अधिकारी का नाम उभरा, तो परिवार में कोहराम मच गया। कोलकाता के मेयर और राज्य के एक मंत्री शव के साथ उनके घर आए। बैष्णवघाटा स्थित घर पर बिटन के 70 वर्षीय माता-पिता गमगीन थे। वे रोते हुए कह रहे थे, “सोब शेश” यानी सब कुछ खत्म हो गया। बिटन परिवार के एकमात्र कमाने वाले थे, जो हर महीने खाने और दवाइयों के लिए पैसे भेजते थे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि का ऐलान किया, लेकिन बिटन की मौत से परिवार एकदम टूट गया है।
तीन चचेरे भाई, एक किस्मत
डोंबिवली के तीन चचेरे भाई- हेमंत जोशी (52 वर्ष), अतुल मोने (42 वर्ष) और संजय लेले (47 वर्ष)- अपनी पत्नी और बच्चों के साथ कश्मीर के लिए निकले थे, सपरिवार छुट्टी मनाने।
डोंबिवली में अतुल माने की पार्थिव देह
शिपिंग लॉजिस्टिक्स एग्जीक्यूटिव हेमंत अपने पड़ोसियों के बीच गर्मजोशी भरे व्यवहार के लिए जाने जाते थे। पड़ाेसी बताते हैं, वे हमेशा गर्म चाय और गर्म मुस्कान के साथ स्वागत करने किया करते थे। मध्य रेलवे में सीनियर सेक्शन इंजीनियर अतुल परिवार की योजना बनाया करते थे। उन्होंने ही इस यात्रा में सभी को साथ ले जाने के लिए कई सप्ताह तक काम किया था। लॉजिस्टिक्स मैनेजर संजय में रचनात्मकता की भावना थी और वे शांत दोपहर में तबला बजाना पसंद करते थे। 24 अप्रैल को उनके शव भागशाला मैदान में श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए रखे गए थे। जब तीनों ताबूत श्रीनगर से डोंबिवली पहुंचे, तो शाम हो चुकी थी। पूरे इलाके में स्कूली बच्चों ने काली पट्टियां बांधी हुई थीं। पड़ोसियों ने उनकी याद में दीये जलाए।
अठारह वर्षीय रिचा मोने को याद है कि जब उनके पिता अतुल गोलियों की बौछार के बाद गिरे थे, तो वे छिपकर बैठी थीं। वह कहती है, ‘‘उन्होंने पूछा कि क्या हम हिंदू हैं। फिर मेरे सामने ही उन्हें गोली मार दी। मैं कुछ नहीं कर सकी।’’ हर्षल के बेटे संजय घायल मां को सुरक्षित स्थान पर ले गए। डोंबिवली की तंग गलियों में तीनों चचेरे भाइयों की शोक संवेदनाओं के बैनर और तस्वीरें लगी हुई हैं। चचेरे भाइयों के साथ-साथ वक्त बिताने के सपने आतंकियों की गोलियों के शिकार हो गए।