600 की आबादी वाले छोटे से आईलैंड पर 10 लाख जूते, 370,000 टूथब्रश, लेकिन सब कूड़ा

हिंद महासागर में बसा है कीलींग आइलैंड. ये उसी की कहानी है. कहते हैं समंदर जितना बड़ा होता है, उसका दिल उतना ही छोटा होता है. कोई बात वो अपने दिल में रखता नहीं. और अगर बात ही कचरा हो तो कहना ही क्या. लहरें सबकुछ किनारों को सौंप जाती हैं. पानी के बाद पृथ्वी पर पैदा हुए इंसानों ने इन पानी के महानगरों से बहुत कुछ कहा है. और ज़्यादातर बात कचरा ही है. जिसे महासागर मानवता को सप्रेम वापस भेंट कर देते हैं. ये ख़बर एक ऐसे ही तोहफ़े के बारे में है. जो लगभग अमर है. क्योंकि वो तोहफ़ा प्लास्टिक है. ये वही तोहफ़ा है जो इंसान और महासागर एक-दूसरे को लगातार देते रहते हैं. और प्लास्टिक को मरने में सैकड़ों बरस लग जाते हैं. क्या आपको पता है कि समंदर के सीने में ये प्लास्टिक आता कहां से है.

ये सारा प्लास्टिक वो है, जो हम और आप इस्तेमाल करके फेंक देते हैं. आगे बढ़ते-बढ़ते ये कूड़ा आखिर में समंदर पहुंचता है. अधिकतर. इसी समंदर के रास्ते प्लास्टिक की शक्ल में ढेर सारा कूड़ा बहकर इस किनारों पर पहुंचता है. ये कितना ज्यादा है और कितना खतरनाक है, आप सोचिए.

# क्यों डरावना है कीलिंग आइलैंड का हाल:

कीलींग आइलैंड का हाल हमें पता चला सर्वे ऑफ प्लास्टिक पॉल्यूशन से. इसकी रिपोर्ट जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में छपी है. इसके मुताबिक, इस छोटे से द्वीप के किनारों पर तकरीबन 238 टन प्लास्टिक जमा है. समंदर में प्लास्टिक के ढेर से मीलों लंबे पैच बन गए हैं. यहां सतह पर पानी नहीं दिखता. बस प्लास्टिक दिखता है. कई ऐसी घटनाएं भी हुई हैं कि टनों वजन भारी व्हेल मरकर बहती हुई समंदर किनारे आई और उसके पेट में प्लास्टिक भरा हुआ था. कीलींग एक डरावनी मिसाल है. आप इसको सैंपल मानकर कल्पना कर सकते हैं कि दुनियाभर में कितना प्लास्टिक पैदा हो रहा है. हमारे पास प्लास्टिक डंप करने के लिए कोई दूसरा ग्रह तो है नहीं. तो उसका अंबार हमारी इसी इकलौती धरती का गला घोंट रहा है.

# और क्या बता रही हैं रिपोर्ट्स:

इंडियन एक्सप्रेस में छपी इस रिपोर्ट को लिखने वाले एनेट फिंगर कुछ डरावने खुलासे करते हैं. ये वो फ़ैक्ट हैं जिन पर हमारी नज़र नहीं जाती. लेकिन सतह के भीतर ये सब लगातार होता रहता है. रिसर्चर बताते हैं-

मानवता को सबसे बड़ा ख़तरा अगर किसी से है तो वो है प्लास्टिक. प्लास्टिक बनना किसी भी तरह से बंद नहीं हो रहा है. इंसानों ने पिछले 60 बरसों में जितना प्लास्टिक बनाया है, उसका आधा पिछले 13 बरसों में ही बन गया है. केवल 2010 में ही हमारे महासागरों में एक करोड़ बीस लाख टन प्लास्टिक का कचरा पहुंचा है.

ये उतना ही है जितना कैल्कुलेट करने में हमारा कैल्कुलेटर भी फेल हो गया है. लेकिन एक बात याद रखिए कि महासागर कभी माफ़ नहीं करते. जिन त्रासदियों को हम प्राकृतिक आपदा कहकर टल जाते हैं, उनमें से ज़्यादातर की बड़ी वजह हम इंसान ही होते हैं.