महान रचनाकार व दार्शनिक रवींद्रनाथ टैगोर की कृतियों में प्रेम, वियोग व राष्ट्रप्रेम के भावों के साथ सामाजिक व वैचारिक उत्थान के आदर्श झलकते हैं। अनेक फिल्मकारों ने उनकी रचनाओं पर आधारित खूबसूरत सिनेमा गढ़ा। सात मई को टैगोर की जयंती पर स्मिता श्रीवास्तव का आलेख…
कोलकाता के जोरसंको हवेली में सात मई, 1861 को जन्मे रवींद्रनाथ टैगोर एशिया के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी काव्यरचना ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें वर्ष 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था। वह पहले गैर यूरोपीय थे जिन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था। उन्हें ब्रिटिश सरकार ने सर की उपाधि से भी नवाजा था जिसे उन्होंने 1919 में हुए जलियांवाला बाग कांड के बाद लौटा दिया था। उन्होंने न सिर्फ भारत, बल्कि बांग्लादेश के लिए भी राष्ट्रगान लिखा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें गुरुदेव की उपाधि दी थी। रवींद्रनाथ टैगोर का लिखा साहित्य दुनियाभर में चर्चित है। आज भी उनकी कृतियों को बड़े चाव से पढ़ा जाता है। उनकी लिखी रचनाओं का प्रभाव भारतीय फिल्मकारों पर भी रहा।
कुछ ऐसे फिल्ममेकर रहे जिन्होंने उनकी कहानियों को सिनेमाई पर्दे पर अडैप्ट किया। वहीं कुछ ऐसे फिल्ममेकर भी थे जिन्होंने उनके लिखी रचनाओं के सार को कायम रखते हुए उनके काम को एक नई व्याख्या दी। ऐसा करने वाले दो सबसे महत्वपूर्ण फिल्ममेकर थे सत्यजित राय और तपन सिन्हा। सत्यजित ने न सिर्फ कई फिल्मों के सार को व्यक्त करने के लिए रवींद्र संगीत (टैगोर द्वारा रचित गाने) का प्रयोग किया, बल्कि उनकी कुछ कहानियों को फिल्मों में रूपांतरित किया। उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता टैगोर पर करीब 54 मिनट की डाक्यूमेंट्री भी बनाई थी। साल 1961 में सत्यजित ने टैगोर की तीन लघु कथाओं ‘पोस्टमास्टर’, ‘मोनिहारा’ और ‘समस्ती’ पर फिल्म ‘तीन कन्या’ बनाईं। टैगोर की लघु कहानी ‘नोशटोनिर’ पर आधारित फिल्म ‘चारुलता’ (1964) के लिए सत्यजित ने सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार व बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक श्रेणी का सिल्वर बियर पुरस्कार जीता।
साल1984 में उन्हें फिल्म ‘घरे बाइरे के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। यह फिल्म भी टैगोर की इसी नाम से लिखी गई कृति पर आधारित थी। प्रख्यात फिल्ममेकर तपन सिन्हा ने टैगोर की कृतियों पर आधारित फिल्में ‘काबुलीवाला (1957), ‘खुसुदिता पाशन (1960), ‘अतिथि (1969) बनाईं। काबुलीवाला कहानी पर 1961 में हेमेन गुप्ता ने हिंदी में फिल्म ‘काबुलीवाला बनाई। उसमें बलराज साहनी और ऊषा किरण प्रमुख भूमिका में थे।
गुरुदेव साहित्य के अलावा संगीत में भी गहरी रुचि रखते थे। उनका गीत संगीत कई फिल्मों का हिस्सा बना। तपन सिन्हा ने ताराशंकर बंदोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित अपनी फिल्म ‘बिचारक में नायक की ग्लानि को व्यक्त करने के लिए टैगोर गीत का इस्तेमाल किया। ऋत्विक घटक ने फिल्म ‘मेघे ढाका तारा और ‘कोमल गांधार में कहानी के प्रभाव को बढ़ाने के लिए टैगोर के गीतों का उपयोग किया। टैगोर की कृतियों पर कई फिल्में बनी और चर्चा में आई। इनमें 1971 में सुदेंधु राय ने टैगोर की कृति समाप्ति पर फिल्म ‘उपहार बनाई।
राजश्री प्रोडक्शन तले बनी इस फिल्म में जया भादुड़ी, कामिनी कौशल ने मुख्य भूमिका निभाई। साल 1991 में टैगोर की कृति ‘कशुधित पशान से प्रेरित फिल्म ‘लेकिन का निर्देशन गुलजार ने किया था। ‘लेकिन में विनोद खन्ना और डिंपल कपाडिय़ा प्रमुख भूमिका में थे। वर्ष 1997 में टैगोर की कृति ‘चार अध्याय पर कुमार शाहनी ने चार अध्याय बनाई। वर्ष 2003 में टैगोर की लघु कहानी पर रितुपर्णो घोष ने ‘चोखेर बाली फिल्म निर्देशित की थी। ऐश्वर्या राय बच्चन अभिनीत ‘चोखेर बाली ने 2005 में बांग्ला में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था। उसके बाद 2011 में ‘नौका डूबी नामक उपन्यास पर रितुपर्णो घोष ने इसी नाम से फिल्म बनाई। वर्ष 2020 में रिलीज शरद केलकर और शारिब हाशमी अभिनीत फिल्म ‘दरबान’ भी टैगोर की कहानी पर आधारित थी। वहीं
टीवी की बात करें तो अनुराग बसु ने एपिक चैनल के लिए ‘स्टोरीज बाय रवींद्रनाथ टैगोर नामक 26 एपिसोड के धारावाहिक का निर्देशन किया था। इनमें गुरुदेव की अलग-अलग लघुकहानी पर हर एपिसोड है।