गोकशी के मामलों में सबसे ज़्यादा लोगों पर एनएसए

उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा गोकशी के मामलों में हो रहा है.

उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून यानी एनएसए के तहत इस साल अब तक 139 लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई है जिनमें आधे से ज़्यादा मामले गोहत्या से संबंधित हैं. एनएसए की कार्रवाई और गोहत्या के सबसे ज़्यादा मामले बरेली परिक्षेत्र में आए हैं.

राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश कुमार अवस्थी के मुताबिक़, इस साल अगस्त तक यूपी पुलिस ने राज्य में 139 लोगों के ख़िलाफ़ एनएसए लगाया है, जिनमें से 76 मामले गोहत्या से जुड़े हैं.

बरेली ज़ोन में इस दौरान 44 लोगों पर एनएसए के तहत मामला दर्ज किया गया है. 37 लोगों पर जघन्य अपराधों के लिए जबकि महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराध के मामलों में अब तक छह लोगों के ख़िलाफ़ एनएसए लगाया गया है.

यूपी में एनएसए के तहत इस साल की शुरुआत में ही एक दर्जन गिरफ्तारियां नागरिकता संशोधन विधेयक यानी सीएए के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों से जुड़ी हुई हैं जिनमें गोरखपुर के डॉक्टर कफ़ील ख़ान का मामला भी शामिल है.

किस पर लगता है एनएसए?

राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून यानी एनएसए के तहत कार्रवाई तब की जाती है जब प्रशासन को लगता है कि कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा और क़ानून-व्यवस्था के लिए ख़तरा बन सकता है.

इसके तहत उसे बारह महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है. हालांकि तीन महीने से ज़्यादा समय तक जेल में रखने के लिए सलाहकार बोर्ड की मंज़ूरी लेनी पड़ती है.

गोहत्या के मामलों में इतनी बड़ी संख्या में एनएसए के तहत कार्रवाई के बारे में अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश कुमार अवस्थी कहते हैं कि गोहत्या क़ानून में सख़्ती की वजह से ऐसा हुआ है और ज़्यादातर मामलों को हाईकोर्ट ने भी अपनी स्वीकृति दे दी है.

बीबीसी से बातचीत में अवनीश अवस्थी कहते हैं, “गोहत्या का मामला बेहद संवेदनशील होता है. इसकी वजह से तमाम परेशानियां खड़ी होती हैं. इसलिए सरकार ने बहुत ही सख़्त क़दम उठाया है. क़ानून भी सख़्त किया है और ऐसे मामलों में सख़्त कार्रवाई भी की गई है. आज कहीं भी दंगे नहीं हो रहे हैं. ये सब उसी का नतीजा है.”

अवनीश अवस्थी के मुताबिक़ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्देश दिए हैं कि उन आपराधिक मामलों में एनएसए लगाया जाए, जिनसे सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित हो सकती है ताकि अपराधियों के मन में भय पैदा हो और आम आदमी को ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर सके.

गोकशी के मामलों में एनएसए के अलावा इस साल अब तक उत्तर प्रदेश गोहत्या निवारण अधिनियम के तहत भी 17,00 से ज़्यादा मामले दर्ज किए जा चुके हैं और चार हज़ार से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है.

राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के इस्तेमाल पर सवाल

सरकार के एनएसए लगाने और गोकशी के मामलों में दिखाई गई तत्परता को लेकर कई बार सवाल भी उठते रहे हैं.

गोकशी के मामलों में एनएसए लगाने के सवाल पर जानकारों का कहना है कि चूंकि ये ऐसा मामला है जो कई बार सांप्रदायिक दंगों की वजह बन जाता है, इसलिए ऐसे मामलों में एनएसए का मज़बूत आधार बनता है.

यूपी में डीजीपी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी डॉक्टर वीएन राय कहते हैं, “गोकशी की वजह से कई बार सांप्रदायिक दंगा होता है, शांति-व्यवस्था भंग होती है, इसलिए एनएसए की कार्रवाई कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है. लेकिन इसका इतना प्रचार-प्रसार करना ठीक नहीं है.”

वो कहते हैं , ”किसी के घर पर गोमांस या कोई मांस पाया गया तो उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई बनती है लेकिन उसका विरोध करके जो लोग दंगा भड़काने की कोशिश करते हैं, एनएसए तो उन पर भी लगना चाहिए. लेकिन मुझे नहीं लगता कि ऐसे लोगों पर एनएसए लगा है. तो इस स्थिति में सरकार की नीयत पर सवाल उठता है. ऐसे मामलों में ज़्यादातर धार्मिक आधार पर ही कार्रवाइयां हुई हैं.”

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, एनएसए के तहत बरेली परिक्षेत्र में सबसे ज़्यादा यानी 44 मामलों में कार्रवाई हुई है जिनमें ज़्यादातर गोकशी से ही जुड़े हुए हैं.

बरेली परिक्षेत्र के पुलिस उपमहानिरीक्षक राजेश कुमार पांडेय कहते हैं कि गोकशी के मामलों में एनएसए लगाने की कार्रवाई कोई पहली बार नहीं हो रही है, पहले भी हुई है.

राजेश पांडेय के मुताबिक, “जब मैं अलीगढ़ में एसएसपी था, तब दो बड़ी घटनाएं हुईं. क़ानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी ख़राब हो गई थी कि अभियुक्तों पर एनएसए लगाना पड़ा. क़ानून व्यवस्था के लिए ये घटनाएं कई बार बड़ा ख़तरा बनी हैं. इऩकी वजह से पथराव हुआ है, आगज़नी की गई है, थाना घेरा गया है, पुलिस पर आरोप लगे हैं. और हां, एनएसए की कार्रवाई प्रशासन ने की है तो उसे एडवाइजरी बोर्ड ने भी कंफ़र्म किया है.”

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बिजनौर ज़िला भी बरेली ज़ोन में ही आता है. बिजनौर में पुलिस ने अगस्त के अंत तक 11 लोगों के ख़िलाफ़ एनएसए के तहत मामला दर्ज किया है और ये सभी लोग गोकशी के मामले में गिरफ़्तार किए गए थे.

बिजनौर में अफ़ज़लगढ़ थाने के आसफ़ाबाद चमन गांव में एक ही परिवार के छह लोगों को इस मामले में चार महीने पहले गिरफ़्तार किया गया था जिनमें दो लोगों के ख़िलाफ़ एनएसए के तहत कार्रवाई की गई है.

गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट और एनएसए

आसफ़ाबाद चमन गांव के पूर्व प्रधान यामीन भी इसी परिवार से ताल्लुक़ रखते हैं.

यामीन बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, “14 मई को हम लोग इफ़्तारी में थे. तभी किसी ने घर के बाहर मांस फेंक दिया. कुछ लोग आकर हो-हल्ला मचाने लगे. पुलिस बुला ली गई और बिना हमारी बात सुने छह लोगों को उठा ले गई. उसके बाद गांव के ही दो और लोगों को ले गई. सभी के ख़िलाफ़ गुंडा ऐक्ट, गैंगस्टर ऐक्ट के तहत कार्रवाई हुई है. मेरे दो चचेरे भाइयों रफ़ीक़ और फ़रीद को तीन जून को एनएसए में बुक कर दिया. अभी तीन महीने के लिए और बढ़ा दिया गया.”

यूपी में एनएसए की कार्रवाई को लेकर कई बार सवाल उठ चुके हैं. हाल ही में गोरखपुर के डॉक्टर कफ़ील के मामले में भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन पर एनएसए लगाए जाने को ग़ैरक़ानूनी बताते हुए उन्हें तुरंत रिहा करने के आदेश दिए थे.

यूपी के डीजीपी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी एके जैन कहते हैं कि एनएसए लगाने का यदि कोई मज़बूत आधार नहीं होगा तो सलाहकार परिषद में वह अपने आप ख़ारिज हो जाएगा.

एके जैन के मुताबिक, “गोकशी, रेप और हत्या जैसे केसों में भी एनएसए लग सकता है लेकिन उसका आधार यह बताना होगा कि इससे पब्लिक ऑर्डर डिस्टर्ब हो रहा है.”

वो कहते हैं कि सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न होने की स्थितियों में एनएसए के लिए मज़बूत आधार मिल जाता है. लेकिन मज़बूत आधार नहीं होगा तो पहले तो एडवाइज़री बोर्ड ही ख़ारिज कर देगा और नहीं तो अदालत में सब कुछ सामने आ जाएगा.

इसलिए बिना मज़बूत आधार के प्रशासन ऐसी धाराएं ख़ुद ही नहीं तामील करता कि उससे जवाब देते न बने.