पहले नेपाल और अब पाकिस्तान ने नया राजनीतिक नक़्शा जारी किया है जिसमें जम्मू कश्मीर-लद्दाख-जूनागढ़ और सर क्रीक को पाकिस्तान का हिस्सा दिखाया गया है
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने मंगलवार को इस नए नक़्शे को जारी करते हुए इसे एक ऐतिहासिक दिन बताया.
उन्होंने ये क़दम भारतीय संसद में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने और तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, में विभाजित करने की पहली वर्षगांठ के एक दिन पहले उठाया.
पाकिस्तान और नेपाल द्वारा नए राजनीतिक नक़्शे जारी करने के पीछे उनके क्या उद्देश्य हो सकते हैं? क्या इसका मक़सद भारत को उकसाया जाना है और अगर ऐसा है तो क्या ये किसी के इशारे पर हो रहा है?
इस बारे में पाकिस्तान मामलों के विशेषज्ञ और हिंदुस्तान टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार रिज़ाउल हसन लस्कर कहते हैं कि पाकिस्तान और नेपाल के उद्देश्य अलग-अलग हैं.
वो कहते हैं, “ऐसा लगता है कि नेपाल का नया नक़्शा भारत के पिछले साल के नक़्शे के ख़िलाफ़ एक जवाबी क़दम है, जो इस समस्या को बातचीत के ज़रिए हल करने के अवसर के अभाव में भी उठाया गया है.”
‘कश्मीर के असली मुद्दे को नुक़सान पहुंचा रहा है पाकिस्तान’
पाकिस्तान के नए नक़्शे पर टिप्पणी करते हुए लस्कर कहते हैं, “पाकिस्तान के मामले में, यहां पाकिस्तानी नेतृत्व की सोच अव्यवस्थित दिखाई देती है. जूनागढ़ को शामिल किए जाने की बात हैरान करने वाली है, क्योंकि यह दशकों से पाकिस्तान के आधिकारिक एजेंडे में नहीं है. उधर नक़्शे में लद्दाख को शामिल न करने से ये समझ में आता है कि पाकिस्तान चीन को नाराज़ नहीं करना चाहता.”
इस मुद्दे पर स्वीडन में भारतीय मूल के प्रोफ़ेसर अशोक स्वेन कहते हैं, “पाकिस्तान का ये नया नक़्शा भारत के ख़िलाफ़ कई मोर्चों को खोलने की एक कोशिश है. कश्मीर मुद्दे पर चीन के खुले समर्थन से पाकिस्तान की स्थिति मज़बूत हुई है और शक्ति संतुलन भारत से दूर हो गया है.”
लेकिन वो पाकिस्तान सरकार की आलोचना करते हुए कहते हैं कि पाकिस्तान कश्मीर को ‘एक मानवाधिकार मुद्दा न बनाकर एक क्षेत्रीय मुद्दा बना रहा है जो कश्मीर के असल मुद्दे को नुक़सान पहुंचा रहा है’
एक महीने पहले नेपाल द्वारा नए नक़्शे जारी करने के बारे में प्रोफ़ेसर स्वेन कहते हैं, “भारत ने नेपाल के नए नक़्शे को अस्वीकार किया है. किसी ने भी भारत से इसे स्वीकार करने की अपेक्षा नहीं की थी. लेकिन इस ‘मैप वॉर’ की शुरुआत किसने की? भारत ने नवंबर 2019 में एकतरफ़ा राजनीतिक मैप क्यों जारी किया?”
भारत ने नक़्शे को ख़ारिज़ किया…
कुछ विश्लेषक कहते हैं कि इमरान ख़ान अनुच्छेद 370 की समाप्ति की पहली वर्षगांठ के अवसर पर पाकिस्तानी जनता को ये दिखाना चाहते थे कि उनकी सरकार भारत पर दबाव बनाये हुए है.
वरिष्ठ सियासी विश्लेषक नरेश जैन कहते हैं, “ये सिर्फ़ पाकिस्तानी लोगों को दिखाने के लिए एक चाल है कि उनकी सरकार ने भारत द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर कुछ प्रगति की है.”
पाकिस्तानी सियासत पर गहरी नज़र रखने वाले भारतीय विश्लेषक सुशांत सरीन कहते हैं कि पाकिस्तान को कल्पना करते रहना चाहिए.
उन्होंने तंज़ के अंदाज़ में कहा, “कल्पना की कोई सीमा नहीं होनी चाहिए. यह एक अजीब देश का अजीब नक़्शा है जो एक नया राजनीतिक मैप जारी करता है जिसकी सीमाएं नहीं हैं.”
भारत ने पाकिस्तान के इस नए राजनीतिक नक़्शे को ख़ारिज करते हुए कहा कि न तो इसकी क़ोई क़ानूनी वैधता है और न ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी कोई विश्वसनीयता है.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, “हमने पाकिस्तान के तथाकथित ‘राजनीतिक नक़्शे’ को देखा है जिसे प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने जारी किया है. यह भारतीय राज्य गुजरात और हमारे केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के क्षेत्र में आधारहीन दावेदारी है, जो कि राजनीतिक मूर्खता में उठाया गया एक क़दम है. इन हास्यास्पद दावों की न तो क़ानूनी वैधता है और न ही अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता. सच्चाई तो ये है कि पाकिस्तान की ये नई कोशिश केवल सीमा पार आतंकवाद द्वारा समर्थित क्षेत्र-विस्तार की पाकिस्तान के जुनून की हक़ीक़त की पुष्टि करता है.”
नक़्शे से पाकिस्तान के बुद्धिजीवी भी असहमत
ख़ुद पाकिस्तान में इस नए नक़्शे पर मिली जुली प्रतिक्रियाएं आई हैं. सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने पाकिस्तानी सरकार के इस क़दम को “मास्टरस्ट्रोक” कहा है तो वहीं दूसरे कई लोगों ने इसे पाकिस्तानी सरकार की “बचकाना हरकत” बताया.
पाकिस्तान के बुद्धिजीवी भी इस मुद्दे पर पाकिस्तान सरकार से असहमत नज़र आते हैं.
पाकिस्तान में पंजाब विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर शब्बीर अहमद ख़ान ने कहा कि नक़्शे को जारी करने के पीछे मक़सद पाकिस्तान की ‘शर्मनाक और बचकानी’ हरकत है.
उनका कहना था, “पाकिस्तान अब तक कश्मीर को अपने नियंत्रण में दिखाने के लिए नक़्शे पर नियंत्रण रेखा (एलओसी) दिखाता था. हमने इसे भी हटाने का फ़ैसला किया, इसलिए इसे हटा दिया गया. ये एक प्रतीकात्मक संदेश नहीं है. बड़ी शक्तियां एक-दूसरे को इस तरह उकसाती नहीं हैं.”
उन्होंने कहा, ”इस तरह के नक़्शे बनाने से कोई इसे थोड़े ही स्वीकृति दे देगा. एक परमाणु शक्ति होने के नाते, ज़िम्मेदार सरकारें इन तरीक़ों से किसी अन्य प्रमुख शक्ति को उत्तेजित नहीं करती हैं.”
पाकिस्तान के विश्लेषक डॉक्टर हसन असकरी रिज़वी ने बीबीसी को बताया कि इस तरह के उपाय देश के अंदर लोगों को ख़ुश कर सकते हैं लेकिन “अंतरराष्ट्रीय समर्थन ऐसे नक़्शे पर नहीं दिए जाते.”
उन्होंने कहा कि कश्मीर मुद्दे के वास्तविक समाधान के लिए अभी भी पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समर्थन की आवश्यकता है. हसन असकरी रिज़वी ने ये भी कहा कि नए राजनीतिक मैप में बहुत कुछ नया नहीं है.
उन्होंने कहा कि 1971 से पहले पाकिस्तान जूनागढ़ राज्य को राजनीतिक नक़्शे के हिस्से के रूप में दिखाता था लेकिन बाद में इसे हटा दिया गया था.
पाकिस्तान मामलों के विशेषज्ञ सुशांत सरीन भी कहते हैं कि इस नक़्शे में सब कुछ नया नहीं है. उनका कहना है कि ‘दशकों से सर्वे ऑफ़ पाकिस्तान के नक़्शे में जूनागढ़ को शामिल किया गया है.’