अब अमेरिका ने इराक में की अपना युद्ध मिशन खत्म करने की घोषणा

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने सोमवार को कहा कि इराक में अमेरिकी युद्ध मिशन (US combat mission in Iraq) इस साल के अंत तक ख़त्म हो जाएगा. यह घोषणा अमेरिकी नीति में एक बड़े बदलाव के संकेत दे रही है. बाइडेन के पदभार ग्रहण करने से पहले ही मुख्य अमेरिकी फोकस इराकी बलों की सहायता करना रहा है, न कि उनकी ओर से लड़ने पर और राष्ट्रपति बाइडेन ने यह नहीं बताया कि क्या उन्होंने इराक में सैनिकों की संख्या कम करने की योजना बनाई है, जो अब लगभग 2,500 है.

इससे पहले 11 सितंबर 2001 के लगभग 20 साल बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से पूरी तरह से हटने का फैसला किया था. साथ में अफगानिस्तान और इराक में युद्धों ने अमेरिकी सेना पर भारी कर लगाया है और इसे बढ़ते चीन पर अधिक ध्यान देने से रोक दिया है, जिसे बाइडेन प्रशासन सबसे बड़ी दीर्घकालिक सुरक्षा चुनौती कहता है.

वर्षों से अमेरिकी सैनिकों ने इराक और पड़ोसी सीरिया में सहायक भूमिकाएं निभाई हैं, जो कि इस्लामिक स्टेट समूह का बेस था, जिसने 2014 में सीमा पार कर बड़े इराकी क्षेत्र कब्जा कर लिया था, जिससे अमेरिका को इराक वापस सेना भेजने के लिए प्रेरित किया गया था.
इराकी प्रधानमंत्री मुस्तफा अल-कदीमी के साथ एक ओवल कार्यालय सेशन के दौरान पत्रकारों से बात करते हुए बाइडेन ने कहा कि उनका प्रशासन इराक के साथ साझेदारी के लिए प्रतिबद्ध है.

अमेरिका के लिए कंसर्नड वेटरन्स के एक वरिष्ठ सलाहकार डैन कैल्डवेल ने कहा कि अमेरिकी सैनिक जोखिम में रहेंगे. कैल्डवेल ने एक बयान में कहा “चाहे उनकी तैनाती को लड़ाकू मिशन कहा जाए या नहीं, अमेरिकी सैनिकों पर तब तक नियमित हमले होते रहेंगे जब तक वे इराक में रहेंगे.” उन्होंने कहा “इराक में एक अमेरिकी सैन्य उपस्थिति हमारी सुरक्षा के लिए आवश्यक नहीं है और केवल अधिक अमेरिकी सैनिकों के नुकसान का जोखिम है.” इससे पहले अमेरिका ने घोषणा की थी कि वह अफगानिस्तान से अपनी सेना 31 अगस्त तक वापस बुला लेगा.

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान (Afghanistan) से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की घोषणा के बीच बीजिंग युद्धग्रस्त देश में प्रवेश करने के अवसर की प्रतीक्षा कर रहा है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए अफगानिस्तान का भूराजनीतिक (geopolitical importance) महत्व है. चीनी सेना ईरान या पाकिस्तान के माध्यम से अरब सागर तक पहुंच सकती है. फॉक्स न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार चीन युद्धग्रस्त देश ईरान और मध्य पूर्व तक पहुंच प्रदान कर सकता है और हिंद महासागर और अफ्रीका के लिए एक मार्ग प्रदान कर सकता है.