चिराग पासवान की वजह से सिर्फ जेडीयू को ही नहीं BJP को भी हुआ नुकसान

बिहार का जनादेश बहुत साफ है। बहुमत नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए को मिला है। एनडीए के सबसे बड़े दल भाजपा ने डंके की चोट पर न केवल इसकी घोषणा की थी, बल्कि चुनाव के बीच गृह मंत्री और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने यह भी साफ कर दिया था कि जदयू को कम सीटें मिलेंगी तो भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे। अंतिम चरण के मतदान से एक दिन पहले पीएम नरेन्द्र मोदी ने बिहार की जनता के नाम खत लिखा कि विकास का सिलसिला जारी रखने के लिए बिहार में नीतीश सरकार जरूरी है। अमित शाह का इंटरव्यू पहले चरण और पीएम का पत्र दूसरे चरण के बाद आया। इन दोनों चरणों में एनडीए को ज्यादा सीटें मिलीं।  

अब सवाल उठता है कि क्या लोगों में जदयू के खिलाफ वाकई गुस्सा था? जनादेश का अंकगणित सामने रखकर इस सवाल को हवा देने की कोशिशें हो रही हैं। लेकिन ऊपर के दो उदाहरणों को सामने रखकर इस सवाल के औचित्य को परखना ज्यादा बेहतर होगा। जब पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह चुनाव के बीच डंके की चोट पर यह साफ कह रहे हों कि सीटों का अनुपात जो भी, अगर एनडीए को बहुमत मिला तो नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे, ऐसे में अगर नीतीश कुमार से लोगों में नाराजगी थी तो भाजपा को भी इसका नुकसान होना था, क्योंकि भाजपा ने विकल्प की कोई गुंजाइश छोड़ी ही नहीं थी, फिर भी भाजपा को नुकसान नहीं, फायदा हुआ, क्यों? परिणाम आने के बाद अपने पहले इंटरव्यू  में भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने बहुत साफ कहा कि बिहार की जनता ने नीतीश कुमार के चेहरा और विकास के मुद्दे पर एनडीए को जनादेश दिया है।  

दरअसल, 17वीं विधानसभा का चुनाव अनेक मायनों में अलग रहा। संभवत: यह पहला चुनाव होगा जिसमें कोई दल सिर्फ किसी खास दल को नुकसान पहुंचाने का लक्ष्य लेकर मैदान में उतरा हो। उसे अपनी पार्टी के लिए कुछ हासिल भी नहीं करना था। लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने जनादेश के अगले दिन बाजाब्ता प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह दावा किया कि उनका लक्ष्य जदयू को नुकसान पहुंचाना था और इसमें वह सफल रहे। उनका एक दावा और भी कि उन्होंने भाजपा को लाभ पहुंचाया? वह एक तरह से खुद को मास्टर प्लेयर बता रहे हैं, यानी भाजपा को अधिक सीटें और जदयू को कम सीटें आने का सेहरा उनके सिर बंधा है। जनादेश के बाद अपने पहले इंटरव्यू में उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने चिराग के इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया कि जदयू को नुकसान कर भाजपा को लाभ पहुंचाया। कहा कि चिराग ने जो भ्रम फैलाया, उससे जदयू और भाजपा दोनों को नुकसान हुआ है। अगर लोजपा ने गलत तरीके से भ्रम पैदा नहीं किया होता तो एनडीए की सीटें डेढ़ सौ के पार होतीं।  

पहला तो यह कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का मन लोजपा को लेकर बिल्कुल साफ था। दूसरा वह इस हकीकत से वाकिफ था कि बिहार में भाजपा की आड़ लेकर भ्रम पैदा कर एनडीए का खेल बिगाड़ने का प्रपंच चल रहा है। इसमें लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान के व्यक्तिगत खुन्नस को भी भाजपा नेतृत्व समझ रहा था। इसलिए वह चिराग के भ्रमजाल को तोड़ने के लिए खुलकर मैदान में आया। लेकिन कहीं न कहीं इसमें देर हो गई। अगर यह कदम पहले उठाया गया होता तो पहले चरण में लोजपा की नुकसान पहुंचाने की रणनीति इतनी कामयाब नहीं होती। इसमें बड़ी चूक हुई और इसका भरपुर लाभ चिराग ने उठाया। वह कभी खुद को पीएम का हुनमान तो कभी एनडीए का हिस्सा होने का दावा मजबूती से करते रहे, जिसका कमोबेश असर आगे के चरणों पर भी पड़ा। पहले चरण में 71 सीटों के लिए हुए मतदान में लोजपा को सबसे अधिक 10.81 फीसदी, जबकि तीनों चरणों में कुल 5.66 प्रतिशत वोट मिले। पहले चरण में लोजपा ने सबसे कम 41 उम्मीदवार उतारे थे। दूसरे में 52 और तीसरे में 42 उम्मीदवार लोजपा के थे।  

लोजपा की खुद की स्थिति इतनी लचर है कि उसके पास विधानसभा की दो तिहाई से अधिक सीटों के लिए उम्मीदवार तलाशना मुश्किल था। उसने भ्रम फैलाकर अनेक लक्ष्य साधे। इसमें अनेक सीटों के लिए भाजपा से ही उम्मीदवार हासिल करना भी शामिल था। जबकि चिराग का दावा है कि उसने भाजपा को फायदा पहुंचाया। किसी के घर में सेंध लगाकर उसे फायदा पहुंचाने का दावा क्या हास्यास्पद नहीं है? अब तीसरा दावा एनडीए में बने रहने का भी कम काबिलेगौर नहीं है। इस तीसरे दावे पर भाजपा को फैसला लेना है। लेकिन सुशील कुमार मोदी ने बहुत साफ कर दिया है कि चिराग सिर्फ जदयू के ही नहीं बल्कि भाजपा समेत पूरे एनडीए के खलनायक साबित हुए हैं।   

राजनीतिक दल चुनावों में कुछ हासिल करने के लिए उतरते हैं, लेकिन ऐसा संभवत: पहली बार हुआ है, जब किसी दल का मुखिया डंके की चोट पर कहे कि उसका लक्ष्य किसी खास दल को नुकसान पहुंचाना भर था और जनादेश के आईने में वह खुद की पीठ भी थपथपा रहा हो। चिराग को इन सवालों का जवाब भी देना चाहिए कि जब उन्हें यह पता था कि भ्रम का जो चक्रव्यूह उन्होंने रचा है उससे उनके दल को कोई लाभ नहीं होना है तो क्या उनकी पार्टी के सिंबल पर चुनाव में उतरे 134 उम्मीदवार उनके निजी खुन्नस साधने के मोहरे भर थे? दूसरा चुनाव प्रचार पर जो धन बहाया गया, वह क्या लोजपा के उम्मीदवारों और प्रदेश की जनता का नुकसान नहीं है? तीसरा उस दल के खिलाफ जिससे सवा साल पहले लोकसभा का रण जीतने में सहयोग लिया हो, विधानसभा चुनाव में उसे ही हराने के लिए चक्रव्यूह रचना और वैचारिक मतभेद का तर्क देना क्या उचित है? 

बहरहाल, चक्रव्यूह रचकर जदयू को नुकसान पहुंचाने का लक्ष्य साधने में कामयाब रहने का जो उल्लास चिराग पासवान महसूस कर रहे हैं, वह कब तक बरकरार रहेगा? उनके सामने सबसे बडी चुनौती चुनाव में शर्मनाक पराजय के दंश से पार्टी को उबारना है। आगे के चुनावों में उन्हें अपने लोगों को यह भरोसा देने में भी मुश्किलें पेश आएंगी कि वह किसी को हराने भर के लिए नहीं, बल्कि जीतने के लिए चुनाव में उतर रहे हैं। उन्होंने पार्टी के एक तरह से सफाए पर न तो कोई अफसोस जताया है और न पराजय के कारणों की समीक्षा करने की आवश्यकता महसूस की है, जबकि कटु सच यही है कि जदयू को नुकसान पहुंचाने के चक्कर में उनकी पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है।